निर्माण, ग्रामीण व कोयला क्षेत्र के मजदूरों की तत्काल मांगे

October 19, 2022 0 By Yatharth

इफ्टू (सर्वहारा) द्वारा जारी

निर्माण मजदूरों की मांगें :

1. निर्माण मजदूर निरंतर बेरोजगारी की मार झेलने वाला मजदूर वर्ग का एक बहुत बड़ा हिस्सा है, जो अमूमन गरीब तथा अब निम्न मध्यम किसानों, पूरी तरह सर्वहाराकृत देहाती आबादी जो औद्योगिक शहरों से वहां लगातार बढ़ती बेरोजगारी द्वारा बहिष्कृत और वापस गांवों की ओर धकेल दिए गए कुशल और अकुशल मजदूरों से निर्मित होता है। इसका मूल कारण पूंजीवाद का संकट है जिसके बढ़ने से यह और और भी बढ़ती जाएगी। दूसरी तरफ महंगाई, गिरती मांग और बढ़ती गरीबी के बावजूद अर्थव्यवस्था पर वित्तीय एकाधिकारी पूंजी के अधिकतम संभव वर्चस्व के कारण बढ़ती ही जा रही है और बढ़ती ही जाएगी। अतः न्यूनतम दैनिक मजदूरी ₹1000, नहीं तो ₹15000 मासिक बेरोजगारी भत्ता दिया जाए।

2. भयंकर रूप से मौजूद बेरोजगारी और इस कारण मजदूरों के बीच ही काम प्राप्त करने के लिए मौजूद प्रतिस्पर्धा के कारण तीव्र महंगाई के समय भी हर तरह के काम के लिये मजदूरी दर में गिरावट देखी जाती है। अतः न्यूनतम मजदूरी महंगाई के अनुपात में (inflation-linked) हो, यानी महंगाई बढ़ने पर इसकी मात्रा समानुपातिक रूप से बढ़ती जाए। मजदूरी दर को यूनियनों के साथ होने वाली संयुक्त बैठकों में तय किया जाए।

3. नियमित रोजगार लगभग किसी को नहीं मिलता है, लेकिन कुछ परिस्थितियों जैसे बरसात के मौसम में, और विभिन्न कारणों जिसमें लूट में हिस्सेदारी मुख्य बात होती है जैसे स्वयं सरकार द्वारा आरोपित बालूबंदी के समय में, रोजगार की कमी अत्यधिक तीव्र हो जाती है। अतः रोजगार की कमी के अत्यधिक तीव्र होने पर सरकार द्वारा “विशेष बेरोजगारी भत्ता” दिया जाए, जो न्यूनतम मजदूरी के बराबर हो।

4. निर्माण मजदूरों की विशाल संख्या प्रतिदिन सूर्य उगने के पहले ही अपने निकटतम तथा रोजगार की दृष्टि से संभावनामय शहरों की तरफ ट्रेनों व पैरों तथा साइकिल से कूच करती है और अधिकांशतः (90 प्रतिशत तक) काम नहीं मिलने की वजह से वापस लौटती है। जिन्हें काम मिलता है वे रात बीतने तक घर पहुंचते हैं। अक्सर काम कब खत्म होगा पता नहीं होता, क्योंकि काम के घण्टे इस क्षेत्र में बिल्कुल ही तय नहीं हैं और इस कारण अक्सर ठेकेदार और मालिक से झिकझिक और विवाद होता रहता है। देखा जा रहा है कि मजदूर रेलवे स्टेशन और सड़क के बगल में या रोड डिवाइडरों पर सोते हैं यानी किसी तरह रात बिताते हैं। अक्सर उनमें से अधिकांश जो बेकाम रह जाते हैं भूखे पेट सो जाते हैं जैसा कि पटना और अन्य बड़े शहरों में कोई भी देख सकता है। खासकर वे जो दूर दराज के गांवों से आते हैं और “बेकाम” रह जाते हैं, उनकी यह मजबूरी दिल दहला देने वाली है। अतः निर्माण मजदूरों के लिए शहरों में समुचित संख्या में निःशुल्क और सभी जरूरी सुविधाओं (जैसे पेय जल, स्वच्छ शौचालय, बिजली, प्राथमिक उपचार, क्रेच, सामुदायिक भोजनाय आदि) से संपन्न सामूहिक आवास का निर्माण हो।

5. निर्माण मजदूर जहां रोजगार के लिए इकट्ठा होते हैं उन जगहों को आधिकारिक रूप से मजदूर चौक के रूप में चिन्हित किया जाए। इन चौकों पर पेय जल, स्वच्छ शौचालय, प्राथमिक उपचार, विश्राम की उचित सुविधा आदि मौलिक सुविधाएं सुनिश्चित हों और वहां मजदूर कितनी भी देर ठहर सकें तथा अपनी सभाएं-बैठकें आदि भी कर सकें।

6. काम के घंटे तय किए जाएं जो कि ओवरटाइम मिला कर 12 से अधिक न हों। ओवरटाइम के घंटों के लिए दोगुना वेतन भुगतान सुनिश्चित किया जाए।

7. निर्माण मजदूर कल्याण बोर्ड (BOCW) द्वारा जारी लेबर कार्ड के लिए पंजीकरण की प्रक्रिया अधिकारियों व प्रशासन व्यवस्था के मजदूर विरोधी रवैये, भ्रष्टाचार और उदासीनता के कारण लगातार बाधित होती रहती है। जिनका लेबर कार्ड बना हुआ है उनको भी कल्याण बोर्ड द्वारा प्रदत्त और अन्यान्य कानूनी हक नहीं मिलता है। अतः निर्माण मजदूर कल्याण बोर्ड (BOCW) से लेबर कार्ड के लिए पंजीकरण की प्रक्रिया को सरल बनाया जाए। आवेदन जमा करने से लेकर पंजीकरण व कार्ड बनने की प्रक्रिया की समय सीमा तय हो जो 30 दिनों से अधिक नहीं हो। कार्ड के तहत लाभ प्राप्त करने का आवेदन देने और लाभ मिलने की भी ऐसी ही समय सीमा तय हो। प्रक्रिया ऑनलाइन व ऑफलाइन दोनों माध्यमों में उपलब्ध हो।

8. लेबर विभाग व कल्याण बोर्ड में अधिकारियों की जिम्मेवारी सख्ती से तय हो और अनुचित देरी व भ्रष्टाचार कर रहे अधिकारियों के लिए सजा के प्रावधान तय व सख्ती से लागू हों।

9. कल्याण बोर्ड के जरिए निर्माण मजदूरों को सामाजिक सुरक्षा का संरक्षण मिले, जैसे पीएफ, ईएसाई, बोनस, ग्रेच्युटी जैसी सुविधाएं, बुढ़ापे में पेंशन, सवेतन अवकाश, मातृत्व लाभ आदि।

10. समान काम के लिए समान वेतन का सिद्धांत निर्माण क्षेत्र में लागू हो और महिला मजदूरों को पुरुषों के बराबर वेतन मिले।

11. निर्माण मजदूरों के लिए कार्यस्थल पर सुरक्षित और गरिमापूर्ण माहौल सुनिश्चित हो। मालिक पक्ष को, खास कर बड़े नियोक्ताओं, कार्यस्थल पर उचित सुरक्षा उपायों का प्रबंध करने के साथ प्राथमिक उपचार व क्रेच आदि सुविधाएं मुहैया कराने की कानूनी बाध्यता और नहीं मुहैया कराने पर सख्त कार्रवाई सुनिश्चित हो; छोटे नियोक्ताओं के लिए यह जिम्मेदारी सरकार की हो।

12. कार्यरत मजदूर की हुई मृत्यु या दुर्घटना पर मालिक पक्ष द्वारा पीड़ित परिवार को उचित मुआवजा व कानूनी कार्रवाई सुनिश्चित हो। “उचित” मुआवजा की परिगणना हेतु सरकार वैज्ञानिक विधि अपनाते हुए एक ठोस फार्मूला ईजाद करे।

13. नियोक्ताओं द्वारा सभी निर्माण मजदूरों को कार्य संबंधित पहचान पत्र व नियुक्ति पत्र प्रदान करना अनिवार्य हो।

ग्रामीण मजदूरों की मांगें :

ग्रामीण इलाके मजदूर एवं सर्वहारा वर्ग की मूल फैक्ट्री है और दुनियां में हर कहीं वहीं से औद्योगिक मजदूरों की आपूर्ति हुई है और आज भी हो रही है। जब औद्योगिक शहरों में काम और रोजगार में कमी आई है, तो शहरों में ग्रामीण सर्वहाराओं की संख्या में इन दिनों काफी बढ़ोतरी हुई है और इस समस्या के सर्वहारा क्रांति के अतिरिक्त किसी और तरीके से हल नहीं होने की स्थिति में, और तब तक, इनकी मुख्य समस्या इनकी बढ़ती संख्या, प्रजनन से होने वाली इनकी प्रजाति की संख्या में होने वाली वृद्धि सहित, के लिए आवास की समस्या है, क्योंकि इनके पास आम गैरमजरूआ जमीन, जो अधिकांशतः पुराने और नए दबंगों के कब्जे में है, पर दावा ठोकने के अतिरिक्त और कोई चारा नहीं है, और अक्सर यह दबंगों द्वारा इन पर पाशविक हमलों की घटना में तब्दील होता है, जैसा कि बिहार और इसके जैसे अन्य राज्यों में लगातार होते देखा जा सकता है। इसलिए पहली और सबसे प्रमुख मांग तो यही है कि :

1. भूमिहीनों को तीन या पांच डिसमिल गैरमजरूआ जमीन देने के तुच्छ और भीख से दिखने वाली सरकारी घोषणा और दिखावटी बात की जगह तमाम गैमजरुआ जमीन पर ग्रामीण सर्वहाराओं के पक्के आवास के सम्पूर्ण अधिकार को सुनिश्चित किया जाए।

इसके अतिरिक्त सर्वप्रमुख मांग हैं :

2. निशुल्क, सार्वजनिक, समुचित तथा बेहतर शिक्षा तथा स्वास्थ्य सेवा को सुनिश्चित किया जाए। गांवों में (और शहरों में भी) सभी निजी शिक्षा व स्वास्थ्य के व्यापार पर और इन्हें पूंजी के मालिकों व दबंगों के हाथों में सौपने के किसी भी सरकारी प्रयास पर अविलंब रोक लगे।

3. सभी ग्रामीण और MNREGA मजदूरों के लिए पूरे साल काम की उपलब्धता, ₹1000 न्यूनतम मजदूरी, और पेंशन व अन्य सामाजिक सुरक्षा की गारंटी की जाए। प्रशासनिक प्रक्रिया में व्याप्त धांधली पर अविलंब रोक लगाई जाए।

4. ग्रामीण क्षेत्र में ASHA/आंगनवाड़ी, मिड डे मील, व अन्य आकस्मिक कर्मियों को ‘कर्मकार’ का कानूनी दर्जा व श्रम कानूनों का संरक्षण दिया जाए।

इन अधिकारों के लिए संघर्ष करने की, यानी इसके लिए जनवादी तरीके से आन्दोलन करने की छूट की, दबंगों द्वारा किये जाने वाले हमलों के प्रतिकार की, आम सभाओं में हस्ताक्षरित मांगों पर अमल के लिए सरकार पर दवाब बनाने के हक की, और यहां तक कि सरकार या इसके अमले के द्वारा की जाने वाली लापरवाही के खिलाफ जनवादी तरीके से विद्रोह करने का अधिकार सुनिश्चित हो।

कोयला क्षेत्र की मांगें :

1. कोयला क्षेत्र में आउटसोर्सिग/ठेकाप्रथा व निजीकरण पर रोक!

2. कोयला क्षेत्र में कार्यरत आउटसोर्सिंग/ठेका मजदूरों को समान काम का समान वेतन तथा सुविधाएं व स्थायीकरण!

3. रिटायर्ड कोयला मजदूरों के पेंशन का पे रिवीजन तथा वर्तमान बाजार दर पर पेंशन में बढ़ोतरी!

4. पीएफ-पेंशन फंड को शेयर बाजार में लगाने पर रोक!

5. नयी खुल रही कोल सेक्टर में क्षेत्र के सभी नौजवानों के लिए कम से कम 50% नयी स्थायी बहाली!

6. निजी मालिकों को दी जा रही कोल ब्लॉक को निरस्त करो तथा उनसे हो रही उत्पादित कोयला को बाजार में बेचने पर रोक!