चार्ली चैपलिन
December 20, 202219वीं सदी के महान कालजयी अभिनेता, फिल्म निर्माता व संगीतकार की 45वीं मृत्यु वार्षिकी पर उनके द्वारा लिखित व निर्देशित फिल्म ‘द ग्रेट डिक्टेटर’ से
माफी चाहूंगा, मगर मैं बादशाह नहीं बनना चाहता, मुझे ये सब करना नहीं आता। मैं किसी पर हुकूमत नहीं करना चाहता, किसी को हराना नहीं चाहता। मुमकिन हो तो हर किसी की मदद करना चाहूंगा – चाहे जवान हो, बूढ़े, काले या गोरे। हम सब एक दूसरे की मदद करना चाहते हैं, इंसान की फितरत यही है। हम सब एक दुसरे के खुशी के सहारे जीना चाहते हैं, न कि एक दुसरे के दुःख के सहारे। हम नहीं चाहते एक दूसरे से नफरत और घृणा करना। इस धरती पर सभी के लिए जगह है। प्रकृति में इतनी प्रचुरता है कि सभी की जरूरतें पूरा कर सकती है। जिंदगी आजाद और खूबसूरत हो सकती है, लेकिन हम रास्ता भटक गये हैं। लालच ने इंसान के जमीर को विषाक्त कर दिया है, दुनिया को नफरत की दीवारों में जकड़ लिया है, हमें कष्ट और खून-खराबे की खाई में धकेल दिया है। हमने तेजी पा ली, लेकिन खुद को ही घरों में बंद कर लिया है। हमें प्रचुरता दे सकने वाली मशीनें हमारी जरूरतें पूरा नहीं कर पा रही। हमारे ज्ञान ने हमें कुटिल और, चालाकी ने कठोर और बेरहम बना दिया है। हम सोचते ज्यादा हैं और महसूस कम करते हैं। मशीनों से ज्यादा हमें इंसानियत की जरूरत है। चालाकी से ज्यादा हमें नेकी और दया चाहिए। इसके बिना जीवन हिंसक हो जाएगा और फिर सब कुछ खत्म हो जाएगा। … हवाई जहाज और रेडियो ने हमें एक दूसरे के करीब ला दिया। इन आविष्कारों के मूल में है – इंसानियत, सार्वभौम भाईचारा, और हम सब की एकता। इस वक्त भी मेरी आवाज दुनिया भर के करोड़ों लोगों तक पहुंच रही है, करोड़ों निराश-हताश मर्दों, औरतों और बच्चों तक, जो एक ऐसी व्यवस्था के शिकार हैं जहां मासूमों को दंडित व प्रताड़ित किया जाता है। मुझे सुन रहे सभी लोगों से मैं कहना चाहता हूं – निराश न हों! जो बदहाली आज हमारे ऊपर थोपी गयी है उसकी वजह है लालच, उन लोगों की नफरत जो मानवजाति की प्रगति से डरते हैं। लेकिन एक दिन इस नफरत का अंत होगा, और तानाशाहों का खात्मा होगा, उन्होंने जनता से जो सत्ता छिनी है वह जनता के पास वापस जाएगी। और जब तक लोग मरने के लिए तैयार हैं, आजादी को कुचला नहीं जा सकता। सिपाहियो! अपने आप को उन धोखेबाजों के हाथों मत सौंपो जो तुमसे नफरत करते हैं, तुम्हें गुलाम बनाकर रखते हैं, तुम्हारे जीवन पर जिनका कब्जा है, जो तुम्हें बताते हैं कि तुम्हें क्या करना है, क्या सोचना है और क्या महसूस करना है! जिनका तुम्हारे चलने, खाने पर नियंत्रण है, जो तुम्हें लद्दू जानवर समझते हैं, तोप के बारूद की तरह इस्तेमाल करते हैं। खुद को इन बनावटी लोगों के हवाले मत करो – मशीनी दिल और मशीनी दिमाग वाले ये मशीनी लोग! तुम मशीन नहीं हो! तुम लद्दू जानवर भी नहीं हो! तुम इंसान हो! तुम्हारे दिलों में इंसानों के लिए मुहब्बत है। तुम नफरत नहीं करते! नफरत तो वे करते हैं जिन्हें कभी प्यार नहीं मिला! सिपाहियो! गुलामी के लिए नहीं, आजादी के लिए लड़ो! सेंट ल्यूक के 17वें अध्याय में लिखा है, “ईश्वर का साम्राज्य इंसान के भीतर है” – किसी एक व्यक्ति में नहीं, चंद लोगों में नहीं बल्कि सभी इंसानों के भीतर! तुम में भी! तुम्हारे यानि जनता के हाथ की ताकत असली ताकत है – मशीनों को बनाने की ताकत! खुशियां लाने की ताकत! तुम्हारे यानी जनता के पास जीवन को सुंदर और उन्मुक्त बनाने, इसे एक बेहतरीन यात्रा में बदलने की ताकत है। तो फिर – जनतंत्र के नाम पर – आओ उस ताकत का इस्तेमाल करें – आओ एकजुट हो जाएं। आओ, एक नई दुनिया के लिए संघर्ष करें – एक ऐसी दुनिया जहां सभी के पास काम होगा, जहां युवाओं का भविष्य और बूढ़ों का वर्तमान सुरक्षित होगा। इसी तरह के वादों में फसा कर, गुंडों ने सत्ता हथिया ली है। लेकिन वे झूठ बोलते हैं! वे ये वादे पूरा नहीं करते। कर भी नहीं सकते! तानाशाह खुद आजाद हो जाता है लेकिन जनता को गुलाम बनाये रखता है! आओ, उस वादे को पूरा करने के लिए लड़ें! आओ, इस दुनिया को मुक्त करने के लिए संघर्ष करें – सभी राष्ट्रीय सीमाओं से मुक्ति – लालच से मुक्ति – नफरत और असहिष्णुता से मुक्ति। आओ, एक तर्कशील दुनिया के लिए लड़ें, एक ऐसी दुनिया जहां विज्ञान और विकास मानवजाति को एक खुशहाल जीवन देगा। सिपाहियो! जनतंत्र के लिए, आओ हम सब एकजुट हों! (1940)