“गरुड़ कभी-कभार मुर्गियों से भी नीची उड़ान भर सकते हैं लेकिन मुर्गियां कभी गरुड़ों की ऊंचाई को नहीं छू सकती”
January 24, 2023रोजा लक्जम्बर्ग के बारे में लेनिन की यादगार टिप्पणी – लेनिन के अधूरे लेख ‘प्रचारक की टिप्पणियों’ का एक हिस्सा
लेख परिचय
रचना काल: फरवरी, 1922 के अन्त में लिखित
प्रथम प्रकाशन: प्रावदा अंक 87 में 16 अप्रैल 1924 को प्रकाशित, पाण्डुलिपि के अनुसार प्रकाशित
स्रोत: लेनिन, कलेक्टेड वकर्स, द्वितीय अंग्रेजी संसकरण, मास्को, 1965, खण्ड 33, पृष्ठ 204-211, अंग्रेजी अनुवाद: डेविड और जार्ज हेना से हिन्दी में अनूदित
“… कम्युनिस्ट अन्तरराष्ट्रीय के तीसरे कांग्रेस में अति-सावधानी के चलते ही मुझसे हुई एक गलती को मुझे जरूर स्वीकार करना चाहिए। उस कांग्रेस में मैं अधिकतम दक्षिण सिरे पर था। मैं इस बाबत सुनिश्चित था कि यही एकमात्र ग्रहण योग्य सही अवस्थिति थी, जबकि प्रतिनिधियों के एक बड़े (और प्रभावशाली) समूह ने, जिसका नेतृत्व जर्मन, हंगेरियाई और इतालवी कामरेड कर रहे थे, असाधारण रूप से “वाम” और गलत ढंग से वामपन्थी अवस्थिति ले रखी थी, और बहुत अधिक मौकों पर, उन परिस्थितियों का संजीदगी से आकलन करने की जगह जो तात्कालिक और सीधे क्रांतिकारी कार्रवाई के लिहाज से बहुत अधिक अनुकूल नहीं थी, वे पूरे जोशोखरोश के साथ छोटी लाल झण्डियां हिलाने में मशगूल थे। सावधानी की भावना और वामपंथ की ओर इस निस्संदेह भटकाव को रोकने के लिए, जो कि कम्युनिस्ट अन्तरराष्ट्रीय के सम्पूर्ण रण-कौशल को एक फर्जी दिशा दे देता, मैंने लेवी के समर्थन में जो कुछ भी मुमकिन था वह किया। मैंने यह तर्क दिया कि शायद उसका दिमाग फिर गया हो (मैं इससे इनकार नहीं करता कि उसका दिमाग फिर चुका था) क्योंकि वह वामपंथियों की गलतियों से बेहद डरा हुआ था, और मैंने यह दलील दी कि ऐसा कम्युनिस्टों के साथ अक्सर हुआ है कि उनका दिमाग फिरने के बाद फिर ‘वापस’ अपनी जगह पर आ गया हो। वामपंथियों के दबाव में यह स्वीकार करते हुए भी कि लेवी एक मेनशेविक था, मैंने कहा कि इस तथ्य को स्वीकार करने मात्र से सवाल खत्म नहीं हो जाता है। मसलन, रूस में मेनशेविकों और बोलशेविकों के बीच संघर्षों के पंद्रह वर्षों का पूरा इतिहास (1903-17) साबित करता है और जैसा कि तीन रूसी क्रांतियां भी सिद्ध करती हैं कि आम तौर पर मेंशेविक पूरी तरह गलत थे और वे, दरअसल, मजदूर वर्ग के आंदोलन में पूंजीपति वर्ग के एजेण्ट थे। यह तथ्य निर्विवाद है। लेकिन यह निर्विवाद तथ्य अन्य तथ्यों को निरस्त नहीं करता कि अलग-अलग मामलों में मेनशेविक सही थे और बोलशेविक गलत थे, जैसे मिसाल के तौर पर 1907 में स्तोलिपिन ड्यूमा के बहिष्कार के सवाल पर।”
“ लोमड़ी पकड़ने जैसे महत्वहीन चीज से हासिल किया गया राजनीतिक सबक भी उपयोगी सिद्ध हो सकता है। एक ओर, अत्यधिक सावधानी से गलतियां होतीं हैं। वहीँ दूसरी ओर, यह बात भी नहीं भूलना चाहिए कि यदि हम महज “भावना” में बह जाये या परिस्थिति का संजीदा ढंग से आकलन करने के बजाय छोटी लाल झण्डियां हिलाने में मशगूल हो जायें, तो हम न सुधारे जाने योग्य गलतियां कर सकते हैं, हम ऐसे वक्त पर कुर्बान हो सकते हैं जबकि इसकी एकदम ही कोई जरूरत नहीं हो, बावजूद इसके कि कठिनाइयां अपार हों।”
“रोजा लक्जमबर्ग के ठीक उन्ही लेखों को पुनर्प्रकाशित करने के माध्यम से जिनमें वे गलत थीं, पॅाल लेवी अब पूंजीपति वर्ग – और, नतीजतन, इसके एजेण्ट, दूसरे और ढाईवें अन्तरराष्ट्रीय – की अनुकम्पा की छाया में आना चाहता है। इसका जवाब हम एक सुविदित रूसी नीतिकथा4 की दो पंक्तियों को उद्धृत कर के देंगे : “गरुड़ कभी-कभार मुर्गियों से भी नीची उड़ान भर सकते हैं लेकिन मुर्गियां कभी गरुड़ों की ऊंचाई को छू नहीं सकतीं।” रोजा लक्जमबर्ग पोलैंड के आजादी के मामले में गलती पर थीं; 1903 में मेनशेविज्म के अपने आकलन के मामले में वे गलती पर थीं; पूंजी संचय के सिद्धान्त के मामले में वे गलती पर थीं; वे जुलाई 1914 में गलती पर थीं जब प्लेखानोव वन्देर्वेल्दे, काउत्स्की और दूसरों के साथ मिलकर उन्होंने मेनशेविकों और बोलशेविकों के बीच एकता की वकालत की थी; 1918 में जेल में उन्होंने जो लेखन किया उसमें वे गलती पर थीं (इसमें से अधिकांश गलतियों को उन्होंने 1918 के अन्त और 1919 के आरम्भ में सुधार लिया) लेकिन इन गलतियों के बावजूद वे गरुड़ थीं और हमारे लिए वही बनी रहेंगी। और न केवल पूरी दुनिया के कम्युनिस्ट उनकी स्मृति को अपने ह्रदय में संजोये रखेंगे बल्कि उनकी जीवनी और उनकी सम्पूर्ण रचनायें (जिसके प्रकाशन में जर्मन कम्युनिस्ट असाधारण रूप से विलम्ब कर रहे हैं, जिसे, भयानक संघर्ष में वे जैसा जबरदस्त नुकसान उठा रहे हैं उसके मद्देनजर, आंशिक रूप से ही क्षम्य समझा जा सकता है) दुनिया भर के कम्युनिस्टों के अनेक पीढ़ियों के प्रशिक्षण लिए उपयोगी पाठ्य-पुस्तकों की भूमिका निभायेंगी। “4 अगस्त, 19145 के बाद से जर्मन सामाजिक-जनवाद एक बदबुदार लाश है”— यह वक्तव्य रोजा लक्जमबर्ग के नाम को अन्तरराष्ट्रीय मजदूर वर्ग के आन्दोलन के इतिहास में प्रसिद्ध करेगा। और, जाहिरा तौर पर, मजदूर-वर्गीय आन्दोलन के पिछवाड़े में भी, जहां गोबर के ढेर पर पॅाल लेवी, श्वेइदेमान, काउत्स्की जैसी मुर्गियां और उनकी पूरी बिरादरी महान कम्युनिस्टों द्वारा की गयी गलतियों पर कुड़कुड़ानी झाड़ेंगी। सबकी अपनी अपनी फितरत है।”
“जहां तक सेर्राती का सवाल है, वह एक सड़े अण्डे की तरह है जो जोर की आवाज और खास तौर पर कडुवी बदबू के साथ फूटता है। “उसके” कांग्रेस के एक प्रस्ताव से, जो कम्युनिस्ट अन्तरराष्ट्रीय के कांग्रेस के फैसलों के प्रति अधीनता के लिए तैयार होने की घोषणा करती है, भ्रमित होने कि गुञ्जाइश क्या कम है, जो उसके बाद वह बूढ़े लाज्जारी को कांग्रेस में भेजता है और अन्त में मजदूरों को घोड़ा बेचनेवालों की बेशर्मी के साथ धोखा देता है? इतालवी कम्युनिस्ट जो इटली में क्रान्तिकारी सर्वहारा वर्ग की एक असली पार्टी को प्रशिक्षित कर रहे हैं, अब इटली की मेहनतकश जनता को राजनीतिक धोखधड़ी और मेनशेविकवाद का वास्तविक सबक सिखा सकते हैं। इसका उपयोगी, निरोधक प्रभाव जल्दी ही महसूस नहीं होगा, न ही ऐसा अनेक ऐसे वास्तविक सबकों को दुहराये जाने के बिना होगा, लेकिन इसे महसूस किया जायेगा। इतालवी कम्युनिस्टों की विजय सुनिश्चित है यदि वे अपने को जनता से अलगाव में न डाल लें, यदि वे आम कार्यकर्ताओं के समक्ष सेर्राती की सभी धोखाधड़ियों का व्यावहारिक रूप से पर्दाफाश करने के कठिन काम में धैर्य न खोयें, यदि वे जब भी सेर्राती “अ” बोले तो “ऋण अ” बोलने के बहुत ही आसान और खतरनाक प्रलोभन के वशीभूत न हों, यदि वे निरन्तर जनता को एक क्रान्तिकारी विश्व दृष्टिकोण अपनाने के लिए प्रशिक्षित करें और उन्हें क्रान्तिकारी कार्रवाई के लिए तैयार करें, यदि वे इसी के साथ फासीवाद के व्यावहारिक और शानदार (हालांकि महंगे) वास्तविक सबकों का व्यावहारिक लाभ उठायें।”
“लेवी और सेर्राती अपने आप में लाक्षणिक नहीं हैं। वे लक्षण हैं निम्न-पूंजीवादी जनवाद के चरम वामपन्थ के आधुनिक किस्म के, “विपरीत पक्ष” के शिविर के, अन्तरराष्ट्रीय पूंजीपतियों के शिविर के, उस शिविर के जो हमारे खिलाफ है। गोम्पर्स से सेर्राती तक “उनका” पूरा शिविर हमारे पीछे हटने पर, हमारे “नीचे उतरने” पर दीदें फाड़ रहा है, हर्षोन्मत्त हो रहा है या फिर घड़ियाली आंसू बहा रहा है। उन्हें दीदें फाड़ने दो, अपने विदूषकीय करतब करने दो। सबकी अपनी अपनी फितरत है। लेकिन हमें कोई भ्रम नहीं पालना चाहिए या हताशा के वशीभूत नहीं होना चाहिए। यदि हम अपनी गलतियों को स्वीकार करने से नहीं डरते, बार-बार उन्हें सुधारने की कोशिश करने से नहीं डरते — तो हम शिखर तक जरूर पहुंचेंगे। गोम्पर्स से सेर्राती तक के अन्तरराष्ट्रीय ब्लॅाक के मनोरथ की असफलता तय है।”
नोट –
[4] यहां इवान क्रिलोव की नीतिकथा गरुड़ और मुर्गियां का जिक्र है।
[5] 4 अगस्त 1914 को राईसटैग में सामाजिक-जनवादी धड़े ने शाही सरकार को 50,000 लाख मार्क का युद्ध ऋण देने के पक्ष में पूंजीवादी प्रतिनिधियों के साथ मतदान किया, और इस तरह विल्हेल्म द्वितीय की साम्राज्यवादी नीतियों का अनुमोदन किया।
लेनिन के एक अधूरे लेख से छापे गये इस उद्धरण के संदर्भ में एक छोटी टिप्पणी
रोजा और लिब्क्नेख्त की शहादत 15 जनवरी 1919 को हुई थी। हम उनको शिद्दत से लाल सलाम पेश करते और याद करते हैं। उनकी याद में लेनिन के एक अधूरे लेख (‘प्रचारक की टिप्पणियां’) का जो हिस्सा यहां छापा गया है वह उसके तीसरे भाग (III – लोमड़ी पकड़ना, लेवी और सेर्राती) का दूसरा पाराग्राफ और अंतिम तीन पाराग्राफ है। हम स्वीकारते हैं कि लेनिन के इस अधूरे लेख के एक हिस्से को छापने से पाठकों को इस लेख का संदर्भ समझने में कठिनाई होगी । इसलिए टिप्पणी जरूरी हो गई। लेनिन का यह लेख अधूरा है लेकिन इसका एक असाधारण महत्व है। इसमें लेनिन रोजा की गलतियों और उनके महान योगदानों की चर्चा एक साथ, खुद अपनी और बौल्शेविकों के द्वारा पूर्व में की गई गलतियों को स्वीकारते हुए एवं तीसरे कम्युनिस्ट इंटरनेशनल में चली एक बहस के खास का संदर्भ देते हुए, करते हैं। लेनिन इसमें पॉल लेवी, जो रोजा और लिब्क्नेख्त की हत्या के बाद जर्मन कम्युनिस्ट पार्टी का शीर्षस्थ नेता था, तथा सेर्राती, जो इटली की सोशलिस्ट पार्टी का एक बड़ा नेता था, की निर्ममता से खोज-खबर तो लेते ही हैं, लेकिन मुख्य बात उस बारीकी को समझना है जिसके साथ लेनिन तीसरे कम्युनिस्ट इंटरनेशनल में जर्मन, हंगेरिआई और इतालवी धड़े के “असाधारण” वामपंथी भटकावों से लड़ते हुए पॉल लेवी के पक्ष से असावधानी वश की गई अपनी गलती को, विपरीत पक्ष की ओर से फिर से “असावधानी” वश गलती करने का कोई स्कोप नहीं देते हुए, बेबाकी से स्वीकार करते हैं।
रोजा और लिब्क्नेखत की हत्या :
कुछ अनसुलझे तथ्य
जब 15 जनवरी 1919 को बर्लिन की कड़ाके की ठंड में रोजा को उनके वैचारिक सहयात्री कार्ल लिब्कनेख्त के साथ गिरफ्तार किया गया था। माना जाता है कि दोनों को ”बर्लिन के विल्वेर्स अपार्टमेंट ले जाया गया और फिर वहां से इडेन नाम के एक होटल में ले जाया गया। पहले कार्ल लिब्कनेख्त को रायफल के बट से मारा गया फिर धक्का देकर उसके पीठ में गोली मार दी गई। फिर थोड़ी देर बाद रोजा को भी पहले रायफल के बट से मारा गया और गोली मारकर उसकी लाश को बर्लिन के पास बनने वाली एक नहर में फेंक दिया गया। कई महीनों बाद वहां से रोजा का कंकाल बरामद किया गया।”
रोजा की मृत्यु को लेकर विवाद अंत तक बना रहा। रोजा का शव रोजा का ही है इसके लिए ”13 जून 1919 को ऑटोप्सी की गई। और उसके बाद उसी दिन फ्रीडरिख स्फेल्ड कब्रिस्तान में रोजा को दफना दिया गया।” लेकिन यह अंत तक पूरी तरह साबित नहीं हो सका कि जिसे दफना दिया गया है वह शव वास्तव में रोजा का ही था।