ऑफिशियल सेंसरशिप की आहट

January 24, 2023 0 By Yatharth

एम असीम

गत 17 जनवरी को केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स व आईटी मंत्रालय ने 2021 के इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी नियमों में संशोधन का मसौदा जारी किया है। इसमें यह नियम भी प्रस्तावित किया गया है कि अगर सरकारी कामकाज की खबरें जारी करने वाले प्रेस इनफार्मेशन ब्यूरो (पीआईबी) की फैक्ट चेक इकाई किसी खबर को फेक या झूठा करार दे देगी तो सभी ऑनलाइन प्लेटफार्म को उसे तुरंत हटा देना होगा। यह नियम सिर्फ ऑनलाइन खबरी वेबसाइटों पर ही लागू नहीं होगा। फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम, यू ट्यूब, आदि सोशल मीडिया प्लेटफार्म के लिए भी ऐसी सामग्री को हटाना जरूरी होगा। इसके अतिरिक्त इंटरनेट सर्विस प्रदाता व वेबसाइट होस्ट करने वाली कंपनियों के लिए भी जरूरी होगा कि वह ऐसी खबरों के लिंक को तुरंत ब्लॉक कर दें। स्पष्ट है कि ऐसी स्थिति में ऐसी कोई भी खबर या सूचना सभी इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों से पूरी तरह गायब हो जाएगी।

इतना ही नहीं, खबर को फेक के नाम पर हटवाने का अधिकार सिर्फ पीआईबी को ही नहीं दिया गया है। कोई भी सरकारी विभाग या अन्य कोई भी एजेंसी जिसे केंद्र सरकार अधिकृत करे, उसके द्वारा खुद के लिए अप्रिय या असुविधाजनक लगने वाली किसी भी खबर को फेक करार देकर सभी सूचना माध्यमों से हटवा देने का अधिकार प्राप्त होगा।

इसका साफ मतलब है कि केंद्र सरकार बिना सेंसरशिप का नाम लिए ही समाचारों व सूचनाओं पर सेंसरशिप लागू कर सकेगी। इतना ही नहीं, वह इस काम को निजी एजेंसियों को आउटसोर्स भी कर सकेगी। हालांकि ट्विटर, फेसबुक या इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर तो पहले ही सरकार के कहने से बिना कोई कारण बताए ही बहुत सी सामग्री को हटाना आरंभ कर चुके हैं और ऐसी सूचनाएं हटाने में भारत सरकार सबसे आगे बताई जाती है, पर इन नियमों के लागू होने के बाद सभी ऑनलाइन समाचार माध्यमों को भी ऐसी रिपोर्टों को हटाना आवश्यक हो जाएगा जिन्हें कोई सरकारी विभाग या आउटसोर्स की गई एजेंसी फेक करार दे दे। अतः यह सूचना माध्यमों पर साफ सेंसरशिप लागू करने की स्पष्ट आहट है।

वैसे तो पूंजीवादी व्यवस्था में सभी सूचना माध्यमों पर अनौपचारिक व अप्रत्यक्ष सेंसरशिप होती ही है। आज सभी समाचार माध्यम एकाधिकारी कॉर्पोरेट पूंजी के मालिकाने में हैं या अपने अस्तित्व हेतु कॉर्पोरेट व केंद्र/राज्य सरकारों द्वारा दिए गए विज्ञापनों से होने वाली आय व अन्य मदद पर निर्भर हैं। अतः वे खुद ब खुद ही अपने ऊपर एक किस्म की सेल्फ सेंसरशिप अख्तियार कर लेते हैं और शासक वर्ग के हितों के विपरीत किसी खबर या लेख का उनमें प्रकाशित प्रसारित होना लगभग नामुमकिन ही होता है। जो कुछ पत्रकार कभी ऐसा कर भी देते हैं उनको भी सरकारी दबाव में नौकरियों से निकाले जाने की घटनाओं से भी हम सब बखूबी परिचित हैं। सिर्फ पूंजीपति वर्ग की परस्पर होड़ के अंतर्विरोधों के चलते ही कुछ जानकारियां सार्वजनिक दायरे में आना संभव होता है। कहा ही जाता है कि पूंजीवादी मीडिया में अभिव्यक्ति की आजादी तो होती है मगर सिर्फ पूंजीपति वर्ग के हित के विचारों हेतु।

किंतु पूंजीवाद के मौजूदा नवउदारवादी दौर में जब एकाधिकारी वित्तीय पूंजी के हित बुर्जुआ राजसत्ता को पूरी तरह नियंत्रित करते हैं और फासीवाद पूंजीवादी व्यवस्था का अनिवार्य रूझान बन चुका है, तब पूंजीवाद के लिए संसदीय व्यवस्था वाले बुर्जुआ जनवाद का परदा भी आवश्यक नहीं रहा है। भारत में भी वित्तीय एकाधिकार पूंजी द्वारा स्पांसर्ड नरेंद्र मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद संसद, न्यायपालिका, चुनाव आयोग, मीडिया, शिक्षा व्यवस्था, पुलिस-फौज की पूर्व के दौर की प्रतीत होने वाली निष्पक्षता को नोंच फेंका जा रहा है और ये सभी संस्थाएं फासीवाद की राह में अड़चन के बजाय उसकी राह सुगम करने में जुट गई हैं। पिछले सालों में पूरे कॉर्पोरेट मीडिया का रवैया हम सबके सामने स्पष्ट ही है। इसलिए आम लोगों के बीच इसे गोदी मीडिया कहा जाने लगा है।

वास्तव में देखें तो यह गोदी मीडिया व सत्तारूढ़ पार्टी का आईटी सेल ही आज फेक खबरों का सबसे बड़ा स्रोत व कारखाना बने हुए हैं। खास तौर पर विरोधी राजनीतिक दलों, मजदूर वर्ग, अल्पसंख्यकों आदि के खिलाफ नफरत फैलाने के लिए फेक सूचनाएं गढ़ने व फैलाने में ये जुटे ही रहते हैं जिनका पर्दाफाश करना ही अभी सभी जनपक्षधर व्यक्तियों व समूहों के लिए एक अत्यंत भारी काम बना हुआ है। फिर पीआईबी की फैक्ट चेक इकाई तो अपनी कार्य शैली के लिए बदनाम ही है। यह इकाई तो खुद दूसरे सरकारी विभागों द्वारा जारी सूचनाओं को फेक न्यूज घोषित बताई जाती पकड़ी गई है। अतः इसके द्वारा फेक न्यूज की सफाई का दावा ऐसे ही झूठ नजर आता है। अतः एडिटर गिल्ड ऑफ इंडिया ने एक बयान में इसे ठीक ही सेंसरशिप का खतरा करार दिया है।

किंतु कॉर्पोरेट पूंजी पर पूर्ण निर्भरता से कुछ हद तक बचे चंद छोटे समाचार प्लेटफार्म या जनपक्षधर राजनीतिक कार्यकर्ताओं द्वारा संचालित मीडिया अभी भी हैं जिनके माध्यम से कुछ सूचनाएं अभी भी प्रसारित हो रही हैं, हालांकि इनकी पहुंच अभी अत्यंत सीमित है। किंतु पूंजीवाद का आर्थिक संकट जैसे जैसे गहरा रहा है, राजनीतिक अंतर्विरोध जैसे तीक्ष्ण हो रहे हैं, जनअसंतोष का जोखिम जैसे बढ़ रहा है, फासीवादी सत्ता के लिए इन्हें भी बर्दाश्त करना असंभव होता जा रहा है। ये नये नियम इन पर भी पूरी तरह नकेल कसने की तैयारी हैं।