आग है फैली हुई काली घटाओं की जगह’ – हबीब जालिब

March 13, 2023 0 By Yatharth

प्रगतिशील शायर की याद में उनकी नज्म

आग है फैली हुई काली घटाओं की जगह

बद-दुआएं हैं लबों पर अब दुआओं की जगह

इंतिखाब-ए-अहल-ए-गुलशन पर बहुत रोता है दिल

देख कर जाग-ओ-जग़्न को खुश-नवाओं की जगह

कुछ भी होता पर न होते पारा-पारा जिस्म-ओ-जां

राहजन होते अगर उन रहनुमाओं की जगह

लुट गई इस दौर में अहल-ए-कलम की आबरू

बिक रहे हैं अब सहाफी बेसवाओं की जगह

कुछ तो आता हम को भी जां से गुजरने का मजा

गैर होते काश ‘जालिब’ आश्नाओं की जगह