9 अगस्त क्रांति दिवस को “फासीवादी शक्तियों, भारत छोड़ो” के नारे के साथ मनायें!

August 17, 2023 0 By Yatharth

आईएफटीयू (सर्वहारा) का आह्वान

साथियों!

         9 अगस्त ”क्रांति दिवस” के दिन दस केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के द्वारा श्रमिकों का एक दिन का महापड़ाव सतमूर्ति शहीद स्‍थल के पास रखा गया है। इसमें आईएफटीयू (सर्वहारा) भी शामिल है ताकि मोदी सरकार की घोर मजदूर विरोधी, जन विरोधी एवं धार्मिक भेदभाव तथा नफरत के आधार पर समाज एवं देश को बांट देने और धर्म एवं जाति के आधार पर दंगे करवा कर पूरी मानवजाति को लहूलुहान कर देने की मोदी सरकार की साजिशों के विरुद्ध उठ रही हर प्रकार एवं स्‍तर की आवाज को, खासकर मजदूर वर्ग से आ रही आवाज को एकताबद्ध करते हुए उसे और भी प्रखरता, स्‍पष्‍टता तथा मजबूती प्रदान की जा सके।

जब हम 2014 के बाद से भाजपा शासन के 9 वर्षों का जायजा लेते हैं तो यह सच है कि इन 9 सालों में हुई घटनाएं मजदूर मेहनतकश वर्ग सहित आम लोगों की जिंदगी और उनके लिए लड़ने वालों के ऊपर जघन्य व क्रूर हमले की कहानी दिखाती है। आम लोगों के एक बड़े हिस्से के ऊपर अकल्पनीय दुःख, संकट और विनाश के बादल मंडराते नजर आते हैं। देश की बहुमत आबादी ने पिछले 75 वर्षों के दौरान जो कुछ भी प्रगति प्राप्‍त की थी आज उस पर बड़ा हमला चल रहा है। और ज्‍यादातर मामले में कहीं कोई सुनवाई नहीं होती है। इससे स्‍वत: पता चलता है कि देश का शासन किस तरह फासिस्‍ट शासन में तब्‍दील होता जा रहा है। इस तरह हमारे संघर्षो और बलिदानों द्वारा हासिल सारे जनवादी और प्रगतिशील अधिकार आज खतरे में हैं। स्वयं संविधान, जो पूंजीपति वर्ग का ही संविधान है और मजदूर वर्ग को लड़कर अधिकार हासिल करने का सीमित अवसर देता है, आज वह भी खतरे में है। मजदूर वर्ग को यह समझना जरूरी है कि अगर फासीवाद की पूर्ण विजय हो जाती है, तो देश ही नहीं विश्व के आम लोगों के दुखों व तकलीफों में और इजाफा ही होगा। भारत में फासीवाद की विजय से पूरे विश्व की फासीवादी ताकतों का मनोबल काफी बढ़ेगा।

यह एक फासीवादी शासन का ही लक्षण है कि महंगाई झेलते जाने की आम जनता की मजबूरी को आज देशभक्ति बताया जा रहा है! कीमतें लगातार बढ़ रही हैं। आवश्यक वस्तुओं जैसे पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस, और जीवन रक्षक दवाओं तक के दाम लगातार बढ़ रहे हैं। भेदभावपूर्ण कर निर्धारण की हालत यह है कि टैक्स का अधिकाधिक बोझ अप्रत्‍यक्ष करों के रूप में गरीब जनता उठा रही है। दूसरी तरफ, मजदूरी और वेतन घट रहे हैं। लेकिन इसे भी देश के विकास में लोगों का योगदान बताया जा रहा है! देश में भुखमरी के आंकड़े चौकाने वाले स्तर पर पहुंच गए हैं। 2021 के वैश्विक भूख सूचकांक में भारत 116 देशों में 107 वें स्थान पर है। लेकिन मोदी सरकार शायद इसे भी गर्व की चीज मानती है, तभी इस सरकार को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है। सरकार तो उल्‍टे आईसीडीएस और मिड डे मील तथा मनरेगा जैसी योजनाओं पर खर्च लगातार कम करते जा रही है। फासीवादी मानसिकता के लोग इसे भी देश के विकास की मद में जनता का योगदान बताने की चेष्‍टा कर रहे हैं।

मोदी सरकार द्वारा पारित चार श्रम संहिताओं को लें। ये मजदूर वर्ग को पूंजी का गुलाम बनाने वाली संहितायें हैं। संगठित होने एवं सामूहिक सौदेबाजी के अधिकारों सहित मजदूर वर्ग के अन्‍य सारे अधिकारों को पूरी तरह छीन लेने का उपक्रम इन नये श्रम सहिंताओं में शामिल है। इसी तरह नई शिक्षा नीति (एनईपी 2020) को लें। इसके जरिये अच्छी शिक्षा को आम जनता से छीन लेने का काम किया गया है। सार्वजनिक उपक्रमों को बंद किया जा रहा है या फिर उन्‍हें निजी स्वामित्व में कौड़ियों के भाव बेचा जा रहा है। हर जगह बड़े पैमाने पर ठेका प्रथा लागू है। उद्योगों में नियमित और बारहमासी काम के अवसर खत्‍म हो चुके हैं।

इस तरह पिछले 9 सालों में पूरे देश के समक्ष यह शीशे की तरह साफ हो चुका है कि भाजपा और आरएसएस की राजनीति घोर रूप से पूंजीपक्षीय राजनीति है। इसी को छुपाने के लिए ऊपर से वह नफरत और धार्मिक व जातीय भेदभाव को बढ़ाने एवं दंगे व आगजनी की फासीवादी राजनीति करती है जिसका मुख्‍य मकसद बड़े वित्‍तीय पूंजीपतियों की खुली नंगी तानाशाही स्‍थापित करने का रास्‍ता साफ करना है। धार्मिक भेदभाव और नफरत की राजनीति से आम लोगों का ध्‍यान भटकाने में भी मदद मिलती है ताकि वे महंगाई, बरोजगारी, भुखमरी, कंगाली, भ्रष्‍टाचार, दमन व उत्‍पीड़न आदि के कारणों से लड़ने के बदले आपस में लड़ने लगें। और ऐसा हुआ भी है। मोदी के सारे वायदे खोखले साबित हुए लेकिन एकमात्र हिंदू-मुस्लिम करके भाजपा चुनावों में जीत हासिल करती रही है।

भाजपा को मिलने वाले राजनीतिक चंदे से भी हम इस बात का सहज अनुमान लगा सकते हैं कि असल में मोदी सरकार किसकी मुलाजिम है और मोदी सरकार की मदद में पीछे थैली लेकर कौन खड़ा है। बदले में मोदी अपने कॉर्पोरेट मित्रों के दसियों लाख करोड़ का कर्ज माफ करते हैं। यह भी देखना दिलचस्‍प है कि मोदी जनता के टैक्‍स के पैसे का किस तरह से अपने लिये भी खुलकर और निर्लज्‍जता से इस्‍तेमाल (वास्‍तव में दुरुपयोग) करते हैं। सबसे बढ़कर, वे अपनी छवि चमकाने पर करोड़ों रूपयों का खर्च करते हैं, लेकिन जनता को पांच किलो अनाज देकर इतना इतराते हैं जैसे ये पैसा उनका अपना कमाया हुआ पैसा हो। सच्‍चाई यह है कि यह आम जनता ही है जो अप्रत्‍यक्ष करों (जैसे कि जीएसटी जो मोदी की कृपा से आटा, ब्रेड और कलम-कॉपी पर भी लगा दिया गया है) से खजाना भर कर सरकारों का खर्च वहन करती है, न कि सरकार जनता का। यह एक गलत नैरेटिव है जिसे सबसे ज्‍यादा मोदी सरकार ने आगे बढ़ाया है। गरीबों को सरकार जो भी थोड़ी बहुत मदद करती है, वो सब जनता के पैसे के बल पर ही करती है। दूसरी तरफ, स्‍वयं पूंजीपतियों के पास जो अकूत धन है वह भी देश के मजदूरों-मेहनतकशों ने ही पैदा किया है और तमाम तरह के सामाजिक धन का असली मालिक मजदूर वर्ग ही है। पूंजीपति वर्ग वह धन इसलिए हड़प लेता है क्‍योंकि उसकी ही सरकार है और उनके बनाये गये नियम-कानून से समाज चलता है।

मोदी सरकार का एक अहम मकसद जनवादी अधिकारों का पूरी तरह से गला घोंट देना है जिसमें स्‍त्री की स्‍वतंत्रता के विरोध को हर तरह से हवा देना, विरोध में उठने वाली हर आवाज को, खासकर वंचित, उत्‍पीड़ि‍त एवं मजदूर-मेहनतकश वर्ग द्वारा उठायी जाने वाली आवाज को राज्‍य मशीनरी का उपयोग करके या फासिस्‍ट भीड़तंत्र के द्वारा कुचल देना, न्‍याय के लिए लड़ने-लिखने-बोलने वालों को जेलों में बंद करना, स्‍वतंत्र अभिव्‍यक्ति के हर तरह के माध्‍यम को खत्‍म कर देना, स्‍वतंत्र मीडिया की जगह तानाशाह की छवि चमकाने वाली गुलाम मीडिया को खड़ा करना व बढ़ावा देना और इस तरह कुल मिलाकर कहें तो मध्‍ययुगीन बर्बरता एवं गुलामी के दौर में पूरे समाज, देश और पूरी दुनिया को ले जाना शामिल है। इसके लिए ही न्‍यूनतम जनवाद के स्रोत पूंजीवादी जनतंत्र को भी मोदी सरकार क्रमश: खत्‍म करने में लगी है। हम पाते हैं कि संसद को कायम रखते हुए भी उसकी भूमिका खत्‍म की जा रही है। सारे संवैधानिक व जनतांत्रिक निकायों व संस्‍थाओं को अंदर से खोखला ही नहीं किया जा रहा है, अपितु कब्‍जाया भी जा रहा है। यहां तक कि मुख्‍य धारा की मीडिया को भी कब्‍जा लिया गया है जिससे असली खबर जनता तक पहुंचना मुश्किल हो गया है। इससे मोदी को अपनी छवि चमकाना आसान हो गया है। एक विनाशक व्‍यक्ति के चेहरे को भी आकर्षक दिखाया जा रहा है ताकि आम जनता उसे अपना उद्धारकर्ता समझ कर वोट देती जाये। वास्‍तव में यह सीधे तौर पर संसद को उखाड़ फेंके बिना ही मोदी सरकार की लुभावनी छवि के माध्‍यम से फासीवादी तानाशाही थोपने का तरीका है जिसे पिछले 9 सालों से लागू किया जा रहा है। अब जब कि विपक्षी एकता की वजह से 2024 में मोदी के हारने की उम्‍मीद जगी है, तो हिंदू वोटों के ध्रुवीकरण के लिए पूरे देश को धार्मिक आधार पर बांटने और समाज में अशांति मचाने की मुहिम तेज की जा रही है। 

हम अगस्‍त क्रांति दिवस के मौके पर मजदूर वर्ग की ओर से आम जनता से यह मांग करते हैं कि भाजपा को सत्‍ता से हटाने में नहीं हिचकिचाये। हो सकता है, कल को आम जनता को अपने मत से भाजपा को हटाने का मौका भी न मिले, क्‍योंकि इसके संकेत हैं कि फासिस्‍ट समर्थक पूंजीपति वर्ग कभी भी संसद तक को भंग करने का अतिवादी कदम उठा सकता है। तब जनता के पास यह अवसर भी नहीं रह जाएगा। पूरे देश की जनता और आम लोगों को इस बार सावधान रहने की जरूरत है।

मणीपुर और नूह आज के दौर में एक गहरे खतरे का संकेत है। यह खास तरह के पैटर्न को भी इंगित करता है। प्रधानमंत्री की चुप्‍पी पर गौर करिये। इसमें भी एक पैटर्न दिखेगा। उनका संसद में बयान तक देने से भागना उसी पैटर्न का हिस्‍सा है। यही नहीं, उनका मणीपुर का जिक्र करते हुए राजस्‍थान, बंगाल, छत्‍तीसगढ़ आदि पर चर्चा करने की मांग करना, ये सब एक खास पैटर्न का हिस्‍सा है। सारे नये पुराने गुंडे-मवालियों का दंगे भड़काने में इस्‍तेमाल करना और फिर काम निकल जाने के बाद उन्‍हें निपटा देना, ये भी एक तरह का खास पैटर्न है। वह किसी संगठन का नहीं मर्सीनरीज के काम का पैटर्न है जिसे मोदी के नेतृत्‍व में भाजपा ने 2002 के बाद से अपनाया हुआ है। आज हम उसी का आदमकद स्‍वरूप देख रहे हैं। कुछ इमानदार पत्रकार इसे गुंडे-मवालियों का कैडरीकरण कहते हैं जो सही भी है। दरअसल पूंजीवादी जनतंत्र और इसकी आर्थिक व्‍यवस्‍था आज इतनी संकटग्रस्‍त हो चुकी है कि चुनाव जीतने के लिए अब वोटों का ध्रुवीकरण ही एकमात्र उपाय बचा है। झूठे वायदों की हांडी आखिर कितनी बार लौ पर चढ़ेगी?

लेकिन यहां पर ठहरकर इस पर विचार करना जरूरी है कि क्‍या मोदी सरकार को सत्‍ता से बेदखल करना और फासीवाद को पूरी तरह से परास्‍त करना एक ही बात है? नहीं बिल्‍कुल ही नहीं। फासीवाद सड़ता हुआ पूंजीवाद (अतिविकास की वजह से लाइलाज क्षय रोग से पीड़ित, यानी स्‍थाई रूप से संकटग्रस्‍त पूंजीवादी) का द्योतक है। फासीवादी पार्टी के सत्‍ता से हटने मात्र से थोड़े समय के लिए राहत मात्र ही मिल सकती है। फासीवाद की जड़ें पिछले कई दशक से संकटग्रस्त विश्वपूंजीवादी व्यवस्था में है। इसलिये किसी न किसी रूप में फासीवाद ही अब पूंजीवाद का भविष्य दिखाई देता है। अगर फासीवाद को सच में और अंतिम रूप से परास्त करना है – इस तरह कि यह दोबारा अपना फन नहीं उठा पाये और मानवजाति को, खासकर मजदूर वर्ग को मध्ययुगीन गुलामी में ना धकेल सके – तो हमें पूंजीवाद को ही जड़मूल से उखाड़ फेंकना होगा। अगर 2024 में मोदी सरकार हार भी जाती है, जिसकी कोशिश जी-जान से करनी चाहिए ताकि जनवादी शक्तियों को फासीवाद के विरुद्ध निर्णायक गोलबंदी करने का समय और अवसर दोनों मिल सके, तब भी पूंजीवाद की स्‍थाई संकटग्रस्‍तता की वजह से उसके फिर से तथा और भी अधिक ताकतवर होकर उभरने की संभावना बरकरार रह जायेगी। इसकी जगह बनने वाली सरकार कुछ ही दिनों में अलोकप्रिय हो जाएगी। ऐसे में, दुबारा से हताश व निराश हुई जनता एक बार फिर से किसी न किसी फासीवादी दल या व्यक्ति, जो झूठे सपने दिखाने में और भी ज्‍यादा माहिर होगा, को सत्ता में बैठा देगी। इसलिए इसका एकमात्र उपाय ऊपर और नीचे दोनों तरफ से फासीवाद के विरुद्ध निर्णायक संघर्ष है। इस संघर्ष को इसके अंतिम ठौर तक ले जाना होगा। इसका बीच का एक ठौर सर्वहारा वर्ग और मेहनतकश अवाम के नेतृत्व में किसी “जनपक्षीय क्रांतिकारी सरकार का गठन” हो सकता है जो फासीवाद की हार को पूंजीवाद के विरुद्ध मुकम्मल लड़ाई और जीत में बदलने के लिए कटिबद्ध हो। लेकिन इसके लिए मुख्‍य बात यही है कि देश के मजदूर वर्ग को अब आगे आकर देश की राजनीतिक लड़ाई की बागडोर को अपने हाथ में लेने की घोषणा करना जरूरी हो गया है। मजदूर वर्ग का यह कर्तव्‍य है कि वह फासीवाद के खतरों से खुद भी खबरदार रहें और आगे बढ़कर पूरे समाज को भी खबरदार करे। सर्वाधिक क्रांतिकारी वर्ग के रूप में मजदूर वर्ग का यह परम कर्तव्‍य भी बनता है। आर्थिक व तात्‍कालिक तथा फौरी मांगों पर संघर्ष का महत्‍व अपनी जगह है, लेकिन आज का दौर फासीवाद के विरुद्ध राजनीतिक भंडाफोड़ अभियान छेड़ने का दौर ही है। दोनों को एक साथ जोड़ना एक कठिन काम है, लेकिन इसे करना होगा।

अंत में हम फिर से आपका आह्वान करते हैं कि आप सभी 9 अगस्‍त 2023 को अगस्त क्रांति दिवस के मौके पर आहूत मजदूर वर्ग के उपरोक्‍त महापड़ाव में जरूर शिरकत करें और न्याय और सामाजिक प्रगति के पक्ष में अपनी आवाज को मजबूती दें।

क्रांतिकारी अभिनंदन के साथ

आई एफ टी यू (सर्वहारा), बिहार