हम जो तारीक राहों में मारे गए

August 17, 2023 0 By Yatharth
  • फैज अहमद फैज

तेरे होंटों के फूलों की चाहत में हम

दार की खुश्क टहनी पे वारे गए

तेरे हातों की शम्ओं की हसरत में हम

नीम-तारीक राहों में मारे गए

सूलियों पर हमारे लबों से परे

तेरे होंटों की लाली लपकती रही

तेरी जुल्फों की मस्ती बरसती रही

तेरे हाथों की चांदी दमकती रही

जब घुली तेरी राहों में शाम-ए-सितम

हम चले आए लाए जहां तक कदम

लब पे हर्फ-ए-गजल दिल में किंदील-ए-गम

अपना गम था गवाही तिरे हुस्न की

देख काएम रहे इस गवाही पे हम

हम जो तारीक राहों पे मारे गए

ना-रसाई अगर अपनी तकदीर थी

तेरी उल्फत तो अपनी ही तदबीर थी

किस को शिकवा है गर शौक के सिलसिले

हिज्र की कत्ल-गाहों से सब जा मिले

कत्ल-गाहों से चुन कर हमारे अलम

और निकलेंगे उश्शाक के काफिले

जिन की राह-ए-तलब से हमारे कदम

मुख्तसर कर चले दर्द के फासले

कर चले जिन की खातिर जहांगीर हम

जां गंवा कर तिरी दिलबरी का भरम

हम जो तारीक राहों में मारे गए

(जूलियस और एथेल रोसेनबर्ग पति-पत्नी थे जिन्हें मैक्कार्थी काल के दौरान 1953 में अमरीकी सरकार ने सोवियत संघ के लिए जासूसी करने के जुर्म में मौत की सजा सुनाई थी। लेकिन हकीकत में इस सजा के पीछे की असली वजह थी उनका कम्युनिस्ट होना। उनके द्वारा आदान-प्रदान किए गए पत्रों से प्रेरित होकर फैज ने ये नज्म लिखी।)

इसका अनुवाद आगा शाहिद अली ने किया।

साभार : रेख्ता