लोहे का दुर्ग

August 17, 2023 0 By Yatharth

प्यारे लाल शकुन

तेरे दुर्ग की लौह प्राचीरें

जंग खाकर जर्जरित हो चुकी हैं

अब उसमें बेसुध सोये हुए लोग

जाग रहे हैं- धीरे – धीरे,

तेरी लूटमार अब दम तोड़ रही है,

परमाणु बमों, मिसाइलों और

तरह तरह के बारूदी हथियारों से लैस,

तेरी सेना भी तेरा साथ नहीं देगी,

लोग भूख और दरिंदगी को,

अपसंस्कृति और नारी की लूट को

बच्चे के गले में ताबीज बांध कर

कब तक सहन करते रहेंगे?

वे जान चुके हैं-

“अवतारवाद” और “पुनर्जन्म” की

सारी कहानियां झूठी हैं,

अब त्रेता के राम और द्वापर के कृष्ण बनकर,

इस कलियुग में “विष्णु”अवतार नहीं लेंगे,

इन लोहे की सलाखों को काटने,

और दीवारों को ध्वस्त कर

नया संसार रचने की जिम्मेदारी – खुद हमारी है,

अब रामायण और गीता नहीं,

कुरान या बाइबल भी नहीं,

बुद्ध और गुरु ग्रंथ साहिब की महानता भी नहीं,

केवल और केवल द्वंद्वात्मक भौतिकवाद का सत्य ही, हमारा हथियार होगा और हम जीतेंगे अवश्य।