8 अक्टूबर को क्रांतिकारी छात्र सम्मेलन को सफल बनाने का प्रयास करें!

October 5, 2023 0 By Yatharth

NEP2020 को रद्द करने के लिए संघर्ष करें; सभी के लिए स्थायी और मर्यादित रोजगार सुनिश्चित करने के लिए आगे आएं !

एक वैज्ञानिक, तर्कसंगत, अनिवार्य, मुफ्त और सार्वभौमिक शिक्षा प्रणाली बनाने के लिए आगे बढ़ें !

शिक्षा प्रणाली को तब तक बदला नहीं जा सकता जब तक कि वर्तमान दमनकारी प्रणाली को बदलकर एक नया समाज नहीं बनाया जाता !

14 छात्र-युवा संगठनों की साझा पहल ‘रिवॉल्यूशनरी स्टूडेंट यूथ कैंपेन’ द्वारा जारी पर्चा

आज भारत की शिक्षा- प्रणाली एक अभूतपूर्व हमले का सामना कर रही है। क्योंकि पिछले तीन दशकों में साम्राज्यवादी-पूंजीवादी प्रणाली के संकटों से प्रभावित भारतीय समाज में नीतिगत उदारवाद ‘न्यूलिबरलिज्म’ ने पूरे समाज को अपने गिरफ्त में ले लिया है। वर्तमान शिक्षा- प्रणाली पर हो रहा हमला देश की सार्वजनिक शिक्षा को खत्म करने तथा उसके निजीकरण और बाजारीकरण की प्रक्रिया में अभिव्यक्त हो रहा है। इस निजीकरण की प्रक्रिया का उद्देश्य स्किल्ड और अनस्किल्ड मजदूर की एक विशाल सेना बनाना है, जो 2014 के बाद से और भी तीव्र हो गई है (यानी जब से भाजपा केंद्र-सरकार में आई है)। हालांकि, यह प्रक्रिया 1990 के दशक में ही शुरू हो गयी थी तथा उसके बाद आने वाले सभी केंद्र और राज्य सरकारों ने इसे पूरी बेशर्मी से लागू किया। यह बेहद शर्मनाक है कि फासिस्ट शक्तियां, जिनके नेतृत्व में आज केंद्र की सरकार है, भारत की जनता के साथ-साथ वर्तमान शिक्षा- प्रणाली पर भी बर्बर और धूर्त हमले कर रही है, और वर्तमान शिक्षा-प्रणाली को ‘हिंदुत्व’ के एजेंडे पर बदलने का प्रयास कर रही है। इस निजीकरण के माध्यम से वह न सिर्फ ब्राह्मणवादी, वर्चस्ववादी और साम्प्रदायिक उद्देश्यों का कुत्सित प्रचार कर रही है, बल्कि इसका प्रतिरोध करने वाले सभी विद्यार्थियों की आवाज़ को भी दबा रही है।

1947 में सत्ता हथियाने के बाद, शासक वर्गों ने प्रचारित किया कि प्रारम्भिक शिक्षा को मुफ्त और अनिवार्य बना दिया जाएगा। आज़ादी के बाद ‘कल्याणकारी राज्य’ के लिए चलने वाले आंदोलनों के दवाव के कारण, भारत में शिक्षा को सीमित अर्थों में प्रोत्साहन दिया गया, जो कोठारी आयोग के रिपोर्टों में प्रकट हुआ। इसमें सार्वजनिक शिक्षा -प्रणाली, शिक्षा के लिए बजट आवंटन आदि जैसे कई सकारात्मक पहलु थे। लेकिन बाद के नव उदारवादी नीतियों से यह स्पष्ट हो गया कि ‘कल्याणकारी राज्य’ की अवधारणा को दरकिनार कर शिक्षा को एक बिकने वाला माल बना दिया गया। 1986 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति, जिसे 1992 में संशोधित किया गया था, नव उदारवाद की शुरुआत थी। 1993 में निजी विश्वविद्यालय अधिनियम का उद्घाटन भारतीय शासक वर्गों के हितों की सेवा करने के इरादे के साथ हुआ था। 2000 में, NDA सरकार के कार्यकाल के दौरान, शिक्षा में सुधार-नीति (Policy Framework for Reforms in Education) का ड्राफ्ट मुकेश अंबानी और कुमारमंगलम बिड़ला ने तैयार किया था (अंबानी-बिड़ला रिपोर्ट), जिसमें उच्च शिक्षा में विदेशी निवेश (FDI) का समर्थन किया गया और निजी विश्वविद्यालयों के लिए लूट का रास्ता खोल दिया गया। यही नहीं इसने शिक्षा संस्थानों में विद्यार्थी राजनीति और विद्यार्थी संघों का भी पुरज़ोर विरोध किया। दरअसल शिक्षा का निजीकरण ही 11वीं पंचवर्षीय योजना का मुख्य बिंदु था। इसका उद्देश्य हीं शिक्षा पर सरकार या सामाजिक नियंत्रण को ख़त्म करना था। नए मॉडल जैसे कि सार्वजनिक-निजी-साझेदारी (Public Private Partnership), स्व वित्तीय पाठ्यक्रम, विदेशी पूँजी का सहयोग, संयुक्त उपक्रमण आदि निजीकरण के लुभावने नारे थे।

शिक्षा पर सरकारी व्यय में लगातार हो रही कटौती को शिक्षा पर जीडीपी के घटते हिस्से से समझा जा सकता है जो 1999-2000 में 4.25%, 2004-2005 में 3.68%, 2012-13 में 3.45% और 2023-24 में 2.9% तक गिरा। दूसरी तरफ, शिक्षा में स्कूल से लेकर उच्च शिक्षा संस्थानों तक में निजी निवेशों की अभूतपूर्व वृद्धि दिखती है। पहला निजी विश्वविद्यालय की स्थापना 1995 में हुई थी। आज तक 432 निजी विश्वविद्यालय स्थापित किए गए हैं ! इसी बीच, सार्वजनिक विश्वविद्यालयों का निजी विश्वविद्यालयों के साथ साझेदारी भी जारी रही। इसी दौर में  “शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009” भी पास हुआ। इस अधिनियम में केवल 14 वर्षों तक के छात्रों (लगभग 8वीं कक्षा) को ही शामिल किया गया है! हालांकि सरकार इसे एक उपलब्धि के रूप में मनाती है और हमेशा उन छात्रों के भविष्य बारे में चुप रहती है, जो इस ब्रैकेट( कैटेगरी) में नहीं आते। इसलिए, यह राज्य की जिम्मेदारी है कि वह पहली कक्षा से लेकर पीजी तक, सभी के लिए, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करे। दुर्भाग्यवश, राज्य ने कभी इस जिम्मेदारी को स्वीकार नहीं किया।

उपर्युक्त योजना NEP 2020 (नई शिक्षा नीति 2020) के रूप में भारतीय जनता पर थोपी गई। इस योजना ने देश की शिक्षा-प्रणाली को साम्राज्यवादी-पूंजीवादी शासक वर्ग के हितों को — शिक्षा को माल के रूप में बेचकर पैदा होने वाले मुनाफे तथा कुशल और अकुशल मज़दूर की एक विशाल सेना बनाने के माध्यम से— सुरक्षित और सुनिश्चित करने का औज़ार बना दिया। स्कूल स्तर से अनुसंधान स्तर तक छात्रवृत्तियों में कटौती करने के साथ, जहाँ सरकार एक ओर मुफ्त शिक्षा प्रदान करने की अपनी जिम्मेदारी से छुटकारा पा रही है वहीँ दूसरी ओर शोधार्थियों को ऋणों के माध्यम से वित्तीय पूंजी की बलि वेदी पर पटक रही है। ‘ग्रेडेड आटोनोमी’ के नाम पर, राज्य उच्च शिक्षा क्षेत्र के प्रति अपनी वित्तीय जिम्मेदारियों से पूरी तरह से मुक्त होने का प्रयास कर रहा है। कॉलेज और विश्वविद्यालयों को अपने व्यय का बोझ स्वयं उठाना होगा, जिससे एक बड़े हिस्से के छात्रों के लिए उच्च शिक्षा अप्राप्य हो जाएगी। इसके अलावा, तीन-साल के स्नातक पाठ्यक्रम को चार साल के स्नातक पाठ्यक्रम में बदलने का एकमात्र उद्देश्य उच्च शिक्षा से सस्ते स्किल्ड लेबर पैदा करना है (विद्यार्थी किसी भी समय पर अपनी शिक्षा छोड़ सकता है, और उसे उतने समय का एक प्रमाणपत्र दे दिया जाएगा)  जिनको तेजी से बढ़ते अनौपचारिक श्रम-बाजार में सुपर मुनाफे के लिए निचोड़ा जा सके।

याद रखना चाहिए कि सरकार ने मौजूदा श्रमिक अधिकार ढांचा बदलने के पतनशील कदम के रूप में चार श्रम कोड प्रस्तावित किया है. इसका उद्देश्य कामकाजी वर्ग से पारम्परिक और गरिमामय रोजगार के हकों, संघ बनाने और अन्य अधिकारों को छीनना है, और साथ ही ‘हायर और फायर’ प्रणाली या अनौपचारिकृत श्रम- प्रणाली को थोपना है। एक ही धारा के कॉलेजों के मर्जर का और ODL (ओपन और दूरस्थ शिक्षा) की प्रस्तावना का समर्थन करना ग्रामीण छात्रों को उनके मूल शैक्षनिक अधिकारों से वंचित करना है, खासकर कमजोर वर्गों के. उच्च शिक्षा में शिक्षकों की पूरी तरह से अनुबंधीकरण-अनौपचारीकरण, जैसा कि NEP20 में दृढ़ रूप से विचारबद्ध किया गया है, इसका मतलब है कि आने वाले दिनों में शिक्षा क्षेत्र में स्थायी रोजगार के लिए कोई भी क्षेत्र नहीं होगा। उसी तरह, स्कूल स्तर की शिक्षा में, 5+3+3+4 प्रणाली का प्रस्ताव और व्यावसायिक शिक्षा (स्कूल के छात्रों को विशिष्ट बेचने योग्य कौशल सेट्स का प्रशिक्षण देने का उद्देश्य है) वास्तव में शासक वर्ग के लिए सहायक होगा, क्योंकि उनका उद्देश्य कुशल/अर्ध-कुशल/अकुशल श्रम बल को उत्पन्न करने का है, जो स्कूल स्तर से ही आरंभ किया जा सकता है।

इसके अलावा, फासीवादी ताकतों द्वारा भगवाकरण के एजेंडे को तेजी से आगे बढ़ाया जा रहा है।  पाठ्यक्रम बदलने से लेकर लगभग हर केंद्रीय विश्वविद्यालय एवम राज्य विश्वविद्यालय और विभिन्न शैक्षिक बोर्डों में आरएसएस के गुर्गों को नियुक्त किया जा रहा है ताकि वे हमारी शिक्षा प्रणाली पर अपनी पकड़ मजबूत कर सकें। वे अपनी धार्मिक ध्रुवीकरण के एजेंडे को हमारे शिक्षा प्रणाली (कर्नाटक में हिजाब घटना) में  लगातार चलाने की कोशिश कर रहे हैं।  लगभग सात दशकों से आरएसएस द्वारा संचालित अलग- अलग शैक्षिक संस्थान, जैसे-विद्या भारती, सरस्वती विद्यालय आदि को राज्य द्वारा संचालित शैक्षिक संस्थाओं के समानांतर नई शिक्षा नीति प्रस्तावों के अनुसार औपचारिक राज्य द्वारा संचालित प्रणाली के साथ एकीकृत करने की योजना बनाई जा रही है। जैसे कि इसके पूर्व भी किया गया है, NEP 2020 में भी स्थानीय भाषाओं (शिक्षा के माध्यम के साथ-साथ ऐतिहासिक महत्व की भाषाओं पर विशेष जोर देने के नाम पर) को हाशिए पर रखकर, आरएसएस भाषा प्रस्तावों के माध्यम से अपने एक विषेश भाषा को देश और लोगों पर थोपने के एजेंडे को साकार करने की कोशिश कर रहा है। इसके साथ ही साथ, फासीवादी ताकतें विभिन्न उच्च शिक्षा संस्थानों को अपने पूर्ण नियंत्रण में लेने और इन विभिन्न संस्थानों से उठने वाली असहमति की आवाजों को कुचलने की कोशिश कर रही हैं। चाहे इन आवाजों को दबाने के लिए मारपीट, गुंडागर्दी और विभीन्न तरह से शारीरिक बल का भी प्रयोग क्यों ना करना पड़े। इसका उदाहरण हम  जेएनयू, जामिया मिलिया विश्वविद्यालय, एएमयू आदि में पूर्व में हुए घटनाओं में साफ़ देख सकते हैं। इसके अलावा,  शैक्षणिक संस्थानों और आईसीएचआर जैसे अनुसंधान निकायों में सभी उच्च पदों को आरएसएस समर्थक लोगों से भरकर बड़े पैमाने पर पूरी शिक्षा प्रणाली का भगवाकरण करने का एक और तरीका है।  वे इतिहास को अपने “हिंदुत्व” के चश्मे के माध्यम से चित्रित कर दिखाने/पढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं, ताकि हमारे इतिहास की तर्कसंगत और द्वंद्वात्मक समझ असंभव हो जाए।  “एनसीईआरटी पाठ्यक्रम के युक्तिकरण” की प्रक्रिया और विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में भारी बदलाव से छात्रों में साइंटिफिक टेंपरामेंट को खत्म करने और इसे “हिंदुत्व” चेतना में बदलने का एजेंडा साफ-साफ प्रतिबिंबित हो रहा हैं, जो ब्राह्मणवाद, पितृसत्ता, साम्प्रदायिकता, ज़ेनोफ़ोबिया, अंधराष्ट्रवाद, नस्लवाद आदि जैसी प्रतिक्रियावादी विचारधाराओं पर आधारित है।

जिस तरीके से आज देश की शिक्षा व्यवस्था पर हमला हो रहा है, रोजगार की स्थिति दिन प्रतिदिन अनिश्चित होती जा रही है। जैसा की हम सभी जानते है, साल 2019 में देश में बेरोजगारी दर पिछले चार दशकों में सबसे अधिक था ( उसके बाद से इस विषय पर कोई आंकड़ा जारी नहीं किया गया)। कोविड -19  के बाद से, गांवों और शहरों दोनों जगहों की स्थिति और ख़राब हुई है, औपचारिक रोजगार की गुंजाइश दिन प्रतिदिन घटती जा रही है। संविदा आधारित रोजगार अब आम बनता जा रहा है। अग्निपथ योजना के खिलाफ स्वत: आंदोलन इस बात को गवाही देते है। इसके बावजूद, बीजेपी रोजगार देने के बजाए जुमलों और धार्मिक मनमुटाव के जरिए स्थिति पर परदा डालने की कोशिश कर रही है।

हमारा मानना है कि विभिन्न संघर्षरत वर्गों पर शासक वर्ग के हमले को मजबूती देने वाली प्रतिक्रियावादी ताकतों के खिलाफ बिना समझौता किए, सीधे संघर्ष के बिना शिक्षा और रोजगार के इस गंभीर संकट का सामना नहीं किया जा सकता है।फासीवादी ताकतों के नव-उदारवादी और भगवाकरण के एजेंडे के खिलाफ़, क्रांतिकारी शक्तियों को मजबूती और नई दिशा के साथ लड़ना होगा।  न तो संसदवाद और न ही दुस्साहस के जरिए, बल्कि एक क्रांतिकारी दिशा के साथ लगातार प्रगतिशील जन संघर्ष का निर्माण करना हमारा लक्ष्य है।  हमारे देश में छात्र आंदोलनों की एक लंबी और गौरवशाली परंपरा रही है, जो अक्सर दमनकारी व्यवस्था को क्रांतिकारी रूप से उखाड़ फेंकने के लिए निर्देशित हुई है।  हालाँकि, जिस तरीके से शिक्षा के क्षेत्र में फासीवादी हमले किए जा रहे हैं, एक क्रांतिकारी लक्ष्य के साथ एक मजबूत छात्र जन-आंदोलन समय की मांग है।  हमारे देश की छात्र-युवा जनता को अपने अधीन करने के लिए शासकों द्वारा उठाए जा रहे हर कदम के विरुद्ध न केवल समझौताहीन संघर्ष करना, बल्कि वर्तमान साम्राज्यवादी-पूंजीवादी व्यवस्था के साथ-साथ बचे हुए सामंती शोषण को उखाड़ फेंकने के लिए निर्णायक संघर्ष करना हमारे लिए जरूरी है। हम क्रांतिकारी ताकत के तौर पर यह मानते है की शोषण और उत्पीड़न से मुक्त समाज के निर्माण के लिए, इस बहुस्तरीय शिक्षा प्रणाली को एक सामान्य शिक्षा प्रणाली में बदला जा सकता है। इस उद्देश्य से, NEP2020 को निरस्त करने और सभी के लिए सम्मानजनक रोजगार की तत्काल मांगों पर, हम, क्रांतिकारी छात्र संगठन 8 अक्टूबर, 2023 को जंतर मंतर, नई दिल्ली में एक अखिल भारतीय सम्मेलन का आह्वान करते हैं।

हमारे नारे हैं:

1) छात्र विरोधी NEP2020 को खारिज करें।

2) शासक वर्ग द्वारा अपनाई जा रही शिक्षा के निजीकरण और व्यावसायीकरण की नीतियों के खिलाफ एकजुट हों।  सार्वजनिक निजी भागीदारी, विदेशी सहयोग और शिक्षा के स्व-वित्तपोषण मॉडल को अस्वीकार करो।

3) शैक्षणिक संस्थानों और छात्रों पर फासीवादी हमलों के खिलाफ लड़ाई में शामिल हो।

4) शिक्षा के भगवाकरण और फासीवादी ताकतों के एजेंडे को लागू करने के लिए पाठ्यक्रम में अवैज्ञानिक बदलाव का विरोध करो।

5) सभी के लिए स्थायी और सम्मानजनक रोजगार सुनिश्चित करने के लिए संघर्ष करो।

6) भाषा थोपने की नीति का विरोध करो।

7) सभी के लिए अपनी मातृभाषा में वैज्ञानिक, तर्कसंगत, मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा के लिए संघर्ष करो।

8) शिक्षण संस्थानों में जाति और लिंग आधारित भेदभाव और अत्याचारों का विरोध करो।

9) विभिन्न छात्रवृत्तियों को रोकने एवं कटौती और शिक्षा संस्थानों में बेतहाशा फीस वृद्धि का विरोध करें।   शैक्षणिक संस्थानों के वित्त पोषण की राज्य की जिम्मेदारी निजी हाथों में सौंपने के वित्तीय स्वायत्तता/’ग्रेडेड ऑटोनॉमी’ मॉडल को अस्वीकार करो।

10) छात्र संघ बनाने के अधिकार के लिए और प्रत्येक शैक्षणिक संस्थान में बहस और असहमति के अधिकार को सुनिश्चित करने के लिए लड़ो।

11) एनटीए द्वारा शुरू किए गए सीयूईटी, एनईईटी आदि परीक्षाओं का विरोध करो। विभिन्न प्रवेश परीक्षाओं के जरिए, छात्रों को बाहर करने के शासक वर्ग के एजेंडे का विरोध करो।

12) आरएसएस-भाजपा की अंधराष्ट्रवादी, सांप्रदायिक, पितृसत्तात्मक, अति राष्ट्रवादी, ब्राह्मणवादी हिंदुत्व विचारधारा का विरोध करो।

13) स्थानीय विशेषज्ञता और परोपकार के नाम पर शिक्षा प्रणाली में आरएसएस से जुड़े व्यक्तियों और गैर सरकारी संगठनों को शामिल करने की नीति का विरोध करो।

14) सरकारी स्कूलों को बंद करने/विलय करने या उन्हें कॉर्पोरेट घरानों, धार्मिक निकायों और गैर सरकारी संगठनों को आउटसोर्स/पट्टे पर देने/बेचने/नीलामी करने के सभी निर्णयों को उलट दें।

15) राज्य को सभी धार्मिक गतिविधियों से अलग करो। 16) शोषण पर आधारित प्रचलित पूंजीवादी-साम्राज्यवादी व्यवस्था को उखाड़ फेंकने के लिए संघर्ष करें और एक ऐसे समाज का निर्माण करें जहां सभी प्रकार के शोषण, उत्पीड़न और भेदभाव ना हों।  ऐसे समाज के निर्माण के बिना नई शिक्षा व्यवस्था का निर्माण नहीं किया जा सकता।