अमर शहीद कामरेड सुनील पाल की

December 18, 2023 0 By Yatharth

14वीं स्मृति-दिवस के अवसर पर केंद्रा हाट तल्ला में आयोजित

शहादत दिवस रैली व सभा में शामिल हों

29 दिसंबर 2023 – शहीद सभा : केंद्रा हाट तल्ला; दोपहर 2 बजे से शाम 6 बजे तक

30 दिसंबर 2023 – केन्द्रीय कन्वेंशन : सम्मेलनी हॉल, हरिपुर; सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक

साथियो!

         जैसा कि हम सभी जानते हैं, कॉमरेड सुनील पाल की शहादत वर्षगांठ (29 दिसंबर) के अवसर पर पीआरसी सीपीआई (एमएल) अपनी पार्टी के तथा शोषितों-पीड़ितों के आंदोलनों में शहीद हुए तमाम साथियों को याद करने के लिए रैली और सभा करती है। इस वर्ष यह सभा उनके गांव केंद्रा में करने का निर्णय किया गया है। इस पर्चे के माध्यम से हम सबको 29 दिसंबर 2023 के दिन 2 बजे से सैंकड़ों-हजारों की संख्या में केन्द्रा हाट तल्ला में जुटने का आह्वान करते हैं।

साथियो!

         कामरेड सुनील पाल का जन्म 1958 में पश्चिम बर्धमान जिले के पंडवेश्वर थाना के केन्द्रा गांव में हुआ था। कॉमरेड पाल छात्र-जीवन से लेकर अपनी शहादत के दिन तक सीपीआई(एमएल) की क्रांतिकारी राजनीति से जुड़े रहे और बंगाल तथा देश के अन्य क्षेत्रों में मजदूर-मेहनतकश वर्ग के हितों की लड़ाई लड़ते रहे, हालांकि अंत-अंत तक ईसीएल और रानीगंज का इंडस्ट्रियल क्षेत्र ही उनकी मुख्य कर्मभूमि बना रहा। गौरतलब बात यह है कि क्रांति की राह को चुनने के बाद वे सदैव इस पथ पर अडिग बने रहे और कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। उनमें क्रांतिकारी दृढ़ता कूट-कूट कर भरी थी। यही कारण है कि उन्होंने ईसीएल में कई असंभव प्रतीत होने वाले मजदूर-संघर्षों का नेतृत्व किया और जीतें हासिल कीं। उन्हें संघर्ष के किसी तयशुदा दायरे और रूप व फॉर्म से बंधना कभी मंजूर नहीं था। इस अवसर पर हम 30 दिसंबर को होने वाले केन्द्रीय कन्वेंशन में उनका एक संक्षिप्त जीवन-वृतांत भी पेश करेंगे।

         सवाल है, 14वीं स्मृति दिवस के अवसर पर हमारी पार्टी के समक्ष प्रमुख चुनौती क्या हैं? निस्संदेह सबसे बड़ी चुनौती फासीवाद की है जो निर्णायक जीत की तरफ अग्रसर है। फासीवाद पूंजीपति वर्ग के सबसे प्रतिक्रियावादी व खूंखार हिस्से के द्वारा (वित्त पूंजी के सबसे साम्राज्यवादी-आतंकी गुट के द्वारा) स्थापित खुली-नंगी तानाशाही है जो सामान्य तरह की पूंजीवादी तानाशाही से इस अर्थ में भिन्न है कि यह पूंजीवादी व्यवस्था के अंतर्गत सीमित जनतंत्र का भी खात्मा कर देता है। जब फासीवाद विजयी होने की ओर अग्रसर होता है तो यह सारी संस्थाओं पर अंदर से कब्जा कर लेता है और उसका उपयोग मजदूर-मेहनतकश वर्ग को नए तरह की गुलामी में धकेलने के लिये करता है। वह इन्हें साम्प्रदायिकता और संकीर्ण राष्ट्रवाद फैलाने वाली और आम जनता के तमाम अधिकारों को कुचल देने वाली संस्थाओं में परिणत कर देता है। इस तरह एक खतरनाक फासीवादी मशीनरी खड़ी हो जाती है जो अंदरूनी खतरे का हौवा खड़ा कर जनता पर ही युद्ध चलाने लगती है। इस तरह शोषित व उत्पीड़ित तबकों व समूहों, खासकर गरीब अल्पसंख्यकों, दलितों व आदिवासियों और उनके पक्ष से आवाज उठाने वालों के विरुद्ध भयानक दमनतंत्र खड़ा किया जाता है। इसके इतर भी समाज में खड़े किए गए लम्पट-गुंडा तंत्र के साथ मिलकर एक भयानक दमघोंटू आतंक का साम्राज्य खड़ा किया जाता है जिसका असली मकसद राष्ट्रवाद और धर्म की आड़ में देशी-विदेशी बड़े वित्तीय घरानों व पूंजीपतियों की खुली लूट को आगे बढ़ाते हुए न्याय और सामाजिक प्रगति का पूरी तरह से गला घोंट देना होता है। भारत में मोदी-सरकार के कारनामे और इसकी छत्रछाया में अंदर और बाहर से चलाये जा रहे संत्रास में हम इसकी झलक देख सकते हैं। मोदी सरकार के अंतर्गत पूरा राज्यतंत्र विरोध की हर तरह की आवाज को दबाते हुए हिटलरशाही की तरफ तेजी से कदम बढ़ा रही है।

साथियो!

         फासीवाद का पूरी दुनिया में एक आम उभार देखा जा सकता है। इसका मुख्य कारण विश्वपूंजीवाद का लगातार गहराता संकट और इस संकट में फंसे पूंजीपति वर्ग का तख्ता पलटने में मजदूर मेहनतकश वर्ग तथा इनका नेतृत्व करने वाली क्रांतिकारी शक्तियों की नाकामी है। इनके बीच का विखंडन एक कारण है लेकिन यह विखंडन भी इसलिये है क्योंकि ठोस परिस्थितियों का ठोस आकलन करने और फिर उसके आधार पर क्रांतिकारी रणनीति व कार्यनीति बनाने में सक्षम किसी केंद्र को खड़ा करने में हम नाकामयाब हो रहे हैं।

         लेकिन फासीवादी लूट-खसोट और दमन व उत्पीड़न तथा विरोध की आवाज को पूरी तरह कुचल देने के प्रयासों से जल्द ही विकसित देशों सहित दुनिया के अधिकांश देशों में गृह-युद्ध जैसी स्थिति पैदा हो रही है। साम्राज्यवादी शक्तियों के बीच शुरू हो चुकी हिंसक टकराहटों ने इसे और भी अवश्यम्भावी बना दिया है। इसका अर्थ यह भी है कि अगर क्रांतिकारी शक्तियां इस स्थिति का इस्तेमाल करते हुए सही रणनीति-कार्यनीति के बल पर जनता को अपनी ओर खींचने में सफल हो पातीं हैं, तो निकट भविष्य में क्रांतिकारी संकट काल गहरा सकता है और शासक-शोषक वर्ग के लिए विकट और विषम स्थिति पैदा हो सकती है। इस संभावना को कैसे ठोस आकार दिया जाए, यही आज के समय में हमारी सबसे बड़ी चुनौती है।

         हमारा पक्का अनुमान है कि विश्वपूंजीवाद का संकट, फासीवाद का उभार तथा साम्राज्यवादियों के बीच युद्ध की स्थिति थमने के बजाय और तीव्र होगी। तात्कालिक तौर पर यह सब हमारे लिये भीषण संकट की स्थिति का परिचायक है, लेकिन दूरगामी तौर पर देखें तो यह एक क्रांतिकारी परिस्थिति को जन्म दे रहा है और जन साधारण को शिक्षित कर रहा है कि पूंजीवादी-साम्राज्यवादी लूट-खसोट का एकमात्र निदान पूंजीवाद-साम्राज्यवाद का खात्मा है। यहां हम पाते हैं कि इस बुरी परिस्थिति में भी एक उज्ज्वल पक्ष मौजूद है। यानी, जो परिस्थिति है वह विपत्तियों से भरी है, लेकिन यह अनुकूल क्रांतिकारी अवसरों से भी भरी है। मजदूर वर्ग एवं इसकी अगुआ ताकतें अगर तय कर लें और आत्मगत शक्ति सही मायने में मौजूद हों, तो मजदूर वर्ग जल्द ही परिस्थितियों का नियंता बनने की स्थिति में आ सकता है। इसके लिए मुख्य रूप से मजदूर वर्ग की अगुआ शक्तियों को बड़ी पूंजी की मार झेल रहे और अस्तित्व का संकट झेल रहे टूटपूंजिया वर्गों की प्रतिक्रियावादी व अवसरवादी राजनीति के विरुद्ध देश की मुख्यधारा में उतरकर जनसाधारण का नेतृत्व करने की होड़ व प्रतिस्पर्धा में उतरना होगा। यह एक बड़ी चुनौती है, लेकिन यह सत्य है कि दूसरा रास्ता नहीं है।

साथियो!

         आज जब हम कॉमरेड सुनील पाल की 14वीं वर्षगांठ मना रहे हैं तो हम पा रहे हैं कि हम सभी क्रांति की राह में एक विकट मोड़ पर खड़े हैं। अत्यंत कठोर चुनौतियां हम सबकी परीक्षा ले रही हैं जिसमें मुख्य प्रश्न यही है कि मजदूर वर्ग को ही नहीं संपूर्ण मानवजाति को चौतरफा पश्चगमन, युद्ध, बेरोजगारी, महंगाई, भुखमरी, कंगाली और तबाही के दलदल में धकेलने वाली पूरी तरह सड़ी-गली और बदबूदार पूंजीवादी-साम्राज्यवादी व्यवस्था, जो दुनिया मे हर कहीं फासीवादी तानाशाही को जन्म दे रही है, को किस तरह खत्म किया जाए और मजदूर वर्ग तथा पूरी मानवजाति को महाविनाश से बचाया जा सके। आज निस्संदेह कॉमरेड सुनील पाल जैसे निर्भीक और अडिग क्रांतिकारी नेता की कमी खल रही है। हम सब पर उनकी जगह भरने की जिम्मेवारी है। उनको सच्ची श्रद्धांजलि देने का हमारे पास इससे बेहतर कोई दूसरा तरीका भी नहीं है कि हम सभी उपरोक्त कार्यभार को पूरा करने में प्राण की बाजी लगा दें। आइए, हम सभी शहीद कॉमरेड सुनील पाल और उनके जैसे हजारों-लाखों शहीदों को हृदय से याद करें और नयी दुनिया बनाने के उनके सपनों को साकार करने में जी-जान से लगें। शहीद कॉमरेड सुनील पाल सहित हजारों-लाखों शहीदों को लाल सलाम!