Author: Yatharth

September 11, 2021 0

क्यूबा में प्रदर्शन – संसाधनों का अभाव

By Yatharth

क्यूबा से आई तस्वीरों को देखने से साफ है कि वहां अस्थिरता लाने का जाना-पहचाना साम्राज्यवादी तरीका अपनाया जा रहा है। उन्होंने कहा- अमेरिका दुनिया में अस्थिरता फैलाने वाला मुख्य देश है। उसे क्यूबा के बारे में कुछ भी बोलने का हक नहीं है।

September 11, 2021 0

संघर्ष की रस्मअदायगी से आगे बढ़िए, महानुभावों!

By Yatharth

देश के मजदूर-किसान व आम जनता पर बड़ी इजारेदार पूंजी की गुलामी थोपने वाली मोदी सरकार के विरूद्ध केंद्रीय ट्रेड यूनियनों तथा स्वतंत्र फेडरेशनों व एसोसिएशनों के संयुक्त मंच द्वारा ‘9 अगस्त क्रांति दिवस’ को “भारत बचाओ दिवस” के रूप में मनाने का मेहनतकशों से आह्वान

September 11, 2021 0

किसान आंदोलन की दशा व दिशा तथा इसका समर्थन कर रही मजदूर वर्गीय ताकतों का कार्यनीतिक संकट

By Yatharth

एकमात्र सर्वहारा राज्य ही किसानों की सभी फसलों की उचित दाम पर खरीद की गारंटी दे सकता है, क्योंकि एकमात्र वही राज्य है जो मुनाफा के लिए नहीं मेहनतकशों की जिंदगी में बुनियादी सुधार तथा खुशहाली लाने के लिए उत्पादन व्यवस्था का संचालन कर सकता है।

September 11, 2021 0

आवश्यक रक्षा सेवा कानून

By Yatharth

ये कानून जहां तात्कालिक तौर पर मजदूर आंदोलन के अंदर कई तरह की बाधायें खड़ा कर रहे हैं और करेंगे, वहीं दूरगामी तौर पर मजदूर आंदोलन की क्रांतिकारी जमीन को भी ये सिंचित तथा पुष्ट कर रहे हैं। जरूरत है कि मजदूर वर्गीय ताकतें ‘तात्कालिक’ में ‘दूरगामी’ के बीज बोने में सक्षम हों और मोदी सरकार हमें मजदूर आंदोलन में इसके लिए (तात्कालिक से दूरगामी को जोड़ने के लिए) जो उत्तम अवसर दे रही है उसे दोनों हाथों से थाम लेने की है। जाहिर है, हम अगर पूरे परिदृश्य को तात्कालिकता की नजर से नहीं, समग्रता में देखना शुरू कर देते हैं तो हम जल्द ही देखेंगे कि आज की मायूसी खत्म हो रही है, मजदूर आंदोलन का नया सूर्य चमक रहा है और इससे पूरे समाज में एक नया ज्वारभांटा उठ रहा है।

September 11, 2021 0

देश की अर्थव्यवस्था का बुरा हाल

By Yatharth

आज अर्थव्यवस्था का अत्यंत बुरा हाल है। मोदी सरकार की बदइंतजामी, नाकामी तथा पूंजी की खुली-नंगी तरफदारी ने आर्थिक संकट को और बढ़ा दिया है। आम लोगों की खस्ताहाल स्थिति बढ़ती जा रही है। पहले की तुलना में एक बहुत बड़ी आबादी भुखमरी के कगार पर पहुंच गयी है।
बात साफ है कि गरीबों और मेहनतकशों को अपने वर्ग हित के लिए आवाज बुलंद करनी होगी और संघर्ष की राह पर चलते हुए एक नयी दुनिया व समाज बनाने के लिए कमर कसना होगा।

September 11, 2021 0

पार्टी के अंदर नस्लवाद से कैसे लड़े अमरीकी कम्युनिस्ट?

By Yatharth

हालांकि नस्लवाद, जातिवाद, राष्ट्रवाद, आदि अलग-अलग समस्याएं हैं और इनकी अपनी अलग विशिष्टतायें हैं, परंतु नीचे दिया गया अंश इस बात का एक प्रेरणादायक उदाहरण है कि एक क्रांतिकारी पार्टी को अपने भीतर इन प्रभुत्ववादी प्रवृत्तियों से निपटने के लिए कैसे एक सजग एवं सिद्धांत पर दृढ़ पार्टी के रूप में संघर्ष चलाना चाहिए। यह इसलिए भी खास है कि भारतीय समाज में ये सभी प्रवृत्तियां अभी गहराई तक मौजूद हैं

September 11, 2021 0

पेगासस गेट – क्या जजों और संवैधानिक संस्थाओं को आतंकी मानती है सरकार?

By Yatharth

जिस तरह से नागरिकों, जजों, मंत्रियों, सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री से जुड़े अधिकारियों, पत्रकारों, चुनाव आयुक्त और सुप्रीम कोर्ट के जजों के नाम पेगासस जासूसी के टारगेट सूची में उजागर हो रहे हैं उसे देखते हुए, इस मामले की जांच सरकार द्वारा करा ली जानी चाहिए। अब सुप्रीम कोर्ट इन याचिकाओं पर क्या निर्णय लेता है यह तो बाद में ही पता चलेगा, फिलहाल यह एक ज्वलंत बिंदु है और सरकार द्वारा इस मामले में की गयी कोई भी नजरअंदाजी घातक हो सकती है। 

September 11, 2021 0

संताल हुल: एक अशेष विद्रोह

By Yatharth

1855 का संताल हुल आदिवासियों के साहस और प्रतिशोध की गाथा है; शोषण के प्रतिकार और अपने अस्तित्व को बचाने की कहानी है। इतिहास के पन्नों में हुल को एक ऐसी घटना के रूप में अंकित किया जाता है जिसकी एक निश्चित शुरुआत हुई और फिर एक निश्चित अंत हुआ। प्रस्तुत लेख का मानना है कि हुल की शुरुआत तो हुई, लेकिन उसका अंत नहीं हुआ।

September 11, 2021 0

पूंजीवाद के डूबते जहाज का कप्तान चिल्ला रहा है; बचाओ, बचाओ!!

By Yatharth

एकाधिकारी पूंजीवादी एसोसिएशन, कार्टेल, सिंडिकेट और ट्रस्ट पहले देश के पूरे बाज़ार को आपस में बाँट लेते हैं और अपने देश के कमोबेश पूरे बाज़ार पर अपना क़ब्ज़ा जमा लेते हैं। देशी और विदेशी बाज़ार एकीकृत हो जाता है। जैसे जैसे पूंजी का निर्यात बढ़ता जाता है और विदेशी तथा औपनिवेशिक संबंधों द्वारा प्रभाव क्षेत्र बढ़ता जाता है, विशालकाय एकाधिकारी एसोसिएशन का और विस्तार होता जाता है, परिस्थितियां ‘स्वाभाविक’ रूप से अंतर्राष्ट्रीय एसोसिएशन की ओर बढ़ती हैं और अंतर्राष्ट्रीय कार्टेल अस्तित्व में आते हैं।