वर्गीय उत्पीड़न का शिकार पूरी मेहनतकश आबादी होती है पर दलित मेहनतकश आबादी साथ में जातिगत उत्पीड़न का भी अतिरिक्त शिकार होती है। क्योंकि जातिवादी उत्पीड़न वर्गीय उत्पीड़न को कायम रखने के लिए ही किया जाता है, इसलिए इसके ख़िलाफ़ संघर्ष भी सिर्फ दलितों का नहीं पूरी मेहनतकश आबादी का साझा संघर्ष बनता है।