IMT मानेसर स्थित JNS फैक्ट्री के मजदूरों का संघर्ष, दमन, और परिणाम

May 9, 2022 0 By Yatharth

एस राज

MASA द्वारा JNS संघर्ष पर हुए पुलिस दमन के खिलाफ जारी बयान

JNS (IMT मानेसर) के मजदूरों का बहादुराना संघर्ष जिंदाबाद!

मजदूरों-कार्यकर्ताओं पर हुए बर्बर पुलिस दमन, गिरफ्तारी और मुकदमों के विरुद्ध आवाज बुलंद करो!

दिनांक: 31 मार्च 2022

जेएनएस इंस्ट्रूमेंट्स लिमिटेड, जो हरियाणा के IMT मानेसर (प्लॉट 4, सेक्टर 3) स्थित ऑटोमोबाइल स्पीडोमीटर, ऑटो मीटर आदि बनाने वाली फैक्ट्री है और जहां करीब 1500 मजदूर 3-4 शिफ्टों में कार्यरत हैं, में करीब 450 मजदूर (अधिकतर महिलाएं) 3 मार्च 2022 से कंपनी के सामने धरना दे रहे थे।

यूनियन बनाने की पहल लेने के लिए 7 अगुआ महिला मजदूरों का उत्पीड़न करते हुए उनके स्थानान्तरण का ऑर्डर दे दिया गया जिसके खिलाफ कंपनी गेट के सामने ही धरने की शुरुआत हुई। हालांकि प्रबंधन, पुलिस और गुंडों की मदद से, मजदूरों को वहां से हटाने में सफल हुआ। साथ ही महिला मजदूरों के साथ बदसलूकी की गई व उनके कपड़े फाड़ने का भी प्रयास किया गया। इसके विरोध में अन्य निकाले गए मजदूर भी संघर्ष में साथ आ गए और इनकी संख्या क्रमशः बढ़ते हुए करीब 450 हो गई, और इन्होंने कंपनी गेट से करीब 250 मीटर दूर धरना जारी रखा।

29 मार्च को देशव्यापी हड़ताल के दूसरे दिन सभी संघर्षरत मजदूर सुबह से ही JNS कंपनी गेटों के सामने बैठ गए और तीनों गेटों को सफलतापूर्वक जाम कर दिया। मजदूरों के समर्थन में हुंडई मोबिस (धारूहेड़ा) के 40 संघर्षरत मजदूर पहुंच गए और जोरदार जुलूस भी निकाला। साथ ही मानेसर के बेलसोनिका, मुंजाल शोवा, एफएमआई, नपीनो, सुजुकी बाइक, मारुति सुजुकी कंपनियों तथा मारुति सुजुकी मजदूर संघ (MSMS) के यूनियन प्रतिनिधि भी वहां समर्थन में पहुंच गए। इसके साथ IFTU (सर्वहारा), इंकलाबी मजदूर केंद्र (IMK), AICWU, HMS के कार्यकर्ता भी वहां मौजूद थे। मजदूरों के जुझारू रवैये और भारी समर्थन से दबाव में आकर प्रबंधन संघर्षरत मजदूरों से वार्ता के लिए मजबूर हो गई। मजदूरों का एक 15-सदस्यीय डेलिगेशन वार्ता के लिए गया हालांकि कंपनी ने किसी भी परमानेंट मजदूर को वापस लेने से साफ इनकार कर दिया और वार्ता असफल हो गई।

इसके बाद जब सभी मजदूर बाहर आए तो पुलिस ने अचानक मजदूरों पर बर्बर लाठीचार्ज शुरू किया और बेरहमी से धक्कामुक्की व खींचतान कर करीब 150 महिला मजदूरों को बसों में भर लिया। IMK के साथी योगेश व हरीश एवं AICWU के साथी शाम को भी जबरन गिरफ्तार कर लिया गया। साथ ही आस पास खड़े कार्यकर्ताओं व आम जनता, जो वारदात की फोटो वीडियो ले रहे थे, के साथ भी पुलिस ने धक्कामुक्की की व उन्हें लाठियां मारी।

सभी मजदूरों-कार्यकर्ताओं को मानेसर सेक्टर-7 थाने ले आया गया। रात में 12 बजे तक सभी महिला मजदूरों को धमकी देते हुए और कुछ कागजात पर जबरन हस्ताक्षर करा कर रिहा किया गया। लेकिन 4 (पुरुष) मजदूरों और 3 कार्यकर्ताओं (योगेश, हरीश, शाम) को रात भर थाने में ही रखा गया। अगली सुबह (30 मार्च) को काफी जद्दोजहद के बाद जानकारी मिली कि सातों साथी मानेसर सेक्टर-2 थाने के लॉकअप में है। वहां से उन्हें मानेसर डीसीपी कार्यालय, नौरंगपुर लाया गया, जहां पर करीब 6 घंटों बाद सभी को जमानत प्रक्रिया पूरी होने पर रिहा किया गया। रिहाई प्रक्रिया में IMK, IFTU (सर्वहारा), मजदूर सहयोग केंद्र, AICWU, बेलसोनिका यूनियन, मारुति सुजुकी मजदूर संघ, मुंजाल शोवा यूनियन व AITUC के साथी डीसीपी ऑफिस पर मौजूद थे।

पुलिस द्वारा मजदूरों पर 2 FIR दर्ज किए गए हैं। एक FIR (धारा 147, 149, 188, 341, 506) कंपनी गेट जाम करके उत्पादन में बाधा डालने को लेकर है, जिसमें 23 मजदूरों का नाम है। दूसरी अधिक संगीन धाराओं वाली FIR है (धारा 120-B, 148, 149, 307, 427, 436) दंगा भड़काने को लेकर जिसमें 8 मजदूरों के नाम हैं।

मजदूर अधिकार संघर्ष अभियान (मासा) JNS के मजदूरों के बहादुराना संघर्ष को क्रांतिकारी सलाम पेश करता है, और साथ ही मजदूरों और मजदूर कार्यकर्ताओं पर पुलिस द्वारा की गई बर्बरता और अन्यायपूर्ण गिरफ्तारी एवं प्रबंधन के मजदूर-विरोधी रवैये की कड़ी भर्त्सना करता है। मासा मांग करता है कि मजदूरों व कार्यकर्ताओं पर लगाए गए सारे मुकदमे तत्काल निरस्त किए जाएं तथा बर्बरता के लिए दोषी प्रबंधन व पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई हो। श्रमिक उत्पीड़न व दमन पर रोक लगाई जाए और JNS के समस्त संघर्षरत श्रमिकों की सवेतन कार्यबहाली हो! अंत में, मासा सभी मजदूर-वर्गीय एवं जनपक्षधर लोगों व संगठनों से JNS मजदूरों के संघर्ष के समर्थन में आवाज बुलंद करने का आह्वान करता है।

कोऑर्डिनेशन कमेटी,

मजदूर अधिकार संघर्ष अभियान (MASA)

मासा के घटक संगठन, यूनियन व फेडरेशन :

ऑल इंडिया वर्कर्स काउंसिल (AIWC) / ग्रामीण मजदूर यूनियन, बिहार / इंडियन सेंटर ऑफ ट्रेड यूनियंस (ICTU) / इंडियन फेडरेशन ऑफ ट्रेड यूनियंस (IFTU) / IFTU सर्वहारा / इंकलाबी मजदूर केंद्र (IMK) / IMK पंजाब / जन संघर्ष मंच हरियाणा / कर्नाटक श्रमिक शक्ति / लाल झंडा मजदूर यूनियन (समन्वय समिति) / मजदूर सहायता समिति / मजदूर सहयोग केंद्र / मजदूर समन्वय केंद्र / सोशलिस्ट वर्कर्स सेंटर (SWC), तमिल नाडु / स्ट्रगलिंग वर्कर्स कोऑर्डिनेशन कमिटी (SWCC), पश्चिम बंगाल / ट्रेड यूनियन सेंटर ऑफ इंडिया (TUCI)

JNS संघर्ष का परिणाम और आगे का रास्ता

– सिद्धांत

शुरुआत से ही JNS के मजदूरों ने कभी AITUC तो कभी HMS के नेतृत्व में संघर्ष किए हैं। 2001 में स्थापित हुई JNS कंपनी में प्रबंधन द्वारा तमाम तरीकों से किए जा रहे उत्पीड़न के खिलाफ मजदूर पहली बार 2014 में हड़ताल पर गए थे। इसके बाद भी मजदूर 3-4 बार हड़ताल पर जा चुके हैं। हालांकि केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के नेतृत्व में लगभग हर बार मजदूरों की राय के खिलाफ जाकर केवल आश्वासन के आधार पर ही समझौता कर लिया जाता था। इसी कारण से 2014 में जहां JNS में करीब 100 स्थाई मजदूर थे, वहीं आज 30-35 ही बचे थे। 

3 मार्च 2022 से शुरू हुआ यह संघर्ष भी इन्हीं दो यूनियनों के नेतृत्व के बीच फंसा रहा। केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के अपेक्षाकृत बड़े ढांचे और पहुंच के कारण नेतृत्वकारी मजदूर साथियों का भरोसा उन पर बना। हालांकि ऐसे नेतृत्व के बावजूद JNS के मजदूरों व नेतृत्वकारी साथियों (जो मुख्यतः महिलाएं थी) की समझ और चेतना पहले के संघर्षों की बदौलत जिस हद तक विकसित हो पाई थी, उसके अनुसार उन्होंने बहादुर और बेहतरीन रूप से यह संघर्ष चलाया, जिसमें गेट जाम करने के पहले करीब एक महीना कंपनी के समक्ष दिन-रात 24 घंटे मजदूरों की तैनाती बनी रही। मजदूरों से बात करने पर यह पता चला था कि यूनियन के नेता संघर्ष के नाम पर केवल शांतिपूर्ण ढंग से धरना जारी रखने और संख्या बढ़ाने की नसीहत दिया करते थे और श्रम विभाग की प्रक्रिया में ही मुख्यतः उपस्थित रहते थे।

हालांकि अंत में फैक्ट्री गेट जाम करने का निर्णय संभवतः HMS के निरीक्षण में हुआ, क्योंकि 29 मार्च के जाम के दिन HMS के नेता ही वहां उपस्थित थे। हालांकि उनकी उम्मीद से परे, मजदूरों ने कंपनी द्वारा दिया गया अधूरा प्रस्ताव ठुकरा दिया और समझौता नहीं हो पाया जिसके बाद पुलिस ने लाठीचार्ज शुरु किया। गौरतलब है कि लाठीचार्ज के वक्त केंद्रीय ट्रेड यूनियन के कोई नेता स्थल पर मौजूद नहीं थे। अगले दिन 30 मार्च को जमानत के समय AITUC के नेता अंत में कुछ जमानती जुटा कर पहुंचे जिसके बाद संघर्ष वापस AITUC के नेतृत्व में चला गया।

29-30 मार्च के प्रकरण के ठीक बाद JNS मजदूरों ने फैक्ट्री के सामने (रोड की दूसरी तरफ) अपना धरना शांतिपूर्वक रूप से जारी रखा था, हालांकि मजदूरों की संख्या पहले से काफी कम हो गई थी। मजदूरों के इस हौसले को देख कंपनी प्रबंधन व पुलिस-प्रशासन के गठजोड़ ने अपना दमनचक्र दुबारा शुरू किया और संगीन धाराओं वाली FIR (संख्या 95) के तहत गिरफ्तारियां शुरू कर दीं। नेतृत्वकारी मजदूरों को तुरंत गिरफ्तार कर लिया गया। इसके कारण संघर्षरत मजदूरों के लिए अपने साथियों की रिहाई प्रमुख मुद्दा बन गया और इसी दबाव में मजदूरों पर AITUC के नेतृत्व में ‘समझौता’ थोप दिया गया।

अप्रैल के पहले हफ्ते में AITUC ने मजदूरों की और से पेश होकर प्रबंधन व प्रशासन (श्रम विभाग) के साथ त्रिपक्षीय समझौते को अंजाम दिया जो पहले के समझौतों की तरह ही खोखला व केवल आश्वासनों पर आधारित था। समझौता प्रक्रिया के पहले किसी अन्य संगठन को सूचना नहीं दी गई। जो संगठनकर्ता गिरफ्तार हुए थे उन्हें भी नहीं। समझौते में बस यह ठोस बात निकल कर आई कि 7 अप्रैल को ठेकेदार 25 श्रमिकों को ड्यूटी पर वापस लेंगे, इसके बाद 15 दिनों में अन्य श्रमिकों को वापस लेने का आश्वासन दिया गया। उत्पीड़न के तहत 6 महिला श्रमिकों का ट्रांसफर आदेश का “एक महीने के अंदर समाधान” निकालने का आश्वासन, और इसके अलावा पुलिस केस पर भी केवल “सहानुभूति पूर्वक विचार” किए जाने का आश्वासन दिया गया।

समझौते के बाद अब तक करीब 60 ही मजदूरों को वापस लिया गया है। यह प्रक्रिया भी बेहद धीमी रफ्तार से बढ़ रही है जिसमें महीनों लग सकते हैं, जिसके कारण ज्यादातर मजदूर निराश होकर प्रबंधन से हिसाब ले ले रहे हैं। करीब 50 मजदूरों ने अब तक हिसाब लिया है। जो हिसाब मिल रहा है वह भी नगण्य है (11 हजार रुपए प्रति वर्ष, कार्यावधि अनुसार)। उसपर भी कुछ प्रतिशत कट “समझौता करवाने वाले” AITUC का होगा, जो कि केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के लिए आम बात है। यहां तक कि गिरफ्तार मजदूरों में से 3 लोग (साथी अजीत व 2 अन्य) अब तक जेल में हैं बेल नहीं मिल पाई है। यानी इतने शानदार संघर्ष के बाद एक तो समझौता जबरन दमन का डर दिखा कर करवाया गया और समझौते में न मजदूरों को नौकरी मिली, न ढंग का हिसाब, और न ही पुलिस केस से राहत।

JNS मजदूर संघर्ष एक और उदाहरण है कि समझौतापरस्त व अवसरवादी केंद्रीय ट्रेड यूनियनों (CTUs) के नेतृत्व में एक बहादुर मजदूर आंदोलन का क्या हश्र होता है। CTUs संघर्ष की राह छोड़ अब मजदूर आंदोलन में रस्मअदायगी व समझौतापरस्ती का केंद्र बन चुके हैं जिसके कारण अब ज्यादातर मामलों में उनकी भूमिका जुझारू व निर्णायक मजदूर संघर्षों को नियंत्रित कर समझौते की तरफ मोड़ने एवं मजदूरों पर प्रबंधन के साथ समझौता थोपने की हो गई है। समझौतापरस्ती का यह भी एक लक्षण है कि ऐसे संघर्ष कमाई का एक स्रोत बन गए हैं। फिर भी अपेक्षाकृत बड़ा ढांचा, अधिक संसाधन व व्यापक पहुंच/संपर्क होने के कारण मजदूर कम से कम शुरुआत में उन्हीं की तरफ झुकाव रखते हैं। इसके अतिरिक्त पूरी तरह से अर्थवाद में लिप्त यह CTUs अपने नेतृत्व में मजदूरों को आर्थिक मुद्दों तक ही सीमित रखते हैं जो मजदूर वर्ग के राजनीतिकरण व वर्गीय चेतना के विकास में बड़ी बाधा बनती है। यही JNS में देखा गया कि पिछले कई सालों से तमाम संघर्षों के बाद भी मजदूरों, यहां तक कि नेतृत्वकारी साथियों, में वर्गीय चेतना का अधिक विकास नहीं हो पाया था जिसके कारण वह आपसी वर्गीय एकता स्थापित करने और संघर्ष को एक फैक्ट्री के मुद्दे से आगे ले जाने में विफल हुए। यही हाल IMT मानेसर की अन्य यूनियनों (लगभग सभी CTUs से संबद्ध) व मजदूरों का था जो कि एक महीने से जारी इस संघर्ष में मौखिक व प्रतीकात्मक समर्थन देने के अलावा और कुछ नहीं कर पाए।

इस संदर्भ में धारूहेड़ा के हुंडई मोबिस के संघर्षरत मजदूरों की पहल काबिल-ए-तारीफ है जो कि इफ्टू (सर्वहारा) के साथियों द्वारा सूचना मिलते ही स्वतंत्र पहल से JNS मजदूरों को ठोस भौतिक समर्थन देने दूसरे जिले से 40 की संख्या में वहां पहुंच गए और पुलिस तैनाती के बीच समर्थन जुलूस निकाला। इस वाकया से संघर्षरत मजदूरों की वर्गीय एकता तथा मजदूर संघर्षों की एकता कायम करने की नई उम्मीद जगती है।

क्रांतिकारी मजदूर संगठनों व यूनियनों के समक्ष आज यह चुनौती है कि आपस में कई हिस्सों में बटे होने और इस कारण से कम ताकत होने के बावजूद वे मजदूरों के बीच वर्गीय चेतना व राजनीति का विकास कैसे कराएं, क्योंकि इसी की बदौलत मजदूर आंदोलन को एक जुझारू व निर्णायक मोड़ दिया जा सकता है। इसके लिए क्रांतिकारी संगठनों को आम व संघर्षरत मजदूरों के बीच निरंतर रूप से सघन क्रांतिकारी प्रचार ले जाना होगा, तथा जहां परिस्थिति बने वहां ऐसे संघर्षों की बागडोर संभालने की भी क्षमता रखनी होगी और हिम्मत दिखानी होगी। इसके साथ ही क्रांतिकारी संगठनों तथा यूनियनों को आपसी एकता स्थापित करने के नवीन प्रयास पूरे जोश के साथ करने होंगे ताकि इस प्रक्रिया में गतिवृद्धि हो। इन रास्तों पर ही आगे बढ़ कर हम CTUs के समझौतापरस्त-अवसरवादी केंद्र से हट कर मजदूर आंदोलन के लिए एक निरंतर, जुझारू व निर्णायक संघर्ष विकल्प/केंद्र को स्थापित कर पाएंगे।