पूंजीवादी व्यवस्था की बर्बरता कड़वी सच्चाई का पर्दाफाश करता वैश्विक असमानता रिपोर्ट 2022

January 18, 2022 0 By Yatharth

असली समानता पूंजीवाद को ज़मींदोज़ कर वैज्ञानिक समाजवाद ही ला सकता है।

संजय सर्वहारा

परिचय

वैश्विक असमानता रिपोर्ट (world Inequality Report) 2022  वैश्विक स्तर पर देशों के बीच एवं देशों के अंदर धनलोलूप और पूंजीवाद से कंगाल हुए लोगों की आय एवं सम्पत्ति की असमानता को वैज्ञानिक पद्धति से मापने और विश्लेषण करने वाला एक बहुत ही महत्वपूर्ण शोधपरक दस्तावेज़ है जिसकी पूरी दुनिया में चर्चा हो रही है। सैकड़ों आंकड़े और तालिकाओं से लैस  236 पृष्ठों वाली इस  रिपोर्ट को विश्व प्रसिद्ध फ़्रांसीसी अर्थशास्त्रियों लुक़ास चंसेल (Lucas Chancel), थोमस पिकेटी (Thomas Picketty एवं अन्य की टीम  ने दुनिया भर में फैले एक सौ से अधिक शोधार्थियों के सहयोग से और  चार वर्ष के शोध के उपरांत लिखा है, जिसे वर्ल्ड इनइक्विलिटी लैब ने प्रकाशित किया है।

इस ऐतिहासिक दस्तावेज़ को इस वेब-साइट से https://wir2022.wid.world/www-site/uploads/2021/12/WorldInequalityReport2022_Full_Report.pdf से डाउनलोड भी किया जा सकता है।

रिपोर्ट के अनुसार, क्रयशक्ति समानता (PPP) के आधार पर कहा गया है कि दुनिया में एक औसत वयस्क व्यक्ति 2021 में 23,380  अमेरिकी डौलर या लगभग 17 लाख रुपए का उपार्जन कर रहा था। एक औसक वयस्क के पास 102600  अमेरिकी डौलर या 77 लाख रुपए की सम्पत्ति आंकी गई। लेकिन यह औसत देशों के बीच की और देशों के अंदर दोनों स्तर पर विद्यमान भारी विषमताओं को छुपा लेता है। फ़िलहाल दुनिया में 10% सबसे अमीर लोग कुल वैश्विक आय के 52% हिस्से पर क़ाबिज़ हैं, जबकि सबसे ग़रीब 50% आबादी के पास कुल राष्ट्रीय आय का मात्र  8.5% ही है । दूसरे शब्दों में कहें, तो दुनिया के शीर्ष के 10% लोग प्रतिवर्ष औसतन 122900 अमेरिकी डॉलर (लगभग 92 लाख रुपए) कमाते हैं , जबकि नीचे के 50% लोग प्रतिवर्ष औसतन 3920  अमेरिकी डौलर (लगभग 3 लाख रुपए)  कमाते हैं। 

सम्पत्ति (wealth) से सम्बंधित वैश्विक असमनतायें आय (Income) संबंधित असमानताओं से भी ज़्यादा स्पष्ट है। वैश्विक आबादी के सबसे ग़रीब 50% के पास मुश्किल से ही कोई सम्पत्ति है जो  कुल वैश्विक सम्पत्ति का महज़ 2% ही आती  है। इसके विपरीत वैश्विक आबादी के शीर्ष के 10% अमीर  लोग  कुल सम्पत्ति के 76% पर क़ाबिज़ हैं। क्रय शक्ति समानता के आधार पर आबादी के सबसे ग़रीब 50% लोगों की प्रति वयस्क मात्र 4100 अमेरिकी डॉलर (लगभग 3 लाख रुपए) की सम्पत्ति है, जबकि शीर्ष के 10% अमीर लोगों के पास औसत सम्पत्ति 771300 अमेरिकी डौलर (लगभग 6 करोड़ रुपए) हैं।

नीचे के आंकड़ों में अमेरिका और पश्चिम यूरोप में 1910 से 2020 के दौरान विभिन्न वर्गों के बीच की आर्थिक असमानता को प्रदर्शित किया गया है।

इस रिपोर्ट में लैंगिक असमानता के साथ-साथ कार्बन असमानता पर भी विस्तृत आंकड़े और विश्लेषण दिए गये हैं। यह रिपोर्ट कई भ्रमों से पर्दा उठाता है। मसलन, औसत राष्ट्रीय आय विभिन्न वर्गों के बीच की असमान आय और सम्पत्ति को छुपा लेता है। महज़ जीडीपी समाज की कड़वी सच्चाई को व्यक्त नहीं करता। ट्रिकल डाउन थियोरी से दुनिया भर के ग़रीबों को कुछ हासिल नहीं हुआ, वरण मुनाफ़ाख़ोर और इज़ारेदार पूंजीपति और भी बड़े अरबपति और खरबपति होते चले गए। क़ानून के राज्य के सिद्धांत को ठेंगा दिखाते आदमखोर  वित्तीय पूंजी के शार्कों ने खरबों डॉलर कर की कर डकैती  (tax evasion) की और मालामाल होते गये। एक और तथ्य उभरकर आता है, वह यह है कि इस इज़ारेदार  वित्तीय पूंजी के दौर में सरकारी सम्पत्ति का क्षरण हुआ है, लेकिन निजी सम्पत्ति ख़ासकर बड़े पूंजीपतियों की आय एवं सम्पत्ति में  बेतहताशा बढ़ोतरी हुई  है। और इस तरह विकसित और विकासशील देशों की सरकारें पूंजीपतियों के सामने मेमने जैसे व्यवहार करते दिखती हैं। तथ्यों और आंकड़ो के आधार पर यह साबित किया गया है कि 1980-2020 के दौर  में भयानक स्तर पर अमीरों और पूंजीपतियों ने करों की डकैती की।  दूसरी तरफ़ दुनिया के बहुसंख्यक आबादी ग़रीब तथा और ग़रीब होता चला गया। इस रिपोर्ट के अध्ययन से पता चलता है कि मुनाफ़े की हवस में पागल बाज़ार और पूंजीवाद के सामने  बुर्जुआ जनवाद, मानवाधिकार, विकासवाद, कल्याणकारी राज्य, उदारवाद, और संविधानवाद दम तोड़ रहा है या दम तोड़ता दिखता है।हालांकि इस रिपोर्ट के लेखकों ने आय और सम्पत्ति की असमानता को हल करने के जो नुस्ख़े सुझाए हैं वे कीन्सवाद से आगे नहीं जाता। मसलन, आय और सम्पत्ति के न्यायमूलक वितरण करने के लिए सम्पत्ति कर बढ़ाना, बाज़ार पर नियंत्रण स्थापित करना आदि। असमानता को बुर्जुआ नुस्ख़े से कम करने के अलावा इस रिपोर्ट में जो एक दूसरी और महत्वपूर्ण आशा की किरण दिखाई देता है वह है सोवियत समाजवाद के दौर ( 1917-1956  ) और माओ के समय के समाजवादी चीन (1949-1979  ) का अनुभव, जब असमानता पर निर्णायक हमला किया गया, जो यह साबित करता है कि समानता को हासिल करना केवल अकादमिक जुबानी जमा खर्च नहीं है, बल्कि यह वास्तव में हासिल भी किया जा सकता है। समाजवादी रूस (लेनिन व स्टालिन के दौर में ) और समाजवादी चीन (माओ) ने वास्तविक समानता हासिल की जो दुनिया के लिखित इतिहास में पहली बार हुआ। इस संदर्भ में  यह रिपोर्ट महत्वपूर्ण आंकड़े देता है, जिसे सावधानी से पढ़ने और समझने की अवश्यकता है। 

भारत

जहां तक भारत की  बात है, तो इस रिपोर्ट में भारत में असमानता की भयानक स्थिति पर टिप्पणी करते हुए ठीक ही कहा गया है कि “भारत एक बहुत ही आसमान देश है, जहां थोड़े से संपत्तिवान कुलीन हैं, लेकिन यह एक ग़रीब देश है। (“India stands out as poor and very unequal country with an affluent elite”)  भारत में वयस्क आबादी की औसत राष्ट्रीय आय यूरो PPP 7,400 यानी 204,200 रुपए  है। लेकिन यह औसत राष्ट्रीय आय भारत में असमानता के कुरूप चेहरे को छुपा लेता है। आगे के आंकड़े देखेंगे तो असली तस्वीर स्पष्ट होगा। भारत में नीचे के 50% लोगों की आय मात्र यूरो  PPP 2000 या 53,610 रुपए हैं। वहीं शीर्ष के 10%  की आय नीचे के 50% के आय के तुलना में 20 गुना अधिक है जो यूरो  PPP 42,500 या 1,166,520 रुपए आता है। यही नहीं, शीर्ष के 1%,  10% और नीचे के 50% लोगों की कमाई क्रमश: कुल राष्ट्रीय आय का 22%, 57% और 13% है। विभिन्न वर्गों की आय से कहीं अधिक महत्वपूर्ण आंकड़ा वर्गों की सम्पत्ति की असमानता वाले आंकड़े में निहित है। भारत में औसत हाउस होल्ड की सम्पत्ति यूरो PPP 35,000 या 9,83,010 रुपए हैं, जबकि चीन में औसत हाउस होल्ड की सम्पत्ति यूरो PPP 81,000 है। भारत में नीचे के 50% लोगों के पास नगण्य सम्पत्ति है, जो औसत सम्पत्ति यूरो PPP 4200  या 66,280 रुपए (कुल का 6%) है। भारत का मध्यम वर्ग पश्चिम या चीन की तुलना में औसतन ग़रीब है। उनके पास औसत सम्पत्ति यूरो PPP 26,400 या  7,23,930 रुपए है, जो कुल औसत राष्ट्रीय सम्पत्ति का लगभग 29.5% है। वहीं, शीर्ष के 1 % के पास कुल सम्पत्ति का 33% ( यूरो PPP या 6.1 मिलियन यानी  63,540,700 रुपए) हैं। और शीर्ष के 10% लोगों के पास कुल सम्पत्ति का 65% ( यूरो PPP या 231,300 या 32,449,360 रुपए) हैं। 

रिपोर्ट विश्लेषण करके यह बतलाता है कि भारत में ब्रिटिश उपनिवेशवाद के   दौरान (1858-1947) भारत के विभिन्न वर्गों में आय और सम्पत्ति की असमानता बहुत अधिक थी। इस दौरान शीर्ष के 10% लोगों की आय 50% से अधिक थी। आज़ादी के बाद तथाकथित नेहरुवियन समाजवाद के दौरान शीर्ष 10% लोगों की आय 35-40% के बीच रही। 1980 के बाद जब देश में नई आर्थिक नीति (LPG) आई तो यह देखा गया कि भारत के विभिन्न वर्गों के लोगों की आय और सम्पत्ति में असमानता की खाई काफी ज़्यादा बढ़ गई। इस दौर के पूंजीवादी सुधार से मात्र ऊपर के 1% लोगों को फ़ायदा हुआ है। रिपोर्ट में यह भी टिप्पणी की गई है कि पिछले तीन वर्षों में असमानता वाले आंकड़े की गुणवत्ता में भारी गिरावट आई है, जिससे असमानता का असली स्वरूप निर्धारण करने में कठिनाई हुई है। यह कोई रहस्य की बात नहीं है की मोदी और उसके संगठन ख़ासकर आरएसएस/भाजपा का प्रयास सच्चाई को दबाने का रहा है ताकि लोग सवाल खड़े ना करें और मोदी के  ऊलजलूल लफ़्फ़ाज़ी में उलझे रहें। नीचे के आंकड़े और तालिका भारत में असमानता की सच्चाई को उजागर करते हैं। आप ज़रा ग़ौर से देखे और समझें ।  

सोवियत रूस आर्थिक और सामाजिक ग़ैरबराबरी को मिटाने वाला पहला देश था। नीचे का फ़िगर यह दिखलाता है कि लेनिन और स्टालिन के समय रूस में आय और सम्पत्ति में असमानता मिट गई थी, लेकिन जैसे ही स्टालिन की मौत हुई उसके बाद रूस में पूंजीवाद की पुनः स्थापना हो गयी और ख़ासकर नब्बे के दशक में सोवियत रूस के बिखरने के बाद बहुत तेजी से आर्थिक असमानता बढ़ गई। वर्तमान में रूस में राष्ट्रीय औसत आय 22500 यूरो है। नीचे के 50% लोगों की आय PPP 7700  यूरो या 13304350 रुबल है। रूस में शीर्ष के 10% की आय नीचे के 50% की आय से 14 गुना अधिक है। रिपोर्ट के अनुसार रूस में बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भ में आय की असमानता बहुत अधिक थी, जिसे 1917 की सोवियत क्रांति ने हर प्रकार की असमानता को समाप्त करते हुए आर्थिक असमानता को भी समाप्त कर दिया। आंकड़ो से यह साबित होता है कि रूस में जबतक समाजवाद का दौर रहा,  रूसी समाज में आय की असमानता समाप्त कर दी गयी थी। लेकिन अस्सी के दशक के बाद से रूस में आय और सम्पत्ति में असमानता बढ़ती ही जाती है। आज के दौर में रूस में शीर्ष के 10% लोग कुल राष्ट्रीय सम्पत्ति का 70 पर क़ाबिज़ हैं, जो दिखाता है कि रूस दुनिया में सबसे अधिक असमान देशों में से एक है। 

चीन में माओ के नेतृत्व में क्रांति होने के बाद समाजवाद ने फिर यह साबित कर दिखाया कि आर्थिक बराबरी को समाप्त किया जा सकता है। चीन में 1950-1980 के दौरान लोगों की आय और सम्पत्ति में असमानता मिटती नज़र आती है, लेकिन माओ के मौत के बाद, चीन में देंगे सियाओ पिंग के नेतृत्व में जैसे ही पूंजीवाद की वापसी हुई, चीन में आर्थिक असमानता बढ़ती गई। नीचे का यह चार्ट/फ़िगर यही साबित करता है। वर्तमान में चीन में नीचे के 50% आबादी की कमाई या आय मात्र 25,520 युयान है, जबकि शीर्ष के 10% की कमाई लगभग 14 गुना आधिक यानी 370,210  युयान है। चीन में आय में असमानता यूरोपीय देशों से भी अधिक है लेकिन अमेरिका (17%) और भारत (21%) से कम है। चीन में लोगों की सम्पत्ति (wealth) में असमानता भी तेज़ी से बढ़ी  है। चीनी समाज के नीचे के 50% आबादी का औसत सम्पत्ति PPP 55,270  युयान , बीच के 40% का सम्पत्ति PPP 280,500  युयान और शीर्ष 10 % का सम्पत्ति PPP 2,943,907  युयान है। यह चीनी मिज़ाज वाली समाजवादी (पूंजीवादी) व्यवस्था का ग़ज़ब का कमाल है कि 10% अमीर लोग कुल राष्ट्रीय सम्पत्ति के 70% पर क़ाबिज़ हैं, वहीं नीचे के 50% लोगों के पास कुल राष्ट्रीय सम्पत्ति का मात्र 7% है। 

पूँजीवाद का मक्का कहा जाने वाले अमेरिका में लोगों की आय एवं सम्पत्ति की असमानता सबसे अधिक है, जिसे  नीचे का चार्ट/फ़िगर प्रदर्शित करता है। रिपोर्ट में दिए गए आंकड़ों और तथ्यों से यह स्पष्ट निष्कर्ष निकलता है  कि किस तरह वैश्विक पूंजीवाद ने आर्थिक असमानता को विकराल बनाया है जिससे  महज़ चंद पूंजीपति ही और ज़्यादा अमीर हुए  हैं, जबकि आम अमेरिकियों की आय या सम्पत्ति में कोई ख़ास बढ़ोतरी नहीं हुई है। अमेरिका में वयस्क की औसत राष्ट्रीय आय 77,090 अमेरिकी डौलर है। नीचे की 50% आबादी की प्रति व्यक्ति आय PPP(क्रय शक्ति) 14,500 अमेरिकी डौलर  है, जबकि शीर्ष के 10% आबादी की प्रति व्यक्ति आय PPP 350,440 अमेरिकी डौलर है।  यूरोपीय देशों की तुलना में अमेरिका में आय की असमानता अधिक है।  शीर्ष के 10% आबादी की आय नीचे के 50% आबादी की आय से 17 गुना अधिक है। 

अमेरिका में लोगों की सम्पत्ति में असमानता भी काफ़ी बड़ा है। शीर्ष की 10% आबादी के पास कुल राष्ट्रीय सम्पत्ति का 70% संपत्ति है, जबकि नीचे की 50% आबादी के पास कुल राष्ट्रीय सम्पत्ति का मात्र 1.5 % ही है। विभिन्न सामाजिक संस्तर की सम्पत्ति का आकलन करें तो पता चलता शीर्ष के 10%  के पास PPP 2,846,360  अमेरिकी डौलर, बीच के 40% के पास PPP 280,150 अमेरिकी डौलर और नीचे के 50% के पास मात्र PPP 12,130 अमेरिकी डौलर की सम्पत्ति है , जो दुनिया में सबसे अधिक आसमान वितरण को व्यक्त करता है। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि अमेरिका में नीचे के 50% के पास जो कुल सम्पत्ति है वह चीन के नीचे की 50% आबादी की कुल सम्पत्ति से कम है।

इस रिपोर्ट की केंद्रीय अंतर्वस्तु यह है कि असमानता अनिवार्यता नहीं बल्कि यह एक राजनीतिक इच्छा  है (inequality is a political choice, not an inevitability )।  अतः आर्थिक असमानता को हल करने का सवाल एक राजनीतिक सवाल बन जाता  है। पूंजीवाद केवल कुछ ही लोगों के लिए स्वर्ग लाता है, बाक़ी अधिकांश आबादी ख़ासकर मज़दूर और मेहनतकश अवाम के लिए ग़ुरबत, बीमारी, अज्ञानता और नर्क के सिवा कुछ नहीं लाता। मुनाफ़े की हवस में बाज़ार हर चीज़ को जींस या माल में तब्दील कर देता है। इस अन्यायपूर्ण पूंजीवाद को नेस्तनाबूद किए वगैर वास्तविक समानता नहीं लायी जा सकती। असमानता की जड़ में पूंजीवादी व्यवस्था है जिसका समाधान केवल और केवल मज़दूर वर्ग का राज्य और समाजवाद ही हो सकता है।