खाद्य सुरक्षा : राशन कार्ड

June 20, 2022 0 By Yatharth

सभी को राशन कार्ड दो, सभी को पर्याप्त राशन दो;

‘एक देश-एक राशन कार्ड योजना’ लागू करो

एस वी सिंह

यूपीए सरकार द्वारा लाए, ‘राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून, 2013’ का शीर्षक इतना खूबसूरत है कि बिना कुछ खाए ही डकार आ जाए!! “मानवीय जीवन चक्र का सम्मान करते हुए सभी को गुणवत्तापूर्ण एवं पर्याप्त खाद्य पदार्थ ऐसी कीमत पर उपलब्ध कराने वाला कानून जिसे सभी सहन कर सकें, साथ ही जिससे सभी गरिमापूर्ण जीवन जीते हुए खाद्य सम्बन्धी सभी चिंताओं से हमेशा के लिए मुक्त हो जाएं”। मानो मोक्ष प्राप्ति का द्वार ही खुलने जा रहा है!! आवरण इतना खूबसूरत और आकर्षक और अन्दर असल मंशा कितनी भयानक और अमानवीय! इस कानून के साथ ही शुरू हुई, ‘राशन कार्ड सघन मिलान प्रबंधन योजना’ (Integrated Management of Public Distribution System), जिसके अंतर्गत हर राशन कार्ड को आधार कार्ड से सम्बद्ध (link) किया जाना था। इस अमानवीय दुश्चक्र ने ना जाने कितने लोगों की जान ली। सलाम है उस पत्रकार को जिसने झारखण्ड के दलित-बहुल गांव करिमाती बस्ती की 11-वर्षीय मासूम बच्ची संतोषी कुमारी की वो दिल दहलाने वाली कहानी उजागर की जिसमें वो ‘भात-भात’ बुदबुदाते हुए 27 सितम्बर 2017 को मर गई। भुखमरी से मरने वालों की असल तादाद का पता तो चल ही नहीं सकता क्योंकि भूख से मौत तुरंत नहीं होती बल्कि धीरे-धीरे, लम्बे समय में होती है। इस रिपोर्ट से लेकिन एक बात जरूर पता चल गई कि राष्ट्रीय खाद्य कानून, 2013 का असल मकसद ये देखना था कि कितने राशन कार्ड आधार कार्ड से लिंक हुए हैं। लिंक ना हो पाने की कई तकनीकी वजह हो सकती हैं, लेकिन क्या वजह है, ये जाने बगैर जो भी राशन कार्ड आधार कार्ड से लिंक नहीं हुआ, उसे फर्जी बताकर रद्द करने की प्रक्रिया शुरू हो गई। उन कार्डों पर सरकारी सस्ते गल्ले की दुकानों से जीवनावश्यक खाद्य सामग्री मिलनी तुरंत बंद हो गई। झारखण्ड में भूख से तड़पकर ‘भात-भात’ कहते मरी, संतोषी कुमारी के घर भी वैधानिक राशन कार्ड मौजूद था लेकिन चूंकि संतोषी की मां का अंगूठा, मशीन से कन्फर्म नहीं हुआ, इसलिए उन्हें कई महीने से कोई राशन नहीं दिया गया था। उसके बाद पता चला कि राशन कार्ड को आधार से लिंक करने और जो लिंक ना हो पाएं उन्हें फर्जी बताकर रद्द करने की प्रक्रिया ‘राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून, 2013’ के साथ ही ‘राष्ट्रीय कार्ड सघन मिलान योजना’ के तहत शुरू हो गई थी। उस कानून को लाने का असल मकसद ही वह था। लेकिन जैसा कि हर जन-विरोधी मामलों में हुआ है, यूपीए काल में ये प्रक्रिया धीमी थी, 2014 के बाद मोदी की ‘डायनामिक’ सरकार आने के बाद गति तीव्र हो गई। 2014 के बाद ‘फर्जी’ राशन कार्ड रद्द करने की प्रक्रिया 2013 के मुकाबले 4 गुना (https://timesofindia.india times.com/india/govt-weeded-out-4-4-crore-bogus-ration-cards-in-7-yrs/articleshow/79202396.cms) बढ़ गई। मोदी सरकार तो वजूद में आई ही यूपीए सरकार में व्याप्त ‘नीति पक्षाघात’ (policy paralysis) दूर कर, काम को तूफानी गति से निबटाने के लिए है!! इस अमानवीय, क्रूर प्रक्रिया की भयावहता का पता तब चला जब कुछ जन-सरोकार रखने वाले लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की। 

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को नवम्बर 2020 में बताया कि पिछले 7 सालों में कुल 4.4 करोड़ राशन कार्ड रद्द किए गए हैं। देश सुनकर सन्न रह गया। कोई हैरानी की बात नहीं कि राशन कार्ड रद्द करने के मामले में यू पी पहले नंबर पर रहा और उसने कुल 1.7 करोड़ राशन कार्ड रद्द कर देशभर में राशन कार्ड रद्द करने के काम का 38.63% अकेले ही पूरा कर डाला! यू पी के बाद पश्चिम बंगाल ने 68 लाख तथा महाराष्ट्र 42 लाख, कर्नाटक 30 लाख, तेलंगाना 22 लाख और उसके बाद सभी राज्यों ने संवेदनहीनता की पराकाष्ठा करते हुए राशन कार्ड रद्द करने का काम युद्ध स्तर पर शुरू किया। इस मानवद्रोही कार्य की विकरालता और उसमें राज्यों की अभूतपूर्व कुशलता के क्या कहने। मामला मीडिया में खूब चर्चित हुआ और सुप्रीम कोर्ट ने 17 मार्च 2021 के अपने फैसले में राशन कार्ड के मामले में बहुत महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश जारी किए लेकिन धरातल पर वे बिलकुल भी लागू नहीं हुए। पीड़ादायक बात ये है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन नहीं हुआ और उससे सुप्रीम कोर्ट को भी कोई फर्क नहीं पड़ा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आधार कार्ड के अनुसार अंगूठे के बायोमेट्रिक मिलान ना होने पर 4.4 करोड़ राशन कार्ड रद्द हो गए और इतने परिवारों को जीवनावश्यक खाद्य पदार्थों से वंचित कर दिया गया, ये एक अमानवीय कृत्य है जिसके भयानक परिणाम हो रहे होंगे। पश्चिम बंगाल में राशन कार्ड व्यक्तियों के नाम पर जारी होता है लेकिन बाकी देश भर में एक पूरे परिवार को एक राशन कार्ड जारी होता है। सुदूर देहात में जहां बिजली नहीं होती, इन्टरनेट नहीं होता वहां उंगली के निशान अथवा अंगूठे के निशान का मिलान ना होने का बहाना बताकर राशन कार्ड रद्द कर देना अथवा राशन देने से मना कर देना अमानवीय है। आधार कार्ड से राशन कार्ड सघन मिलान प्रबंधन की इस योजना को तुरंत रोका जाए क्योंकि इससे जरूरतमंदों को खाद्य सामग्री देने से मना किया जा रहा है। साथ ही, चूंकि उसी वक्त भयानक कोरोना महामारी में और उससे भी भयानक लॉक डाउन की वजह से विस्थापित मजदूरों पर आई विकराल विपत्ति की घटनाएं ताजा थीं इसीलिए सुप्रीम कोर्ट ने, एक समिति द्वारा सुझाई योजना, ‘एक देश एक आधार कार्ड योजना’ (One Nation One Ration Card Scheme, ONORCS) को तुरंत लागू करने को कहा। राष्ट्रीय सैंपल सर्वे संगठन (NSSO) के सर्वे के अनुसार देश में 9 करोड़ से ज्यादा विस्थापित श्रमिक हैं। ये श्रमिक अकेले अथवा अपने परिवार सहित या तो राज्य के अन्दर ही देहात से शहरों में या एक राज्य से सुदूर दूसरे राज्य में मजदूरी करने को विवश हैं। इन मजदूरों का राशन कार्ड इनके अपने जन्म वाले राज्य से अपने कार्य करने वाले राज्य में स्थानांतरित नहीं हो पाता इसलिए इस मेहनतकश वर्ग को सस्ते अनाज की सरकारी योजना (PDS) का कोई लाभ नहीं मिल पाता और इन्हें महंगे बाजार भाव से ही खाद्य पदार्थ खरीदने को बाध्य होना पड़ता है। इसलिए असली जरूरत राशन कार्ड को आधार कार्ड से जोड़ने की नहीं बल्कि समूचे देश में विभिन्न राज्यों द्वारा जारी राशन कार्डों को आपस में जोड़ने की है, जिससे आर्थिक रूप से अत्यंत संवेदनशील विस्थापित मजदूरों के इस विशाल समुदाय को मंहगे अनाज खरीदने को विवश ना होना पड़े। समस्तीपुर से अपने परिवार सहित लुधियाना गया मजदूर परिवार, लुधियाना में ही अपने निवास के नजदीक वाली सरकारी सस्ते गल्ले की दुकान से राशन खरीद सके। सुप्रीम कोर्ट के इस नेक फैसले पर कुछ दिन मीडिया में जरूर तालियां बजीं लेकिन जमीन पर कोई फर्क नहीं पड़ा। विस्थापित मजदूर आज भी पीडीएस योजना से पूरी तरह महरूम हैं, अभी भी उन्हें उसी खुले बाजार से ही गेहूं, चावल, दाल, तेल आदि खरीदना होता है, जहां सभी वस्तुओं की कीमतों में आग लगी हुई है। 

पांच राज्यों के विधान सभा चुनावों के बाद राशन कार्ड मामले में फिर हड़कंप मच गया

मार्च 2021 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद राशन कार्ड को आधार कार्ड से लिंक करना बंद हो गया और राशन कार्ड रद्द होने की खबरें आनी भी बंद हो गई लेकिन इस साल फरवरी-मार्च में पांच राज्यों में हुए चुनावों के बाद जिस तरह फिर पहले से भी ज्यादा भयावहता से ये काम शुरू हो गया, उसने साबित कर दिया कि राशन कार्ड रद्द होना सुप्रीम कोर्ट के आदेश का सम्मान करते हुए बंद नहीं हुआ था बल्कि चुनावों के मद्देनजर हुआ था। यही वजह थी कि मार्च 2022 से पहले कुल 29.53 लाख नए राशन कार्ड भी जारी हुए। ये किस आधार पर, किसे हुए, क्यों हुए, इसकी जांच की चुनाव के वक्त भला क्या जरूरत थी!! चुनाव परिणाम आने के अगले महीने से ही कोहराम मच गया और उसकी शुरुआत यू पी में ही हुई। सभी जिलों के जिला कलेक्टर ने लिखित आदेश (https://www.nationalherald india.com/india/reports-on-ration-cards-surrender-fake-but-no-inquiry-or-action-against-dms) जारी किए कि शहरी क्षेत्र में जिस परिवार के पास चार पहिया वाहन, ए सी, जनरेटर, 100 वर्ग मीटर क्षेत्रफल वाला प्लाट या घर/फ्लैट, 80 वर्ग मीटर क्षेत्रफल वाला व्यावसायिक प्लाट/दुकान, एक से अधिक अस्त्रों के लाइसेंस, परिवार की समस्त वार्षिक आमदनी 3 लाख से ज्यादा या आयकर दाता हो तो उनका राशन कार्ड रद्द किया जाएगा। ना सिर्फ रद्द किया जाएगा बल्कि उनसे अब तक लिए गए राशन की कठोरता से वसूली भी की जाएगी और दंडात्मक कार्यवाही भी की जाएगी। बिलकुल वैसा ही सलूक ग्रामीण क्षेत्र में उन परिवारों के साथ किया जाएगा जो आयकर दाता हैं, चार पहिया वाहन, ट्रेक्टर, ए सी अथवा जनरेटर रखते हैं, 5 एकड़ से ज्यादा सिंचित जमीन के मालिक हैं, एक से अधिक अस्त्र का लाइसेंस रखते हैं अथवा पारिवारिक मासिक आय 2 लाख से अधिक है। पूरे राज्य में हड़कंप मच गया। कुछ चैनलों जैसे एनडीटीवी ने ये दृश्य सीधे सस्ते गल्ले की दुकानों से ही दिखाए लेकिन ज्यादा कवरेज सोशल मीडिया पर हुआ। लोग लानतें भेजने लगे कि चुनाव से पहले 81.4 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज बांटने और सत्ता में आए तो हर महीने देसी घी तक मुफ्त बांटने की डींगें मारने वालों को, पहले खुद की तस्वीरों वाले थैले में गाजे-बाजे के साथ बांटे गए अनाज को भी वापस मांगते हुए शर्म नहीं आ रही। जन-आक्रोश एक हद से गुजर जाए या विदेशों में थू-थू होने लगे तो भाजपा सरकारों के हाथ-पांव फूल जाते हैं। तुरंत आयुक्त (सौरभ बाबू), खाद्य एवं रसद विभाग, उत्तर प्रदेश के हस्ताक्षर से आदेश जारी हुआ कि हमने ऐसा कोई आदेश जारी किया ही नहीं। ऐसी मासूमियत पर कौन ना मर जाए!! सवाल है, जब ऐसा कोई आदेश जारी हुआ ही नहीं तो डीएम ने लिखित आदेश कैसे जारी कर दिए? गरीब मजदूरों के घरों-टपरियों पर बुलडोजर चलाने की शौकीन यू पी सरकार द्वारा जिला कलेक्टरों के खिलाफ कौन सी कार्यवाही की गई?

गरीबों के राशन कार्ड पर कुटिल दृष्टि रखने की वारदात अकेले यू पी में ही नहीं हुई बल्कि पूरे देश में हुई। सुप्रीम कोर्ट के प्रख्यात वकील कोलिन गोंसालवेस ने तेलंगाना में रद्द किए गए राशन कार्ड को बहाल करने की याचिका के पक्ष में बोलते हुए 27 अप्रैल 2022 को सुप्रीम कोर्ट को बताया (https://indianexpress.com/article/india/verify-all-cancelled-ration-cards-sc-to-telangana-7890426/) कि 2016 में केन्द्र सरकार के आदेश के बाद एक-दो नहीं बल्कि 17 मापदंडों में हर कार्ड को ‘जांचा-परखा’ गया, ऐसा बताया गया और यदि एक भी मापदंड पूरा नहीं हुआ तो राशन कार्ड रद्द कर दिया गया। इस तरह अकेले तेलंगाना राज्य में कुल 21.94 लाख राशन कार्ड रद्द हुए। सुप्रीम कोर्ट ने सख्त आदेश जारी किए कि ये कार्ड बहाल किए जाएं। कायदे से ये आदेश दूसरे राज्यों पर भी लागू होते हैं लेकिन सरकारें पूरी ढीटता दिखाते हुए ऐसा नहीं कर रहीं। दुर्भाग्य से सुप्रीम कोर्ट अपने आदेश की सरकारों द्वारा लगातार की जा रही अवहेलना की दखल लेना बंद कर चुकी है। अब रूटीन बन गया है। अगर सुप्रीम कोर्ट सच में अपनी गरिमा के प्रति गंभीर है तो उसे रद्द राशन कार्ड बहाल करने के मामले में उनके आदेश का अनुपालन ना करने वाले राज्यों के वरिष्ठतम अधिकारियों और मुख्यमंत्रियों के खिलाफ कठोर आपराधिक कार्यवाही कर मिसाल कायम करनी चाहिए। इस मुद्दे से ज्यादा ज्वलंत और जन-कल्याण का मुद्दा दूसरा नहीं हो सकता। राशन कार्ड बहाल ना करने वाले राज्य भूखे पेटों पर लात मारने का अक्षम्य गुनाह कर रहे हैं।

‘सभी अपात्र लोगों के राशन कार्ड 31 मई तक रद्द कर दिए जाएंगे’, मुख्यमंत्री बिहार की ओर से ये फतवा इसी साल फरवरी में जारी होने के बाद, बिहार राज्य खाद्य आपूर्ति विभाग प्रमुख विनय कुमार ने जिला कलक्टरों को हुक्म अनुपालन सुनिश्चित करने को कहा जिसके परिणामस्वरूप 2022 में कुल 28 लाख 79 हजार राशन कार्ड रद्द कर दिए गए। अकेले समस्तीपुर जिले में 2,46,000 राशन कार्ड रद्द हुए। प्रशासन ने ‘राशन कार्ड रद्द करने का ऑनलाइन फॉर्म’ जारी करते हुए इस मामले में अभूतपूर्व कुशलता का परिचय दिया। ‘अगर किसी कार्ड पर 6 महीने तक कोई राशन नहीं लिया गया है तो माना जाएगा कि उन्हें राशन की जरूरत नहीं है’, बिहार में सबसे ज्यादा राशन कार्ड इस कारण से रद्द किए गए। राज्य में कितने मजदूर सुदूर ग्रामीण भाग से शहरों में आकर काम करते हैं और कितने ही मजदूर रोजगार की तलाश में अपने परिवार सहित राज्य से बाहर दूसरे राज्यों में काम करने को विवश हैं, जो साल-साल भर बाद वापस लौटते हैं, वे अपने मूल निवास स्थान पर राशन कैसे लेंगे; ये सब सोचने की जरूरत क्रूर बिहार प्रशासन को महसूस नहीं हुई।  

सरकार की नीयत सभी जरूरतमंदों को राशन कार्ड और सरकारी सस्ता अनाज देने की है ही नहीं; ऐसा सोचने के ठोस कारण मौजूद हैं                  

मोदी सरकार ने इस साल गेहूं की कुल खरीद कितनी की है, जानते हैं? 182 लाख टन!! पिछले साल की गई खरीद, 433.44 लाख टन से ये 53% कम है। असली कारण क्या है? यूक्रेन-रूस युद्ध गरज रहा है और अभी गरजता रहेगा क्योंकि साम्राज्यवाद आज युद्ध के बिना मरने लगता है। यूक्रेन हर महीने 40 लाख टन गेहूं और जौ का निर्यात किया करता था और उसके बंदरगाह काले सागर के तट पर हैं जो अब रूस के कब्जे में है। इसलिए इस साल वहां से अभी तक ना के बराबर ही निर्यात हो पाया है। 20 मिलियन मतलब 2 करोड़ टन अनाज यूक्रेन के गोदामों में सड़ रहा है और 30 मिलियन मतलब 3 करोड़ टन की फसल आने को तैयार खड़ी है। रूस ने यूक्रेन को काले सागर तट पर स्थित उसके बंदरगाहों से अनाज निर्यात की अनुमति देने की पेशकश की, लेकिन उस वार्ता को अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने अंजाम तक नहीं पहुंचने दिया क्योंकि आज समाज में जितनी तबाही मचती है कॉर्पोरेट का मुनाफा उतना ही ज्यादा बढ़ता है। विश्व बाजार में कृषि मूल्य सूचकांक जनवरी की तुलना में 40% अधिक है। गेहूं और मक्का की कीमतें क्रमश: 42% और 60% बढ़ चुकी हैं। आने वाले दिनों में गेहूं के विश्व बाजार में जो लूट मचने वाली है, उसमें देसी कॉर्पोरेट अडानी-अम्बानी बिरादरी कहीं पीछे ना रह जाए, इसलिए सरकारी खरीद कम की गई है। गेहूं का कुल उत्पादन मामूली कम जरूर हुआ है लेकिन निजी खरीद जबरदस्त हुई है। पहले, ‘आपदा में अवसर’ स्कीम के तहत एक्सपोर्ट की छूट दे दी गई थी, फिर मोदी सरकार को समझ आया कि कहीं श्रीलंका वाली तबाही अगले कुछ महीनों में ही ना आ जाए इसलिए निर्यात रोक दिया गया। मतलब कॉर्पोरेट लुटेरों ने, जिनके पास सारी बैंकिंग पूंजी उपलब्ध है, वैसे भी उनके धन के अम्बार हिमालय जैसे बड़े हो गए हैं, निवेश को जगह नहीं मिल रही, अब अपने गोदाम गेहूं से लबालब भर लिए हैं। या तो कुछ महीनों बाद कुछ वक्त के लिए धीरे से एक्सपोर्ट खुल जाएगा, अगर वो नहीं भी हो पाया तो देसी बाजार ही कौन सा कम बड़ा है, वो तो लूटने को मिलने ही वाला है। सरकारी खरीद ज्यादा होती और सस्ते गल्ले की दुकानों से गेहूं बंटता तो कॉर्पोरेट लूट के बाजार का आकार उतना ही छोटा ना हो जाता!! ‘सब का साथ सबका विकास’ वाले सरकारी नारे का असल मतलब ये है!! ‘सरकार गेहूं की जगह चावल बांटने वाली है’ इसकी हकीकत भी जल्दी ही पता चल जाएगी जब धान की खरीद होगी।  

नीति आयोग के निर्देश पहले से ही स्पष्ट हैं, कृषि की कॉर्पोरेट नीति का भी असल मकसद (https://www.newsclick.in/Are-We-Staring-Another-Phase-Dilution-PDS-India) यही है कि खाद्य सुरक्षा कानून, 2013 को लगातार कम (dilute) करते जाना है। पहले चरण में सरकारी सस्ते अनाज (PDS) पर निर्भरता ग्रामीण क्षेत्र में 75% से घटकर 60% और शहरी क्षेत्र में 50% से घटकर 40% लानी है। धीरे-धीरे इसे समाप्त करना है। इसलिए राशन कार्ड निरस्त करने का अमानवीय सरकारी अभियान यूं ही बेवजह नहीं चल रहा, ये सोची-समझी नीति के तहत किया जा रहा है। जब लोग हल्ला करते हैं तो कदम पीछे खींच लेते हैं, झूठ बोलते हैं कि ऐसा नहीं करेंगे, लेकिन लोग भरोसा कर जैसे ही शांत होते हैं, वे फिर टूट पड़ते हैं। एक युद्ध जैसा जारी है। पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन स्कीम (PDS) की जगह 1997 में शुरू हुई टार्गेटेड पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम (TPDS) का दूरगामी लक्ष्य भी तो यही है। इस मुद्दे पर संसदीय दलों में कोई मतभेद नहीं। भूखे गरीब लोगों को अभी और ‘टारगेट’ पर लिया जाना है लेकिन चांलाकी के साथ, धूर्तता के साथ, धीरे-धीरे। उन्हें ये डर भी तो सताता रहता है कि गरीब मेहनतकश तादाद में लगातार बढ़ते जा रहे हैं, सत्ता का मूल चरित्र नंगा होता जा रहा है, अगर गरीबों ने संगठित होकर उन्हें ही टारगेट पर ले लिया तो क्या होगा? 

“आपको गेहूं और भूसा अलग-अलग करना होगा। सस्ते गल्ले की दुकान के मालिकों ने फर्जी कार्ड बना लिए, इसलिए आप सभी राशन कार्ड निरस्त नहीं कर सकते….तो आपका कहना है कि आपने 21 लाख कार्ड की पूरी जांच की और उसके बाद निरस्त किए और आप चाहते हैं कि हम ये बात स्वीकार कर लें?….मतलब आप पहले रद्द करेंगे, उसके बाद जांच करेंगे!! ये तो ऐसे ही हुआ कि आरोपी को पहले सजा सुना दो उसके बाद मुकदमा शुरू करो….कोई भी सही कार्ड धारक परेशान नहीं किया जाना चाहिए.. राज्य (तेलंगाना) के मुख्य सचिव को हलफनामा देना होगा कि अच्छी तरह जांच किए बगैर कोई राशन कार्ड निरस्त नहीं किया जाएगा’, न्यायमूर्ति बी आर गवई और नागेश्वर राव की बेंच ने अपने 27 अप्रैल 2022 को दिए गए फैसले में तेलंगाना राज्य को फटकारा। फटकार से लेकिन आजकल किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता। देश उस स्थिति से आगे बढ़ चुका है। उसके बाद भी 21 लाख निरस्त कार्ड में कितने बहाल हुए, कुछ पता नहीं। निरस्त करने वाली कुशलता और तत्परता, बहाल करने में कहीं नजर नहीं आती। राज्यों में बिना किसी जांच, थोक में कार्ड निरस्त करने की राज्यों में खुली प्रतियोगिता चल रही है। कार्ड बहाल कराने की पद्धति जारी हुई है जो इस तरह है: 

सबसे पहले ‘AePDS’ अथवा ‘AePDS Ration Card’ पोर्टल पर जाना है। 

उसके बाद वहां ‘Ration Card Correction’ पेज पर जाना है।

वहां एक फॉर्म भरना है जिसके बाद राशन कार्ड नंबर आ जाएगा।

वहां दिया गया होगा कि कार्ड किस वजह से निरस्त किया गया है। उसे हटाना (delete) करना है या दुरुस्त करना है।

उसके बाद सस्ता गल्ला कार्यालय पर जाकर फिर से राशन कार्ड जारी होने का फॉर्म भरना है।

अगर वहां आपकी राशन कार्ड जारी करने की अर्जी मंजूर हो गई तो आपका राशन कार्ड बहाल हो जाएगा।  

जाहिर है इस विधि से तो जिन 4.4 करोड़ परिवारों के राशन कार्ड रद्द हुए हैं, जो लोग दो जून की रोटी का जुगाड़ नहीं कर पा रहे, जो नहीं जानते पोर्टल किस चिड़िया का नाम है, उनके कार्ड बहाल होने से रहे। राशन कार्ड बहाल कराने की एक और सरल विधि है जो ज्यादा कारगर है। लोग इकट्ठे हों, संगठित हों और जन-आंदोलन की ताकत पर उसी दफ्तर और उसी कर्मचारी को राशन कार्ड बहाल करने को मजबूर करें जिसने रद्द किए थे। 

डींगें मारने वाली मोदी सरकार ऐलान कर चुकी है, ‘आगे मंहगाई और भयानक रहेगी’; मजदूरों का ऐलान अभी बाकी है, ‘प्रतिकार आंदोलन और तीखा होगा’श्रीलंका के संकट के बाद उठी जन-आक्रोश की आंधी ने एक सबक सभी सरकारों को सिखा दिया है। असलियत छिपाकर, लच्छेदार जुमलेबाजी अगर जारी रही तो लोग ‘माननीय मंत्री जी’ को कार समेत नाले में फेंक देते हैं!! इसी का परिणाम है कि शेखीबाज मोदी सरकार के ‘संकटमोचक’ रिजर्व बैंक गवर्नर ने 8 जून को पहली बार बिना किसी लाग-लपेट के स्वीकार किया कि अप्रैल-मई तिमाही में फुटकर मुद्रा स्फीति 7.5% रही। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह कि आगे भी ये इतनी ही या इससे भी ज्यादा रहेगी। कीमतें और भी तेजी से बढ़ने वाली हैं। आरबीआई की ही शब्दावली में कहा जाए तो मुद्रा स्फीति लोगों की सहनशक्ति की आखिरी इन्तेहां (outer threshold limit) से बाहर निकल चुकी है। रिजर्व बैंक द्वारा सहनशक्ति इस मामले में इस तरह मापी जाती है- लक्षित मुद्रा स्फीति 4% है, इसके 2 अंक आगे मतलब 6% आखिरी सीमा है। उसके बाद संकट ही संकट है!! रिपो रेट 50 आधार अंक बढ़ाकर मतलब, कर्ज को महंगा कर भी रिजर्व बैंक गवर्नर ने ये नहीं कहा कि इससे मंहगाई कम होगी बल्कि ये कहा कि आगे मंहगाई नियंत्रण से बाहर ना हो जाए, इसलिए रिपो रेट बढ़ाया जा रहा है। परिस्थिति को और स्पष्ट करते हुए बताया कि हम मुद्रा स्फीति की परिस्थिति पर नजर गड़ाए हुए हैं, आगे और भी कदम उठाए जा सकते हैं। 8 साल में पहली बार दास साहब ने इतनी साफगोई दिखाई है!! 81.4 करोड़ लोगों की अनाज खरीदने की हैसियत नहीं बची, सरकार चिल्ला-चिल्लाकर बोल चुकी है। इन लोगों के पास खोने को अक्षरश: कुछ नहीं बचा। फल सब्जियां खाना लोग भूलते जा रहे हैं। गेहूं, चावल, दाल, तेल, नमक भी आगे बेतहाशा मंहगे होंगे, मतलब 81.4 करोड़ का आंकड़ा 100 करोड़ से भी आगे निकल जाएगा। ऐसे ना-काबिल-ए-बरदाश्त हालात में 4.4 करोड़ परिवारों के राशन कार्ड रद्द कर, सरकारों ने गरीबों के हाथ पर रखी सूखी रोटी पर हाथ डाला है। कौम अगर जिंदा है तो लड़ने के सिवा अब पर्याय नहीं बचा। राशन कार्ड अविलम्ब बहाल करने, सारे देश में एक जैसे राशन कार्ड जारी करने, जिससे कोई मजदूर जहां कहीं भी काम कर रहा है वहीं सस्ता अनाज खरीद सके, साथ ही जो लोग सरकारी सस्ता अनाज खरीदने लायक भी नहीं बचे हैं उन्हें मुफ्त अनाज देने की मांगों पर प्रचंड जन-आंदोलन खड़ा करने की आज जितनी जरूरत इससे पहले कभी नहीं रही।