कर्मचारी भविष्य निधि कानून, 1952

August 3, 2022 0 By Yatharth

सामाजिक सुरक्षा के नाम पर मजदूरों से सरकारी धोखाधड़ी

एस वी सिंह

1940 के दशक में हुए भयंकर विनाशकारी विश्व युद्ध के दरम्यान, पूंजीवादी- साम्राज्यवादी शोषण के विरुद्ध, मजदूर आंदोलन उभाड़ की उठी विश्व व्यापी लहर के परिणामस्वरूप, मजदूरों को कई अधिकार प्राप्त हुए। ‘कर्मचारी भविष्य निधि एवं विभिन्न प्रावधान कानून, 1952’ (The Employee’s Provident Fund and Miscellaneous Provisions Act, 1952), उनमें से एक है। इस कानून की अनुशंसा 1948 में संपन्न हुई अखिल भारतीय श्रम सम्मेलन की दसवीं बैठक में भी की गई थी। 1917 में रूस में संपन्न हुई ऐतिहासिक बोल्शेविक क्रांति का ही जलवा था कि हमारे देश के अंग्रेज औपनिवेशिक लुटेरों को भी 1925 में, भविष्य निधि कानून लाना पड़ा था, हालांकि वह महज दिखावा ही था। ये वो वक्त था, जब पूंजीवाद-साम्राज्यवाद विरोधी मजदूर आंदोलन से भयभीत, सभी देश, पूरे समाज को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना अपना कर्तव्य समझने लग पड़े थे। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आई. एल. ओ.) ने सामाजिक सुरक्षा को इस तरह परिभाषित किया है, “समाज द्वारा ये सुनिश्चित किया जाना, कि सभी व्यक्तियों और परिवारों को उचित स्वास्थ्य सुविधाएं प्राप्त हों, एवं कार्य से सेवानिवृत्त होने के बाद, बेरोजगारी, बीमारी, अक्षमता, कार्य के दौरान चोटग्रस्त हो जाने, मातृत्व तथा आकस्मिक मृत्यु की स्थिति में भी गरिमापूर्ण जीवन के लिए पर्याप्त आय सुनिश्चित हो सके”। हमारे देश के संविधान के अनुच्छेद 42 तथा 47 भी सभी नागरिकों को इस तरह की सभी सामाजिक सुरक्षाएं देने की बात करते हैं। पढ़ने में अच्छा लगता है, भले वास्तविकता से इसका दूर-दूर तक कोई लेना-देना ना हो! आज वस्तु-स्थिति, 1940 के दशक से 180 डिग्री पलट गई है, इसलिए समाज को मिले सामाजिक सुरक्षा के अधिकार सभी देशों में छीने जा रहे हैं। छीने जाने की गति हमारे देश में सबसे तेज है।

जम्मू-कश्मीर को छोड़, पूरे देश में लागू इस भविष्य निधि कानून पर 4 मार्च 1952 को राष्ट्रपति के हस्ताक्षर हुए थे। 2019 में संसद ने, जम्मू-कश्मीर राज्य को विशिष्ट दर्जा दिया जाने वाले प्रावधानों को समाप्त करने वाला कानून पास कर दिया जिसके परिणामस्वरूप अब ये कानून जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में भी समान रूप से लागू है। “कारखानों तथा व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में कार्यरत कर्मचारियों के लिए भविष्य निधि, पेंशन कोष तथा जमा-संलग्न बीमा कोष की संस्था प्रस्थापित करने वाला कानून”, पहले वाक्य से ही इस कानून का उद्देश्य स्पष्ट हो जाता है। साथ ही ये भी समझ आ जाता है कि ये कानून कर्मचारियों-मजदूरों के लिए कितना महत्वपूर्ण है। भविष्य निधि कानून के तीन अंग हैं; (i) कर्मचारी भविष्य निधि योजना, जो 1 नवम्बर 1952 को लागू हुई, (ii) कर्मचारी पेंशन योजना, 1995, जो 16 नवम्बर 1995 को लागू हुई। ये योजना 1971 में लाई गई कर्मचारी परिवार पेंशन योजना को हटाकर वजूद में आई, (iii) कर्मचारी डिपाजिट सम्बद्ध बीमा योजना, 1976, जो 1 अगस्त 1976 से लागू हुई। किसी भी उद्योग अथवा व्यावसायिक-व्यापारिक प्रतिष्ठान में, जहां 20 या उससे अधिक कर्मचारी-मजदूर काम करते हों, ये कानून लागू होता है। इसके अतिरिक्त, जहां 20 से कम कर्मचारी काम करते हों, वहां भी केंद्र सरकार 2 महीने का नोटिस देकर इस कानून को लागू करा सकती है। साथ ही ऐसे उद्योग या व्यावसायिक प्रतिष्ठान जहां 20 से कम कर्मचारी हों, लेकिन मालिक और मजदूर इस कानून को लागू कराने के लिए सहमत हों, ये कानून लागू होगा। एक बार ये कानून लागू हो जाने के बाद, यदि कर्मचारियों की संख्या 20 से कम हो जाती है, फिर भी ये कानून यथावत लागू रहेगा। इस कानून में ‘कर्मचारी’ की परिभाषा है- वह व्यक्ति जिसे मालिक, प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से वेतन भुगतान करता है। इसका अर्थ है, ठेका मजदूर भी इस कानून में कवर होते हैं। साथ ही, जिन्हें ट्रेनिंग पर या ‘कच्चा मजदूर’ बोला जाता है, वे भी इस कानून के सभी प्रावधानों का लाभ उठा पाएंगे। वे लोग, जिन्हें ‘अपरेंटिसशिप कानून के अंतर्गत मात्र कुछ समय के लिए भर्ती किया गया है, उन्हें ही इस कानून से छूट दी गई है। इस कानून के तीन कोष हैं- पहला, भविष्य निधि कोष; दूसरा, पेंशन कोष और तीसरा, डिपाजिट-सम्बद्ध बीमा कोष। भविष्य निधि के लिए कर्मचारियों के वेतन की ऊपरी सीमा 15,000 रु प्रति माह है, लेकिन उससे अधिक वेतन पाने वाले कर्मचारी भी स्वेच्छा से भविष्य निधि कानून का सदस्य बन सकते हैं। उनका जो भी मूल वेतन है, उसका 12% भविष्य निधि कोष में जमा होता है लेकिन मालिक अधिकतम 15,000 रु पर ही अपना अंशदान देता है। भविष्य निधि में जमा राशि पर मिलने वाले ब्याज की दर लगातार कम होती जा रही है। मौजूदा दर 8.1% है। भविष्य निधि खातों का ऑडिट भारत के मुख्य लेखाधिकारी द्वारा हर वर्ष किया जाता है, जिसके पश्चात वार्षिक रिपोर्ट जारी होती है।  

भविष्य निधि के आंकड़े महत्वपूर्ण हैं क्योंकि ये मजदूरों की जमा पूंजी है 

वर्ष 2021-2022 की ऑडिटेड वार्षिक रिपोर्ट अभी प्रकाशित नहीं हुई है, इसलिए ये सभी आंकड़े पिछले साल, मतलब 2020-2021 के हैं। कुल पंजीकृत पी एफ कोड्स 15,96,545 और पी एफ जमा करने वाली कुल संस्थाएं 6,69,371 हैं जबकि कुल संस्थाएं जिन्हें पी एफ कोड स्वीकृत हैं 15.97 लाख हैं। भविष्य निधि में पंजीकृत कर्मचारियों की कुल सदस्य संख्या 4.63 करोड़ और कुल पेंशनर संख्या 69.20 लाख है। साल भर में भविष्य निधि में कुल जमा रकम 1,76,870.14 करोड़ रु और कुल भुगतान 1,12,459.45 करोड़ रु रहा। साल के अंत में उन व्यावसायिक संस्थानों ने, जिन्हें भविष्य निधि जमा करने से कोई छूट नहीं है, कुल 2,681.86 करोड़ रुपये जमा नहीं किया है। इस बकाया रकम पर ब्याज और दण्ड की राशि 3,334.61 करोड़ रु है। कुल मिलाकर 6,016.47 करोड़ की रकम की वसूली बाकी है। इसके अतिरिक्त ऐसे प्रतिष्ठान जिन्हें भविष्य निधि का सदस्य बनने से छूट है लेकिन वे स्वेच्छा से इसके सदस्य बने हैं और उन्होंने कर्मचारियों से भविष्य निधि की कटौती की है लेकिन उसे भविष्य निधि खाते में जमा नहीं किया है, ये रकम 1,315.20 करोड़ रु है। अर्थात भविष्य निधि को कुल 11,152.50 करोड़ रुपये की वसूली करनी बाकी है। ये रकम कर्मचारियों के खतों से काट ली गई है, लेकिन जमा नहीं की गई है। इन औद्योगिक-व्यावसायिक प्रतिष्ठानों के नाम, पते आदि की सूचि 242 पेज की वार्षिक रिपोर्ट में कहीं नहीं है। इसके अलावा भी, पी एफ वसूली के जो मामले अदालतों में लंबित हैं, और जिनमें वसूली नहीं हो रही है, भविष्य निधि ने उनके लिए एक खाता बनाया हुआ है; ‘तुरंत वसूली असंभव’ (Not Immediately Realizable NIR) खाता। इस खाते में साल के अंत में कुल 9,837.30 करोड़ रु हैं। इसका ब्यौरा इस प्रकार है- अदालत का स्टे आर्डर 5,394.05 करोड़, जिनका दिवाला निकल गया 989.37 करोड़, दिवाला निकलने के बाद ‘दिवाला बोर्ड’ में लंबित 175.66 करोड़, अन्य कारण 394.50 करोड़। 31 मार्च 2021 को भविष्य निधि के तीनों मदों- भविष्य निधि, पेंशन और जमा-सह-बीमा में कुल जमा पूंजी, जो मुकेश अम्बानी की कंपनी ‘रिलायंस निप्पन लाइफ’ के मार्फत शेयर बाजार में लगाई गई है, वह 1,37,895.95 करोड़ है। इसका निवेश इस तरह किया गया है- स्टेट बैंक म्यूच्यूअल फण्ड 99,225.62 करोड़, यूटीआई म्यूच्यूअल फण्ड 28,662.77 करोड़, भारत म्यूच्यूअल फण्ड 3,774.45 करोड़ तथा केन्द्रीय संस्थान 6,232.81 करोड़। 

मजदूरों के इस बहुमूल्य कोष का कुल आकार इस प्रकार है-   

01 अप्रैल 2020 को कुल निवेश (खरीदी कीमत पर, on face value)

                           = रु 7,66,269.53 करोड़ 

2020-21 साल में हुई कुल वृद्धि (खरीदी कीमत पर, on face value) 

                              = रु 98,259.59 करोड़    

31 मार्च 2021 को कुल निवेश (खरीदी कीमत पर, on face value) 

                           = रु 8,64, 529.12 करोड़ 

इस साल, मतलब 31 मार्च 2022, इसमें 1 लाख करोड़ से ज्यादा जुड़ गया होगा। अतः कुल रकम 10 लाख करोड़ से अधिक ही रहेगी।                                           

मजदूरों की इस भारी-भरकम रकम का निवेश इस तरह से किया गया है:

क्र स निवेश का प्रकार 31.03.2021 को निवेश, उसके मूल मूल्य पर (on face value) करोड़ रु में निवेश का प्रतिशत (% में) 
1.केंद्र सरकार की प्रतिभूतियां (सिक्योरिटीज)1,50,409.07 17.40 
2.(अ) राज्य विकास कर्ज (State Development Loans)4,10,676.67 47.50 
(ब) राज्य सरकार की प्रतिभूतियां   16,393.23 1.90 
3.विशेष जमा योजना (Special Deposit Scheme)  53,168.39 6.15 
4. सार्वजनिक क्षेत्र के वित्तीय संस्थान/ निकाय, निजी क्षेत्र द्वारा जारी बांड एवं प्रतिभूतियां 2,30,552.08 26.67 
5.संपार्श्विक लिए कर्ज और दिए कर्ज की बाकी देनदारियां (Collateral Borrowing and Lending Obligation CBLO)3,329.68   0.38 
कुल योग 8,64,529.12 100 

कर्मचारी भविष्य निधि के निवेश और सरकार द्वारा बकाया वसूली ना करने पर मजदूरों की चिंताएं 

पिछले साल मार्च तक कर्मचारी भविष्य निधि कोष का आकार 8.65 लाख करोड़ था जो इस साल बढ़कर 10 लाख करोड़ से ऊपर पहुंच जाने वाला है। इसका लगभग आधा भाग (49.4%) निवेश के रूप में राज्यों के पास कर्ज के रूप में मौजूद है। कर की जीएसटी व्यवस्था लागू होने के बाद, सभी राज्यों की स्थिति दिवालिया कंपनियों जैसी हो गई है। गैर-भाजपा राज्यों के वित्त मंत्री, जीएसटी में राज्यों का निर्धारित हिस्सा लेने के लिए,अक्षरसह कटोरा लेकर केंद्र सरकार के दरबार में खड़े होते हैं। जिल्ले-इलाही की कभी मेहरबानी हो जाती है, तो राज्य सरकारों के कर्मचारियों को पगार मिल जाती है, और कभी किसी राज्य ने केंद्र की किसी बात का विरोध किया हो तो उन्हें हाथ-हिलाते वापस लौट जाना होता है। ज्यादातर राज्यों के कर्मचारियों को शराब पर लगे करों और स्टाम्प ड्यूटी से हुई आमदनी से पगार मिल रही है। यही वजह है कि सभी राज्य शराब-सेवन को तरह-तरह से बढ़ावा दे रहे हैं, जैसे दिल्ली के स्वयंभू ईमानदार मुख्यमंत्री शराब की घर डिलीवरी कराने को तड़प रहे हैं। इस घोर समाज-विरोधी कृत्य के गंभीर परिणाम हो रहे हैं, आगे और भी बुरे होने वाले हैं। राज्यों की वित्तीय स्थिति इतनी विकट है कि लोग शराब ना पिएं तो राज्यों के मंत्री-संत्री तक भूखे मर जाएं! केंदीय बजट आंकड़ों के अनुसार विभिन्न करों में राज्यों का कुल हिस्सा 8.17 लाख करोड़ है, जिसमें से कितना उन्हें मिल गया, कितना बाकी है, ये आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं। 31 मई को हिन्दू में छपी खबर के अनुसार, फरवरी ’22 में अकेले जीएसटी में राज्यों का कुल 86,912 करोड़ रुपया केंद्र सरकार की तरफ बकाया था। 2021 के आर्थिक सर्वे के अनुसार, सभी राज्यों का कुल बजट घाटा 9 लाख करोड़ से अधिक है। ऐसी विकट परिस्थितियों में कर्मचारी भविष्य निधि का 5 लाख करोड़ रुपया, जो राज्यों को कर्ज के रूप में दिया गया है, वह कितना सुरक्षित है, समझा जा सकता है। 

देश के विभिन्न व्यावसायिक-व्यापारिक प्रतिष्ठानों पर कर्मचारी भविष्य निधि की कुल 11,152.50 करोड़ की भविष्य निधि की वसूली बाकी है। इन बकायादारों का ब्यौरा वार्षिक रिपोर्ट में कहीं भी उपलब्ध नहीं है। ये कौन-कौन सी कंपनियां हैं, इनकी लिस्ट सार्वजनिक किया जाना अत्यंत आवश्यक है। ये कर्मचारियों का अति महत्वपूर्ण, जीवन-मरण का पैसा है, जो उन्हें सेवानिवृत्त होने के बाद तत्काल, अधिकतम एक सप्ताह में मिल जाना चाहिए। नियमानुसार पेंशन, पारिवारिक पेंशन, मृत्यु हो जाने पर बीमा का भुगतान तुरंत होना, उनके लिए ऑक्सीजन मिलने के समान है। इसकी वसूली ना होने का मतलब ही है कि लाखों मजदूरों को उनके हक का पैसा नहीं मिल पाएगा। उदाहरण के लिए, फरीदाबाद में चप्पल बनाने वाली मशहूर कंपनियों ‘लखानी फुटवेयर प्राइवेट लिमिटेड’ तथा ‘लखानी सेल्स कारपोरेशन’ में पिछले महीने से मजदूरों का जबरदस्त आंदोलन चल रहा है क्योंकि मालिक ने ना मजदूरों को मई महीने से वेतन का भुगतान किया है, और ना ही उनके वेतन से काटा गया पी एफ एवं ईएसआईसी का पैसा जमा किया है। चूंकि ईपीएफओ की वार्षिक ऑडिटेड रिपोर्ट में भी, कहीं भी, उन उद्योगपतियों-व्यवसायिओं की जानकारी नहीं दी गई है, जिन्होंने पी एफ जमा ना करने का गुनाह किया है, इसलिए ये महत्वपूर्ण जानकारी हासिल करने के लिए एक आरटीआई EPFOG/R/E/22/08857 दिनांक 06.07.2022 लगाई गई है। जानकारी प्राप्त होते ही, इसे मजदूर वर्ग की मासिक पत्रिकाओं ‘यथार्थ’ और ‘THE TRUTH’ में प्रमुखता से छापा जाएगा जिससे देश इन गुनहगारों को पहचान सके। सबसे पीड़ादायक हकीकत ये है कि मोदी सरकार जो खुद अपनी दबंगई की बड़ी-बड़ी डींगें हांकती है, गरीब मजदूरों द्वारा शांतिपूर्वक विरोध प्रदर्शनों के बाद भी सरकारी संपत्ति को हुए कथित नुकसान की भरपाई के लिए लाखों की वसूली के नोटिस भेजती है, बिना नोटिस और बिना किसी कोर्ट के आदेश के, उनके घरों को बुलडोजरों से खाक में मिला डालती है, वो सरकार इन उद्योगपतियों से मजदूरों के पीएफ की वसूली क्यों नहीं कर रही? अपार बलशाली सरकार, धनपशुओं के सामने भीगी बिल्ली क्यों बन जाती है? गरीबों की झोंपड़ियों- टपरियों को एक धक्के में ध्वस्त कर डालने वाले बुलडोजर अमीरों की ऐशगाहों की ओर क्यों नहीं बढ़ते? छप्पन इंची छाती सिर्फ मजदूरों व अल्पसंख्यकों को डराने के लिए ही क्यों है?                      

बोर्ड ऑफ ट्रस्टी     

केन्द्रीय बोर्ड ऑफ ट्रस्टी में कुल 43 सदस्य हैं- श्रम मंत्री, छोटा श्रम मंत्री, पी एफ आयुक्त, केंद्र सरकार के 5 नुमाइंदे, राज्य सरकारों के 15 नुमाइंदे, एवं मालिक और मजदूरों के 10-10 प्रतिनिधि। 31 मार्च 2021 को मजदूरों के 10 प्रतिनिधि इस प्रकार हैं; हिरण्मय पंड्या, बीएमएस; प्रभाकर बनासुरे, बीएमएस; सुनकरी मालेषम, बीएमएस; ए के पद्मनाभन, सीटू; रामेन्द्र कुमार, एटक; हरभजन सिंह सिद्धू, एचएमएस; दिलीप भट्टाचार्य, एआईयूटीयूसी; कांग्रेस की ट्रेड यूनियन इंटक के तीनों पद खाली पड़े हैं, जिसकी कोई वजह नहीं बताई गई है।    

भविष्य निधि कानून में मोदी सरकार द्वारा लाए जा रहे ‘सुधारों’ का असली मकसद क्या है?

भविष्य निधि के तीनों खण्डों- भविष्य निधि, पेंशन और डिपाजिट-सह-बीमा योजना के बारे में मोदी सरकार द्वारा निरंतर, लगभग हर साल, बदलाव लाए जा रहे हैं जिन्हें ‘सुधार’ का नाम दिया जाता है। इस विषय पर डिबेट करने से पहले, एक तथ्य रेखांकित किया जाना, उसे बार-बार कहा जाना जरूरी है। वह है कि 10 लाख करोड़ रुपये की रकम इतनी बड़ी है कि इसे इस वक्त जीभ लपलपाती सट्टेबाज वित्तीय पूंजी के गिद्धों से बचाना बहुत कठिन काम है। जिन मजदूरों-कर्मचारियों के वेतन से काटकर पूंजी का ये पहाड़ खड़ा हुआ है, उन सबको सेवानिवृत्त होने पर भविष्य निधि, ग्रेच्युटी साथ ही पेंशन और अकस्मात मृत्यु हो जाने पर बीमा राशि तुरंत मिले, ये सब तब ही संभव हो पाएगा जब सभी सम्बद्ध लोग (all stake holders)- आम जन-मानस, कर्मचारी-मजदूर, ट्रेड यूनियन कार्यकर्ता और सेवानिवृत्त समुदाय, इस बारे में चिंतित रहे, लगातार चौकस रहे और संघर्ष के लिए तैयार रहे। इतनी बड़ी रकम को, वित्तीय पूंजी की ताबेदार सरकार के भरोसे छोड़कर निश्चिन्त हो जाना, घातक सिद्ध होगा। इस लेख का भी ये ही मकसद है। मोदी सरकार हर क्षेत्र में ‘सुधार’ (Reform) लाने के आश्वासन के बाद ही सरमाएदार लुटेरों का विश्वास जीत पाई है। सट्टेबाज वित्तीय पूंजी आज उस स्थिति में पहुंच गई कि औद्योगिक पूंजी और बैंकिंग पूंजी ही नहीं बल्कि सरकारी कोष, सार्वजनिक पूंजी, उत्पादन के सभी साधनों तथा, देश के सभी प्राकृतिक संसाधनों को अपने निजी मुनाफे का अम्बार लगाने के लिए अपने लपेटे में ले चुकी है। इजारेदार कॉर्पोरेट बिरादरी का ‘विश्चास’ हासिल कर लेने के बाद ही, पूंजीवादी लोकतंत्र में ‘जनमत’ प्राप्त हो पाता है। ‘जीवंत लोकतंत्र’ (Vibrant Democracy) का असली मतलब ये ही होता है। ‘यूपीए सरकार में जरूरी सुधार लाने की राजनीतिक इच्छा शक्ति नहीं है, उसके लिए गुजरात मॉडल वाली सरकार चाहिए’, ‘यूपीए सरकार भ्रष्टाचार में डूब चुकी है जिसे मिटा डालने के लिए पाकिस्तानी हमले से जिंदा बचे देवदूत अन्ना हजारे प्रकट हो चुके हैं’, ‘ये सरकार नीतिगत लकवाग्रस्त (policy paralysis) हो चुकी है’, ‘फिर से ये ही सरकार आ गई तो देश डूब जाएगा’; 2014 लोकसभा चुनाव से पहले अखबारों, टीवी भोंपुओं की हेड लाइन, बुद्धिजीवियों की गरमागरम बुद्धि से उपजे लम्बे-लम्बे लेख, याद कीजिए। ढोल-ढमाके के साथ मोदी सरकार सत्ता पर विराजमान हुई, और उसे जो असली ‘जनादेश’ प्राप्त हुआ था उसे लागू करने में उसने बिलकुल वक्त बरबाद नहीं किया। ‘व्यापार करने की सरलता (ease of doing business) के नाम पर हर क्षेत्र को बाजार में तब्दील कर, अपने चहेते कॉर्पोरेट को सौंपा जा रहा है। पिछले 8 साल में मोदी सरकार द्वारा जो ‘सुधार’ लाए गए हैं, वो इस प्रकार हैं-

1)    मुकेश अम्बानी की कंपनी को कर्मचारियों की इस विशाल राशि के ‘वित्त प्रबंधन’ में घुसने का रास्ता बनाया गया: जनवरी 2019 में, लोकसभा चुनाव से तुरंत पहले, भविष्य निधि कानून में कई बड़े बदलाव किए गए। तीन नई समितियां बनाई गईं, ‘वित्त, निवेश एवं ऑडिट समिति’, ‘पेंशन तथा जमा सह बीमा समिति’ तथा (पीएफ) ‘मुक्त व्यावसायिक प्रतिष्ठान समिति’। ‘वित्त, निवेश एवं ऑडिट समिति (FIAC) बनाने का क्या मकसद था, वो सामने आ चुका है। इस समिति ने अनुशंसा की कि इस विशाल रकम के त्वरित निवेश के लिए निजी कॉर्पोरेट कंपनियों को ‘वित्त निवेश पोर्टफोलियो मैनेजर’ चुना जाए, जिससे उसका त्वरित निवेश हो और अधिकाधिक आमदनी हो। इस तरह देश के इस वक्त के सबसे लाडले कॉर्पोरेट मगरमच्छ मुकेश अम्बानी के लिए इस विशाल रकम के निवेश में घुसने का रास्ता बना। ‘रिलायंस कैपिटल’ और जापानी कंपनी ‘निप्पन लाइफ’ की एक संयुक्त कंपनी ‘रिलायंस निप्पन लाइफ’ वजूद में आई और कोई आश्चर्य की बात नहीं कि यह कंपनी जो कर्मचारी राज्य बीमा निगम (ESIC) की विशाल रकम, 1.17 लाख करोड़ का वित्त नियोजन पहले से ही कर रही थी, उसे ही कर्मचारी भविष्य निधि की 1,37,895.95 करोड़ की राशि के वित्त प्रबंधन का काम मिल गया। ये ही नहीं इसी कंपनी को, कोयला खदान भविष्य निधि कोष (CMPFO) को मिलाकर, कुल 4.10 लाख करोड़ की मजदूरों की बहुमूल्य रकम, जिसकी हिफाजत की जिम्मेदारी भारत सरकार की है, के वित्त प्रबंधन का काम मिल गया। संभव है कि जल्दी ही भविष्य निधि की कुल रकम 8.65 लाख करोड़ में से और भी रकम मुकेश अम्बानी की इसी कंपनी को मिल जाए। ऐसी ‘वित्त मैनेजर’ कंपनियां इतनी विशाल रकम को अपने निजी मुनाफे के लिए, सट्टेबाजी के लिए शेयर बाजार में लगाकर, कैसे गुल खिलाती हैं और उसके क्या परिणाम होते हैं यह लोग भी अच्छी तरह जानते हैं और सरकारी भी अच्छी तरह जानती है। ‘पेंशन तथा जमा-सह-बीमा समिति’ की सिफारिशें अभी आनी बाकी हैं। वो भी संभवतः यही होंगी कि उसकी रकम को भी ‘त्वरित’ निवेश के लिए मुकेश अम्बानी को ही सौंप दिया जाए!!

    मुक्त व्यावसायिक प्रतिष्ठान समिति (Exempted Establishment Committee, EEC) उन कंपनियों के मजदूरों के पीएफ के प्रबंधन के बारे में सुझाव देगी जो केन्द्रीय सरकारी संस्था ‘कर्मचारी भविष्य निधि संगठन’ (EPFO) के अंतर्गत नहीं हैं, बल्कि वे उसका स्वतः प्रबंधन करती हैं। ऐसी कंपनियों की कुल संख्या भी 3000 है और इनके पीएफ कोष का आकार 2 लाख करोड़ रुपये है।  

2)    सितम्बर 2019 में एक और ‘सुधार’ लाया गया: पेंशन योजना को ‘राष्ट्रीय पेंशन योजना’ (NPS) में शामिल करने का विकल्प दिया गया। ‘वेतन’ की परिभाषा को कर्मचारियों के 44 अधिकारों की जगह लाए जा रहे ‘लेबर कोड’ की परिभाषा के अनुरूप किया गया। जिसका परिणाम ये होगा कि जिन मजदूरों को 15,000 रु प्रति माह से कम वेतन मिलता है, उनके पीएफ में कम अंशदान जमा होने की स्थिति पैदा होगी। जिन कंपनियों का दिवाला निकल जाता है, उनकी देनदारियों में पीएफ की वसूली को प्राथमिकता देने का प्रावधान किया गया। 

3)    इसी महीने, जुलाई के शुरू में कर्मचारी भविष्य निधि कानून सम्बन्धी कई बदलाव घोषित किए गए। ब्याज की दर 8.1% कर दी गई। इतनी कम दर 1977-78 (8%) के बाद कभी नहीं रही। इसकी विशाल रकम को शेयर मार्केट में निवेश की सीमा 25% तक बढ़ा दी गई जिसका अर्थ हुआ कि शेयर मार्केट में निवेश, जो इस वक्त लगभग 1 लाख 37 हजार करोड़ है, बढ़कर 2.5 लाख करोड़ हो जाएगा क्योंकि इस साल ईपीएफ की अनुमानित राशि 10 लाख करोड़ से अधिक हो जाएगी। शेयर मार्केट में निवेश के लिए मुकेश अम्बानी की कंपनी ‘रिलायंस निप्पन लाइफ’ है ही। मुकेश अम्बानी से ज्यादा मजदूरों के हित की बात भला और कौन सोच सकता है, और शेयर मार्केट में निवेश कभी डूबता ही नहीं है! मुकेश भाई, गौतम भाई और नरेंद्र भाई हैं, तो मजदूरों को क्या चिंता! स्व-रोजगारों में लगे करोड़ों लोगों को भी ईपीएफ के दायरे में लाने की घोषणा की गई। 2.5 लाख से अधिक पीएफ होने पर टीडीएस काटने की भी घोषणा की गई।   

पेंशन का दिखावा नहीं; सम्मानजनक जीवन जीने लायक पेंशन सभी को मिले। पेंशन हर नागरिक का मूल अधिकार होना चाहिए                       

भविष्य निधि कानून के अंतर्गत अधिकतम वेतन अभी भी रु 15,000 प्रति माह ही है और पेंशन वेतन, अर्थात बेसिक+डीए, का 50% होती है। इसका अर्थ ये हुआ कि इस कानून के अंतर्गत कुल पंजीकृत 4.6 करोड़ मजदूरों की अधिकतम पेंशन रु 7500 प्रति माह ही हो सकती है। ऐसी विकट मंहगाई में 7,500 रु में एक परिवार का गुजारा कैसे हो सकता है ये बात हर महीने लाखों का वेतन और कई लाख के भत्ते पाने वाले मंत्रियों-संतरियों को समझ नहीं आती। 2017 में ‘राज्य कर्मचारी बीमा निगम’ (ESIC) ने अधिकतम वेतन सीमा को 15,000 प्रति माह से बढ़ाकर 21,000 प्रति माह किया लेकिन ‘कर्मचारी भविष्य निधि संगठन’ (EPFO) को ऐसा कोई कदम लेने की जरूरत महसूस नहीं हुई। वे 15,000 पर ही हैं क्योंकि अगर 21,000 कर दिया गया होता तो पेंशन की अधिकतम सीमा स्वतः बढ़कर 10,500 हो गई होती। विडंबना का एक और पहलू गौर करने लायक है। आजकल कांग्रेसी बहुत ज्यादा जन-प्रिय व मजदूर-प्रिय बातें करते नजर आ रहे हैं। कर्मचारियों की पेंशन के मामले में उनका रिकॉर्ड और भी क्रूर है। यूपीए के दस साल के कार्यकाल में भविष्य निधि में अधिकतम वेतन सीमा रु 6,500 ही थी! अतः उस वक्त सेवानिवृत्त होने वाले कर्मचारी को मिलने वाली पेंशन की अधिकतम सीमा रु 3,250 प्रति माह ही थी। उस वक्त रिटायर हुए अधिकतर कर्मचारी अभी भी प्रति माह 1,500-2000 ऐसी पेंशन ही पा रहे हैं। मानो, मजदूरों-कर्मचारियों को पेंशन अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए नहीं बस दिखावे के लिए चाहिए, ‘देखो, हम भी पेंशन धारक हैं’! दरअसल, सरकारें मजदूर को इनसान ही नहीं समझतीं। ऐसी महंगाई में, आकाश छूते मूल्य सूचकांक में, जब हर वस्तु की कीमत में आग लगी हुई है, रुपये की कीमत तेजी से गिरती जा रहा है, मजदूर इतनी पेंशन में कैसे पूरा महीना निकालेगा, ये विचार करने की जरूरत मालिकों और उनकी ताबेदार सरकारों को तब तक होगी ही नहीं, जब तक कि मजदूर संगठित होकर हुंकार नहीं भरते, अपनी भुजाओं का असली दम-खम नहीं दिखाते।  

58/60 साल तक अपने जीवन को पूंजीपतियों के मुनाफे के लिए झोंक देने के बाद मजदूर पेंशन का हकदार बनता है। ये ‘सुविधा’ भी कुल मजदूरों के एक छोटे से हिस्से को ही हासिल है। ऐसे में पेंशन के नाम पर मजदूर को जलील किया जाना अन्यायपूर्ण ही नहीं अमानवीय है। पेंशन कि रकम को सार्थक व सम्मानपूर्ण बनाने की मांग उठाने से पहले, पेंशन की मौजूदा व्यवस्था को समझना जरूरी है। हर महीने, हर मजदूर से वेतन (बेसिक + डी ए) का 12% पीएफ में जमा होता है। मालिक के 12% हिस्से में से 8.33% पेंशन में जमा होता है और शेष 3.66% हिस्सा मजदूर के पीएफ खाते में जमा होता है। साथ ही केंद्र सरकार की ओर से मासिक वेतन का 1.66% जमा होता है। इस तरह हर महीने मजदूर के पीएफ खाते में उसके वेतन का 12+3.66=15.66% जमा होता जाता है। साथ ही उसके मासिक वेतन (बेसिक+डीए) का 8.33+1.66=10% हिस्सा पेंशन खाते में जमा होता जाता है, जो सेवानिवृत्त होने पर हर महीने पेंशन के रूप में मिलता है, जो सेवानिवृत्त होते वक्त के वेतन (बेसिक तथा डीए) का 50% अथवा 7500 जो कम है, वह होती है। साथ ही वेतन (बेसिक+डीए) का 0.5% हिस्सा मालिक एक दूसरे खाते में जमा करता है जिसे ‘कर्मचारी डिपाजिट सम्बद्ध बीमा योजना’ (Employee Deposit Linked Insurance, EDLI) कहते हैं। सेवा के दौरान मजदूर की मृत्यु हो जाने पर इस खाते में से मजदूर के उस वक्त के वेतन (बेसिक+डीए) की 20 गुना रकम दी जाती है। सरकार मजदूरों के वेतन की सीमा इसलिए नहीं बढ़ा रही क्योंकि उससे मालिक का 12.5% और केंद्र सरकार का 1.66% हिस्सा भी उसी अनुपात में बढ़ जाएगा। पेंशन को अर्थपूर्ण व गरिमापूर्ण बनाने के लिए अधिकतम वेतन सीमा को 15,000 से बढ़ाकर 50,000 प्रति माह किया जाए। साथ ही केंद्र सरकार के हिस्से को 1.66% से बढ़ाकर कम से कम 3.66% किया जाए। साथ ही इतना ही, 3.66% का योगदान राज्य सरकार की ओर से हो। आज मजदूरों की पेंशन जिस तरह, सेवानिवृत्त होने पर एक बार तय हो जाती है और सारी उम्र उतनी ही बनी रहती है, ये बहुत अन्यायपूर्ण तथा भेदभावपूर्ण के आलावा उनका मखौल बनाने जैसा है। जिस तरह सरकारी विभागों में पेंशन पर, बढ़ती मंहगाई के अनुरूप हर 6 महीने में डीए बढ़ता जाता है, ठीक उसी तरह, मजदूरों की पेंशन भी मंहगाई के अनुसार बढ़ती जानी चाहिए। ‘कर्मचारी डिपाजिट लिंक बीमा योजना’ का कार्यान्वयन तो पूरी तरह ठगीपूर्ण है। सेवा के दौरान मृत्यु हो जाने पर मजदूर को उस वक्त के वेतन का 20 गुना मिलना चाहिए, जैसा अभी मिल रहा है। साथ ही उसके खाते में अगर रकम बची हुई है, तो उसका भुगतान भी उसके परिवार को उसी वक्त कर दिया जाना चाहिए। उसकी मृत्यु के पश्चात उसके खाते में पड़ी रकम का क्या अर्थ है? 

मजदूरों को एक बात कभी नहीं भूलनी है। आज तक उन्हें जो भी हासिल हुआ है, वो उनकी एकता, संघर्ष और उनकी कुर्बानियों से ही हुआ है। आगे भी बिलकुल वैसा ही होगा। लड़ाई अगर महज आर्थिक मुद्दों तक ही सीमित रहेगी तो हमेशा याचक ही बने रहना होगा। गरिमापूर्ण जीवन के लिए आर्थिक लड़ाई को राजनीतिक लड़ाई में बदलते हुए पूंजी की गुलामी से हमेशा के लिए मुक्ति की तारीखी तहरीक को अंजाम तक ले जाना होगा।   

अगले अंक में जारी…