चिली का नया संविधान अस्वीकृत: सुधारवाद-उदारवाद की अंधी गली

September 25, 2022 0 By Yatharth

संपादकीय टिप्पणी

4 सितंबर के जनमतसंग्रह में चिली की संविधान सभा द्वारा स्वीकृत संविधान को चिली की जनता द्वारा 62% के मुकाबले 38% मतों से अस्वीकृत कर दिया गया। यह संविधान 49 वर्ष पूर्व 11 सितंबर 1973 को चिली के निर्वाचित जनपक्षधर राष्ट्रपति साल्वाडोर आएंदे की हत्या व अमरीकी पूंजीपतियों तथा सीआईए मदद से हुए तख्तापलट पश्चात जनरल पिनोशे की अमरीकी साम्राज्यवाद समर्थक नवउदारवादी सरकार लागू फासिस्ट संविधान की जगह लेने वाला था। 2019 में नवउदारवादी आर्थिक नीतियों द्वारा जनता के जीवन में बढ़ती तकलीफों के खिलाफ जो भारी जनसंघर्ष शुरू हुआ था उसने इस फासिस्ट सरकार को पलट दिया था और उसके बाद हुए जनमतसंग्रह में पहले संविधान की जगह 80% जनता ने नया संविधान बनाने व लागू करने के पक्ष में मत दिया था। इस हेतु चुनी गई संविधान सभा को इसके जनवादी व प्रगतिशील चरित्र के लिए बड़ी तारीफ मिली थी। इसमें बराबर संख्या में स्त्री व पुरुष प्रतिनिधि थे एवं चिली की दीर्घकालीन उत्पीड़ित मूल निवासी आबादी को भी पहली बार पर्याप्त प्रतिनिधित्व हासिल हुआ था।  

नए संविधान के प्रारूप की भी दुनिया भर में बहुत चर्चा हुई थी क्योंकि इसके केंद्र में अमरीकी खनन कंपनियां नहीं, चिली के लोग थे। पहली बार वहां के मूल निवासियों को अधिकार मिले थे, सार्वत्रिक स्वास्थ्य सेवाओं की गारंटी की गई थी, गर्भपात को कानूनी अधिकार बना दिया गया था, खनिज संपदा के जनहित में प्रयोग के प्रावधान थे, और पर्यावरण की सुरक्षा के लिए प्रावधान किये गए थे। हालांकि यह पूंजीवादी व्यवस्था में ही सुधारों व विस्तारित जनवादी अधिकारों की व्यवस्था करने वाले संविधान का प्रारूप था, पर चिली को अपने लिए खनिज संसाधनों का स्रोत मानने वाली अमरीकी पूंजी का गुस्सा तभी जाहिर हो गया था जब वाशिंगटन पोस्ट ने एक संपादकीय लिखकर कहा था कि अमरीका के विद्युतीकृत भविष्य का आधार लिथियम आधारित बैटरियां हैं और इस लिथियम का सबसे बड़ा स्रोत चिली है। अतः नवीन संविधान का यह प्रारूप अमरीकी अर्थव्यवस्था या कहें कॉर्पोरेट पूंजी के हितों के लिए घातक है। याद रहे कि 1973 में राष्ट्रपति आएंदे की हत्या व तख्तापलट का मुख्य कारण भी उनके द्वारा चिली की तांबा खानों का राष्ट्रीयकरण था जबकि ये पहले अमरीकी पूंजी के नियंत्रण में थीं। इसलिए यह साफ हो गया था कि अमरीकी साम्राज्यवाद व चिली में उसके फासिस्ट सहयोगी इसे स्वीकार किये जाने में हरमुमकिन बाधा डालेंगे।

जनमतसंग्रह संचालित करने वाली चुनाव संस्था ने बताया है कि इसमें खर्च के आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार कुल खर्च का 89% संविधान के विरोधियों ने और मात्र 11% संविधान समर्थकों द्वारा किया गया। चिली की कॉर्पोरेट नियंत्रित टीवी व प्रिंट मीडिया ने भी लगातार इस संविधान के प्रति जनता में डर का माहौल बनाया। उन्हें बताया गया कि इससे व्यक्तिगत संपत्ति खत्म हो जाएगी अर्थात सबके घर सरकार छीन लेगी। उनका धर्म खतरे में आ जाएगा, वगैरह वगैरह। अंततः एक साल पहले तक नए संविधान के समर्थन में उत्साह से मत देने वाले लोगों का एक बड़ा हिस्सा भी इसके प्रति आशंका से भर गया और उन्होंने संविधान को अस्वीकार करने के पक्ष में वोट किया। इसके चलते चिली में पहले से मौजूद फासिस्ट शक्तियों का मनोबल बढ़ा है और नई फासिस्ट विरोधी सरकार के भविष्य पर प्रश्न चिह्न खड़े हो गए हैं। 

इससे सबसे महत्वपूर्ण बात फिर से यही समझना है कि एक वास्तविक मजदूर वर्गीय क्रांतिकारी पार्टी के अभाव में सुधारवादी एनजीओवादी नेतृत्व विशाल जनसंघर्षों को भी एक अंधी गली में ले जाकर छोड़ देता है और जनता में निराशा-हताशा पैदा करता है। ऐसा नेतृत्व संघर्षशील जनता को उसके शोषण व सभी तकलीफों के लिए जिम्मेदार पूंजीवादी व्यवस्था के उन्मूलन के लिए राजनीतिक रूप से तैयार व संगठित करने के बजाय उसे आकर्षक सुधारों के भ्रमजाल में फंसाकर मेहनतकश जनता को वैचारिक राजनीतिक रूप से निहत्था कर देता है। इस प्रकार वह आंदोलनों की तीव्र होती गति को रोक देता है। तत्पश्चात पूंजीवादी व्यवस्था के अंतर्गत ही कुछ कानूनी सुधारों के लिए एक लंबी व थकाऊ-उबाऊ प्रक्रिया शुरू की जाती है जिसके चक्र में फंसकर जनता की क्रांतिकारी ऊर्जा चुक जाती है। ऐसे में जनसंघर्षों के उभार के दबाव में पीछे हटने को मजबूर हुई शासक वर्ग की प्रति-क्रांतिकारी शक्तियों को फिर से संगठित होकर जनता में अपना राजनीतिक प्रभाव कायम करने का मौका मिल जाता है और जिन सुधारों के लिए भ्रम पैदा कर जनसंघर्षों को रोका या धीमा किया जाता है अंत में वे सुधार तक भी हासिल नहीं होते। 

इसके विपरीत एक वास्तविक क्रांतिकारी पार्टी, जैसे 1917 के रूस में लेनिन के नेतृत्व वाली बोल्शेविक पार्टी थी, मजदूर वर्ग व मेहनतकश जनता को निरंतर सचेत व शिक्षित करती है, उसके शोषण-उत्पीड़न के लिए जिम्मेदार पूंजीवादी व्यवस्था के उन्मूलन की तैयारी करती है और जनसंघर्षों को कानूनी सुधारों के भ्रमजल में फंसने से रोकती है। जिस समय जनसंघर्षों की लहर उभार पर हो, ऐसी क्रांतिकारी पार्टी जनता को कानूनी सुधारों की प्रक्रिया के दायरे में फंसाने के बजाय उन्हें किसी भी प्रतिक्रांतिकारी चक्रव्यूह के प्रति खबरदार व चौकन्ना करती है और अपनी पहलकदमी से शक्ति हासिल कर खुद नई शोषणमुक्त व्यवस्था के निर्माण का आह्वान करती है। 1917 में जिस वक्त रूसी शासक वर्ग व सुधारवादी जनता को शांति, जमीन व रोटी की मांगों के पूरा होने के लिए संविधान सभा द्वारा नया संविधान बनाए जाने का इंतजार करने को कह रहे थे तब लेनिन के नेतृत्व वाली बोल्शेविक पार्टी ने मजदूर वर्ग व किसानों को इस चक्रव्यूह में फंसने के प्रति आगाह किया, किसानों को सामूहिक रूप से भूस्वामियों की जमीनें नियंत्रण में लेकर उनके वितरण की व्यवस्था करने का आह्वान किया तथा मजदूर वर्ग को संगठित कर सत्ता लेकर उसे उनके प्रतिनिधियों की सोवियत के हाथ में सौंप दिया। इस मजदूर वर्ग सत्ता ने वहां एक समाजवादी समाज का निर्माण आरंभ किया जिसने निजी संपत्ति आधारित पूंजीवादी मुनाफे की व्यवस्था को समाप्त कर एक ऐसे समाज की बुनियाद रखी जिसमें जनवादी अधिकारों का कोरा वादा ही नहीं था बल्कि सभी राष्ट्रीय समुदायों के लिए समान अधिकार, समान काम के लिए समान वेतन, तलाक व गर्भपात सहित स्त्री पुरूष समानता व पर्यावरण सुरक्षा जैसे जनवादी सिद्धांत वास्तविकता में लागू किए गए थे। 

किंतु सुधारवादी, सामाजिक जनवादी, एनजीओवादी जिस ‘लिबरल’ डेमोक्रेसी वाली संविधानिक व्यवस्था के जरिए इन जनवादी अधिकारों की गारंटी का भ्रम पैदा करते हैं, उसमें अंततः क्या होता है? निजी संपत्ति बनी रहती है; मुनाफे के लिए मजदूरों की लूट चलती रहती है, समस्त मीडिया, शिक्षा, धार्मिक संस्थाएं कॉरपोरेट पूंजी के पैसे से उसके नियंत्रण में उसके हित के लिए उसके विचारों और छद्म अफवाहों का भ्रम फैलाते हुए मजदूर वर्ग व जनवाद विरोधी जहर फैलाने में जुटी रहती हैं; पूंजीपति वर्ग के हित के लिए स्थापित अफसरशाही, पुलिस, फौज व अपराधी गिरोह कायम रहते हैं और पूंजीपति वर्ग के हितों की सुरक्षा के लिए सन्नद्ध रहते हैं, आदि। 1973 में चिली में यही हुआ था जब एक जनपक्षधर सरकार को ऐसे ही कुचल दिया गया था, लाखों की हत्याएं की गईं या उन्हें लंबे वक्त तक कैद किया गया। पिछले लगभग पांच दशक तक इस तरह जनता की निर्वाचित सरकार को कुचल कर आई फासिस्ट सत्ता जुल्म करती रही और चिली के पूंजीपति वर्ग व साम्राज्यवादी पूंजी के हितों के लिए मेहनतकश जनता पर शोषण का शिकंजा कसती रही। अंततोगत्वा 2019 के वीरतापूर्ण जनसंघर्षों ने उसे उखाड़ फेंका। पर मजदूर वर्ग की एक क्रांतिकारी पार्टी के अभाव में मौजूदा नेतृत्व ने इस बहादुरी भरे संघर्ष को फिर से पांच दशक पुराने उसी सुधारवादी उदारवादी भ्रम की अंधी गली में ले जा धकेला है, यह एक दुखद त्रासदी है।

चिली से लेकर तमाम देशों में घटी ऐसी त्रासदियों का सबसे बड़ा सबक यही है कि मजदूर वर्ग व समस्त मेहनतकश जनता को इस ‘लिबरल डेमोक्रेसी’ के विचार के घातक सुधारवादी-उदारवादी, संशोधनवादी भ्रम से मुक्त कर खबरदार किया जाए कि न सिर्फ पूंजीवादी शोषण से मुक्ति बल्कि स्त्री पुरूष समानता, सभी राष्ट्रीय-जनजातीय समुदायों के लिए समान अधिकार व पर्यावरण संरक्षण के जनवादी सिद्धांत भी केवल एक ऐसे समाज में वास्तविक रूप से हासिल व लागू किए जा सकते हैं जिसमें इनके धुर विरोधी पूंजीपति वर्ग की शक्ति की बुनियाद अर्थात निजी संपत्ति का उन्मूलन कर दिया जाए। ऐसा समाज मजदूर वर्ग की राजसत्ता वाला समाजवादी समाज ही हो सकता है। और पूंजीवाद के उन्मूलन के द्वारा मजदूर वर्ग की ऐसी सत्ता की स्थापना हेतु मजदूर वर्ग की क्रांतिकारी पार्टी का निर्माण व उसे सशक्त करना आज का सर्वोच्च प्राथमिकता वाला कार्यभार है।