‘मेरे गीत’ – साहिर लुधियानवी
March 13, 2023मशहूर प्रगतिशील शायर के 102वें जन्म दिवस पर उनकी रचना
मेरे सरकश तराने सुन के दुनिया ये समझती है
कि शायद मेरे दिल को इश्क के नग्मों से नफरत है
मुझे हंगामा-ए-जंग-ओ-जदल में कैफ मिलता है
मेरी फितरत को खूंरेजी के अफसानों से रग्बत है
मेरी दुनिया में कुछ वक्त नहीं है रक्स-ओ-नग्में की
मेरा महबूब नग्मा शोर-ए-आहंग-ए-बगावत है
मगर ऐ काश! देखें वो मेरी पुरसोज रातों को
मैं जब तारों पे नजरें गाड़कर आसूं बहाता हूं
तसव्वुर बनके भूली वारदातें याद आती हैं
तो सोज-ओ-दर्द की शिद्दत से पहरों तिल्मिलाता हूं
कोई ख्वाबों में ख्वाबीदा उमंगों को जगाती है
तो अपनी जिन्दगी को मौत के पहलू में पाता हूं
मैं शायर हूं मुझे फितरत के नजारों से उल्फत है
मेरा दिल दुश्मन-ए-नग्मा-सराई हो नहीं सकता
मुझे इन्सानियत का दर्द भी बख्शा है कुदरत ने
मेरा मकसद फकत शोला नवाई हो नहीं सकता
जवां हूं मैं जवानी लग्जिशों का एक तूफां है
मेरी बातों में रन्ग-ए-पारसाई हो नहीं सकता
मेरे सरकश तरानों की हकीक़त है तो इतनी है
कि जब मैं देखता हूं भूक के मारे किसानों को
गरीबों को, मुफलिसों को, बेकसों को, बेसहारों को
सिसकती नाजनीनों को, तड़पते नौजवानों को
हुकूमत के तशद्दुद को, अमारत के तकब्बुर को
किसी के चिथड़ों को और शहन्शाही खजानों को
तो दिल ताब-ए-निशात-ए-बज्म-ए-इश्रत ला नहीं सकता
मैं चाहूं भी तो ख्वाब-आवार तराने गा नहीं सकता
सरकश – सरचढ़े । जंग-ओ-जदल – युद्ध और संघर्ष । कैफ – शांति । खूंरेजी – खूनखराबा । रग्बत – स्नेह । रक्स – नृत्य । आहंग – आलाप । तसव्वुर – खयाल, विचार याद । सोज – जलन । शिद्दत – तेज, प्रचण्डता । उल्फत – प्रेम । नग्मासराई – नग्में गाने वाला । फकत – केवल, सिर्फ । मुफलिस – गरीब । तकब्बुर – मगरूर, गुमान । ताब-ए-निशात – खुशी की जलन । बज्म-ए-इश्रत – समाज की भीड़ या महफिल