‘इंतजार’
October 5, 2023मुक्तिबोध
क्रांतिकारी कवि व साहित्यकार की 59वीं मृत्यु वार्षिकी पर उनकी कविता
हम उस दिन का
करते हैं इंतजार
जब हिमालय का शिखर मजदूर के
डाकिये के, किसान के बेटों के
चरणों को चूमेगा।
हमारे चपरासी के बेटी के
चेहरे को
सूरज की, चांद की, कमल की
उपमाएं दी जायेगी!!
जब आज के गरीब से गरीब का पुत्र भी
गगन में सूर्य-मुख मण्डल सा दमककर
पृथ्वी को प्रकाश देगा
समाज को विकास देगा
जब मेहतर का पुत्र भी
आधुनिक वेदों को पढ़ेगा और
व्याख्याकार सायन-सा होगा श्रद्धेय वह
नूतन ज्ञानेश्वर नवीन कबीर-सा
जब शिक्षा की बुद्धि की खदानें
ठेकेदारों की मुठ्ठी में
बंद नहीं रहेंगी और
मस्तिष्क का दमकीला रेडियम
घर-घर में चमकेगा।
स्वाभाविक प्रतिभा जब
ह्रदय में मस्तिष्क में हरेक के
जीवन का संवर्धन सम्पोषण करेंगेी और
ह्रदय के मस्तक के
तहखानों-भरे हुए तेजस्वी भण्डार
दिव्योज्जवल रत्नों के
भेदभाव-हीन हो, सब के लिए
खुल ही तो जायेंगे।
आत्मा की मनोहारी सुंदरी शकुंतला को
कमरे बंद कर
अपने व्यभिचार के लिए गिरफ्तार
कोई भी बाहर की शक्ति जब
कभी न कर पायेगी।
जब यही कभी भी न होगा कि जिंदगी
में अकेले ही मित्रहीन किसी को चलना पड़े !!
किसी के आंसुओं में हजारों के आंसू जब
मिलेंगे
एक के ह्रदय की धड़कने जब
(अपूर्ण, संभावित रचनाकाल 1952-53)