मजदूर वर्ग के क्रांतिकारी नेता कामरेड सुनील पाल के 14वे शहादत दिवस पर शहीद रैली व कन्वेंशन

March 1, 2024 0 By Yatharth

कॉम सुनील पाल के 14वें शहादत दिवस (29 दिसंबर ‘24) पर पीआरसी सीपीआई (एमएल) ने सर्वहारा वर्ग के मुक्तिकामी संघर्ष में शहीद होने वाले सभी क्रांतिकारी शहीदों की याद में केंद्र हाट तल्ला, यानी कॉम सुनील पाल के पैतृक गांव में, एक शहीद रैली और जन सभा का आयोजन किया। 30 दिसंबर को हरिपुर के सम्मेलनी सभागार में एक राजनीतिक सम्मेलन का भी आयोजन किया गया।

शहीद रैली व सभा – 29 दिसंबर – केंद्रा हाट तल्ला

रैली में 5 राज्यों से आए सैकड़ों मजदूरों और क्रांतिकारी कार्यकर्ताओं ने भाग लिया। जन सभा की शुरुआत जोरदार नारों के बीच सभी क्रांतिकारी शहीदों को पुष्पांजलि अर्पित कर की गई। वक्ताओं में कामरेड अजय सिन्हा, मुकेश असीम, आकांक्षा, रामनरेश, सिद्धांत, कंचन के साथ बिरादरना प्रतिनिधि – कामरेड वासु आचार्य (एनटीयूआई), कीर्तन कोटाल (सीपीआई एमएल न्यू डेमोक्रेसी), सुनील पाल (सीपीआई एमएल क्रांतिकारी पहल) भी शामिल थे। ‘अरुणोदय’ सांस्कृतिक टीम के साथियों द्वारा क्रांतिकारी गीत प्रस्तुत किये गये। सभा का संचालन कामरेड कन्हाई बर्नवाल ने किया।

सभी वक्ताओं ने गहराते पूंजीवादी संकट और इसके साथ भारत तथा विश्वभर में फासीवादी हमलों के रूप में मेहनतकश जनता पर पूंजी के बढ़ते हमले पर बात की और आने वाले समय में क्रातिकारी उभार के शीर्ष पर सवार होने के लिए कम्युनिस्ट खेमे में संघर्ष और एकता की आवश्यकता पर ज़ोर दिया। इस बात को रखा गया कि कॉमरेड सुनील पाल जैसे निर्भीक और अडिग क्रांतिकारी नेता को सच्‍ची श्रद्धांजलि देने और उन्‍हें याद करने का हमारे पास इससे बेहतर कोई दूसरा तरीका नहीं है कि एक नयी शोषणविहीन दुनिया बनाने के उनके व हमारे साझे सपनों को साकार करने में हम और भी अधिक उत्साह व सक्रियता के साथ काम करने का संकल्प लें।

केन्द्रीय कन्वेंशन – 30 दिसंबर – सम्मेलनी सभागार, हरिपुर

केन्द्रीय कन्वेंशन का विषय : विश्व पूंजीवाद का संकट, बढ़ती साम्राज्यवादी टकराहट और गहराती विश्वव्यापी क्रांतिकारी परिस्थिति

उपरोक्त विषय पर केंद्रीय सम्मेलन में लगभग 150 कार्यकर्ता प्रतिनिधियों ने भाग लिया। प्रेसिडियम में कामरेड अजय सिन्हा, तीतू पासवान, राधेश्याम, विदुषी, मुकेश असीम और कन्हाई बरनवाल शामिल थे। शुरुआत कामरेड आकांक्षा के स्वागत भाषण और हमारे शहीदों की याद में एक मिनट का मौन रख कर की गई। इसके बाद कामरेड अजय सिन्हा ने, और फिर कामरेड मुकेश असीम ने, विषय पर मुख्य प्रस्तुति रखी। इसपर प्रकाश डाला गया कि लगभग स्थायी प्रकृति वाले गहराते वर्तमान पूंजीवादी संकट द्वारा एक बार फिर प्राक विश्व युद्ध वाली स्थितियों और फासीवाद को जन्म देने से मज़दूर वर्ग के लिए क्रांतिकारी स्थितियां पैदा हो रही हैं, जिसमें उसके अगुआ दस्ते को सर्वहारा क्रांति के आसन्न अवसर को इस्तेमाल करने के लिए वैचारिक-राजनीतिक और जमीनी स्तर पर खुद को अविलंब तैयार करना होगा। [इस विषय पर एक लिखित पेपर भी शीघ्र उपलब्ध कराया जाएगा।]

बिरादरना संगठनों के प्रतिनिधियों ने भी वक्तव्य रखा जिससे वो विषय पर एक महत्वपूर्ण चर्चा आगे बढ़ी – कॉमरेड सोम्येंदु गांगुली (लाल झंडा मजदूर यूनियन समन्वय समिति), मृणमय सरकार (चिंतन पत्रिका), अलीक चक्रवर्ती (सीपीआई एमएल क्रांतिकारी पहल, ऑडियो नोट के माध्यम से), वासु आचार्य (एनटीयूआई)। अंतिम में कामरेड अजय सिन्हा ने समाहार वक्तव्य रखते हुए इसपर ज़ोर दिया कि तेजी से बदलती राजनीतिक परिस्थितियां कम्युनिस्टों के समक्ष जिन कठिनतम कार्यभारों को पेश कर रही हैं उन्हें पूरा करने के लिए क्रांतिकारी खेमे में वैचारिक-राजनीतिक एकता हासिल करने हेतु उपरोक्त व सभी प्रासंगिक सवालों पर इस तरह की पॉलेमिकल बहसों को सख्ती से चलाने की आवश्यकता है और इस कार्य को हम आगे बढ़ाएंगे।

दोनों दिन, सभा व सम्मेलन को मज़दूर वर्ग के क्रांतिकारी गीत “इंटरनेशनल” गा कर समाप्त किया गया।

कामरेड सुनील पाल (1958-2009) के बारे में चंद बातें

कॉमरेड पाल की पूरी जिंदगी, 1977 में रानीगंज में कॉलेज जीवन की शुरुआत से लेकर 2009 में 29 दिसंबर की शाम को सीपीएम के भाड़े के गुंडों की दर्जनों गोलियों से पूरी तरह से छलनी हो शहीद होने तक, मजदूर-मेहनतकश वर्ग के हितों की लड़ाई लड़ते बीती। जब वे मारे गये, तब भी वे यूनियन ऑफिस में टाइपराइटर पर कुछ काम ही कर रहे थे। इस राह को चुनने के बाद पीछे मुड़ना या लौटना उन्‍हें कभी मंजूर नहीं हुआ, चाहे उनके निजी जीवन की दुश्‍वारियां जो भी रही हों। यह सच है, हम सबने उनके जीवन के सभी पक्षों से कुछ न कुछ सीखा है। यह उनकी मजदूर वर्गीय क्रांतिकारी दृढ़ता ही थी कि उन्‍होंने कई असंभव प्रतीत होने वाले संघर्षों का भी सफल नेतृत्‍व किया और धीरे-धीरे उनके जीवन के शब्‍दकोष से “नहीं” शब्द तिरोहित होता चला गया, चाहे संघर्ष कानूनी हक के दायरे का हो या बाहर का।