लोकसभा चुनाव-2024 के अवसर पर आम जनता से आह्वान – ‘पुराने गणतंत्र की मौत’ पर रोने से बेहतर है नए सिरे से ‘जनता के शासन’ की स्थापना के लिये जनांदोलन और संघर्ष तेज करें!

March 1, 2024 0 By Yatharth

धार्मिक विभाजन की राजनीति को नकार दें !

रोजी-रोटी और अपने असली मुद्दों पर आर-पार का जनांदोलन खड़ा करें !

जनता एवं जनतंत्र-विरोधी सरकार व ताकतों का मुंहतोड़ जवाब दें !

मजदूर-मेहनतकश साथियो!

2014 का आम चुनाव याद करें। नरेंद्र मोदी हिंदुओं का भला करने वाले हिंदू-हृदय सम्राट और महानायक  बनकर प्रकट हुए थे। जनता ने उन्हें हाथों-हाथ लिया और सत्ता तक पहुंचाया। लेकिन यह सब जनता के साथ किया गया एक भद्दा मजाक बन चुका है। आज वे देश की जनता के साथ विश्वासघात करने वाले और एकमात्र नफरत की राजनीति करके ही सत्ता में टिके रह सकने वाले खलनायक बन चुके हैं। वायदाखिलाफी में वे एक विश्व-रेकार्ड बनाने वाले नेता हैं। प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के रूप में जनता से किये गये उनके सारे नहीं बस मुख्य वायदों को भी लें, तो लिस्ट काफी लंबी हो जाएगी। उन्होंने महंगाई दूर करने, हर वर्ष दो करोड़ नौकरी देने, महिला-उत्पीड़न रोकने, काला धन वापस लाने और हर व्यक्ति के एकाउंट में 15 लाख रुपये जमा करने, पेट्रोल-डीजल और रसोई गैस के दाम कम करने, किसानों की आय दुगनी करने, 2022 तक सभी के लिए घर की व्यवस्था करने, भ्रष्टाचार खत्म करने, राजनीति को अपराध और अपराधियों से मुक्त करने, जैसे तमाम लुभावने वायदे किये थे। लेकिन दस सालों में इन वायदों के ठीक उल्ट काम किया गया। महंगाई-बेरोजगारी घटने के बजाय बढ़ गई। भुखमरी, कंगाली और कुपोषण का आलम पहले से और बढ़ गया। किसानों, बेरोजगारों और मजदूरों द्वारा की जा रही आत्म हत्याओं की संख्या और बढ़ी है।

भ्रष्टाचार को लें। मोदी ने अपने भ्रष्टाचार और अपनी पार्टी के भ्रष्टाचारियों को तो बचाया ही, दूसरी पार्टियों के भ्रष्टाचारियों को भी अपनी पार्टी और सरकार में शामिल कर लिया। भाजपा भ्रष्टाचार की ‘वाशिंग मशीन’ बन गई। यहीं नहीं, भ्रष्टाचार से लड़ने के नाम पर ईडी का भारी दुरुपयोग विपक्ष की राज्य सरकारों को गिराने में किया जा रहा है। परिवारवाद को दूर करने के वायदे को लें। भाजपा में तो परिवारवाद का कूड़ा-कचरा भरा ही हुआ है, एनडीए भी एक परिवार के वर्चस्व वाली पार्टियों व दलों का जमघट है। दलितों व आदिवासियों का उत्पीड़न बढ़ा है, जबकि सबसे ज्यादा दलित, पिछड़ा, और आदिवासी एमपी और एमएलए भाजपा और एनडीए में ही हैं। महिला-उत्पीड़न की तो हालत यह है कि एक नहीं आधे दर्जन से भी ज्यादा बलात्कार के मामलों में भाजपा के नेता, सांसद और विधायक ही शामिल हैं। मोदी सरकार ने अंतिम दम तक महिला पहलवानों की इज्जत और मान-सम्मान से खेलने वाले भाजपा सांसद बृजभूषण सिंह को संरक्षण दिया।

मोदी ने जनता का भाग्य बदलने के लिए 60 महीने मांगे थे, जबकि 120 महीने बीत चुके हैं। जनता का भाग्य उगने के बजाय उल्टे डूब गया। महंगाई-बेरोजगारी की मार से दुर्दिन देखने पड़ रहे हैं। “अच्छे दिनों” की जगह बुरे दिन आ गये। आज अगर कोई मोदी को उनके वायदे याद दिलाने की कोशिश करता है तो उसे देशद्रोही बताया जाता है। उसे देश (रामराज) को बदनाम करने के आरोप में जेल में डाल दिया जा सकता है।

आज भी, जबकि चुनाव का मौसम है, मोदी की सरकार उसी रास्ते पर चल रही है। धड़ल्ले से रेल से लेकर तेल, शिक्षा-स्वास्थ्य-परिवहन से लेकर खदान-बंदरगाह-एयरपोर्ट-टेलिकाम-बिजली, आदि सरकारी संपत्तियों को देशी-विदेशी बड़े पूंजीपतियों को औने-पौने दामों पर बेच रही है। बड़े पूंजीपति उनसे मुनाफा बटोर रहे हैं। बढ़ती महंगाई का यह एक बड़ा कारण है। निजीकरण से सरकारी नौकरियां खत्म हो चुकी हैं और निजी कम्पनियों में मुनाफे के लिए छंटनी जारी है। इससे बेरोजगारी बेलगाम हो चुकी है। पचास सालों का रिकार्ड तोड़ते हुए युवाओं में बेरोजगारी सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गई है। यही नहीं, निजीकरण से महंगाई भी बढ़ रही है। शिक्षा-चिकित्सा जैसी बेहद जरूरी सेवाओं के निजी हाथों में जाने से गरीब इससे वंचित हो रहे हैं क्योंकि इनका खर्चा बढ़ता जा रहा है। अप्रत्यक्ष करों (जीएसटी, आदि) से भरे खजाने को नेताओं और बड़े अफसरों के वेतन व अन्य सुख-सुविधा और बड़े पूंजीपतियों के लिए संसाधन जुटाने और प्रोजेक्ट खड़ा करने में लुटाया जा रहा है। इससे भी महंगाई बढ़ी है। तेल-सब्जी-दाल जैसी रोजमर्रा के लिए जरूरी चीजों के साथ-साथ रसोई गैस की कीमत लगातार बढ़ी है जिससे गरीबों व मजदूरों की आर्थिक रूप से कमर टूट चुकी है क्योंकि एक मजदूर परिवार को औसतन 8 से 10 हजार रुपये की कमाई पर गुजारा करना पड़ रहा है। फसलों की सरकारी खरीद में कमी आने से और इस क्षेत्र में कॉर्पोरेट के लिए दरवाजा खोलने से सरकारी राशन वितरण व्यवस्था ध्वस्त होने के कगार पर आ चुकी है। मालिक वर्ग सुरक्षा पर खर्च करना लगभग बंद कर चुका है जिससे रोज दर्जनों मजदूर जख्मी हो मर रहे हैं।

साथियो! विश्व पूंजीवाद संकट में है। पूंजीपति वर्ग गिरती मुनाफा दर के दुष्चक्र में लंबे समय से फंसा हुआ है। ऐसे में खासकर बड़ा पूंजीपति वर्ग और भी अधिक क्रूरता से श्रम तथा देश की संपदा की भयंकर लूट करने और अधि‍क से अधिक मुनाफा बटोरने में लगा है। इसके विरुद्ध आवाज न उठ सके इसके लिए वह धार्मिक नफरत की राजनीति को बढ़ावा ही नहीं दे रहा है, ऐसी राजनीति में माहिर (फासीवादी) ताकतों को सत्ता में बनाये रखने के लिए हर तरह की साजिश रच रहा है। देश में धार्मिक व जातीय नफरत तथा नृवंशीय (ethnical) घृणा का माहौल खड़ा किया जाना उसी का हिस्साा है। इसी का परिणाम है कि आज ‘राज्य’ भारत में एक विशिष्ट धर्म का चोला ओढ़ रहा है। मोदी सरकार भी वायदाखिलाफी के आरोप से बचने के लिए रामनामी चादर ओढ़ लेना चाहती है। देखा जाए तो बड़े पूंजीपति के सबसे प्रतिक्रियावादी हिस्से , राज्य और धर्म के बीच तालमेल और विलय हो चुका है। भाजपा जैसी घोर जनविरोधी शक्ति का राजनीतिक उदय इसका ही परिणाम है। इसीलिए आज जनता के हक़ और अधिकार की बात करने, गरीबी दूर करने, सबको निशुल्क शिक्षा व स्वास्थ्य सेवा की व्यवस्था करने, सबको गरिमा और सम्मान की जिंदगी के बदले रामराज तथा राम के विधान की बात हो रही है। यह एक भद्दा मजाक ही है कि अस्सी करोड़ गरीब लोगों को पांच किलो अनाज देकर मोदी सरकार अपनी पीठ थपथपाती है। उसकी कोशिश है कि बड़े पूंजीपतियों को देश की सारी संपत्ति डकारने के लिए जो खुला अवसर दे रही है, लोगों का ध्यान उस ओर नहीं जाये। कुल मिलाकर, आज का नजारा यह है कि एक तरफ सौ में से नब्बे के लिए कीड़े-मकोड़े की जिंदगी मयस्सर है, तो दूसरी तरफ उसी सौ में दस अमीर लोगों के लिए स्वर्ग से भी बढ़कर दुनिया खड़ी की जा रही है। इसमें रामराज के शिगूफे का क्या मतलब हो सकता है?

उसका एक ही मतलब है – आम मेहनतकश लोग अधिकार और हक़ की बात नहीं करे; भाग्यवादी बन जाये; श्रम की लूट होती रहे व देश की संपत्ति पर पूंजीपति डाका डालते रहें लेकिन जनता राम का नाम जपती रहे; सरकार गलत भी करे तो भी मोदी का जयकारा होता रहे; यानी, जनता निरीह प्रजा की तरह बस याचना करे; और रामराज के नाम पर कॉर्पोरेट द्वारा नियंत्रित व संचालित नये तरह की राजशाही पर कोई उंगली नहीं उठाये। अगर उठाये तो उसकी हड्डियां तोड़ दी जाएं और जनता फिर भी शीश नवाने में लगी रहे। यह रामराज के बहाने कॉर्पोरेट की खुली-नंगी तानाशाही है, इसमें संदेह नहीं होना चाहिए।

साथियो! देश में लोकसभा का चुनाव संपन्न होना है। लेकिन ऐसा लगता है कि उसके पहले ही हमारे गणतंत्र की मौत हो चुकी है। जिन सीमित जनतांत्रिक व जनवादी अधिकारों के बल पर आम व मेहनतकश जनता अपने हक-हकूक की बात या लड़ाई करती रही है वे अब नहीं रहने या बचने वाले हैं। 22 जनवरी के दिन अयोध्या की धरती से जब ‘रामराज’ और ‘राम के विधान’ की स्थापना का आगाज स्वयं चुने हुए प्रधानमंत्री ने कर दिया है, तो प्रतीकात्मक रूप से ही सही लेकिन ‘जनता के शासन’ का जो भी मतलब था उसका भी अंत कर दिया गया। इसी तरह संविधान का भी अंत हो गया समझना चाहिए। सब कुछ अब कागज पर ही मात्र है। तिरंगे की गरिमा और प्रधानता भी खतरे में है। इसकी जगह अंतत: भगवे को मिलने वाली है। यह प्रचार यूं ही नहीं चल रहा है कि “15 अगस्त 1947 के दिन भारत का मात्र शरीर आजाद हुआ था, इसकी आत्मा तो 22 जनवरी 2024 को आजाद हुई है।” इसका अर्थ है कि अब देश में 22 जनवरी को ही असली स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाएगा। 26 जनवरी तथा 15 अगस्त का महत्व या तो दोयम दर्जे का होने वाला है या खत्म होने वाला है। साफ है कि रामराज के नाम पर गणतंत्र को खत्म कर कॉर्पोरेट की खुली व नंगी तानाशाही कायम करने के लिए जनता को धर्म का उपयोग कर बरगलाया जा रहा है। जनतंत्र के चौथे खंभे मीडिया सहित अन्य सारे पायों को ध्वस्त किया जा चुका है। इसलिए अब जनता को ही अपने शासन की पुनःस्थापना के लिए आगे आना होगा। आज ‘महज विपक्ष की सरकार नहीं’, बल्कि सड़क और संसद की मिलीजुली लड़ाई से निकली एक नए तरह की, यानी एक क्रांतिकारी सरकार की जरूरत है।

मौजूदा विपक्ष की बात करें, तो यह न तो ‘जनता के शासन’ की राजनीति करती है, न ही यह मरे हुए गणतंत्र की पुनःस्थापना करने के लिए चिंतित है। इसके पास न तो ऐसी कोई राजनीतिक इच्छा है, न ही कोई शक्ति और हौसला। ऐसे में अगर जनता को फिर से जनतंत्र चाहिये तो इसे अब नए सिरे से और विपक्ष के रहते हुए तथा इसके नकारेपन का भंडाफोड़ करते हुए ही हासिल किया जा सकता है। भाजपा के शासन को हटाना होगा, इसकी यह पहली शर्त है लेकिन अंतिम नहीं। अन्य सभी पार्टियों की सरकार भी हमने देखी है जिसका किसी न किसी रूप में और कम या ज्यादा तीव्रता से जनता की मांगों और जनतांत्रिक अधिकारों को रौंदने का ही रिकॉर्ड रहा है। उनकी नीतियां भी बड़े पूंजीपतियों की सेवा के लिए ही बनती रही हैं। यही नहीं, जातीय-धार्मिक राजनीति के नाले में भी सभी अपना नाक-मुंह घुसेड़े रखते हैं। सत्तालोलुप और भ्रष्ट तो वे हैं हीं। ऐसा विपक्ष वोट के लिये जातीय समीकरण बैठा सकता है, वोटों की खरीद-फरोख्त कर सकता है, और धर्म व नस्ल और जाति-उपजाति का चोला ओढ़कर जनता को रिझाने की कोशिश कर सकता है, लेकिन खुले जन संघर्ष के लिए जनता का आह्वान कतई नहीं कर सकता। वह तो खुद ही अधिकारों के लिए सजग व लड़ाकू जनता से डरता है। वक्त आने पर वह जनता के खिलाफ फासीवादियों से भी जा मिलेगा। ऐसे विपक्ष की सरकार के लिए आवाज उठाने से मजदूर-मेहनतकश वर्ग की लड़ाई और क्रांतिकारी राजनीति ही कभी आगे बढ़ेगी ।

इसलिए मजदूर वर्ग का कार्यभार यह है कि वह भाजपा के शासन को हटा कर महज विपक्षी दलों की सरकार कायम करने के लिए नहीं; एक ही जगह कदमताल करते हुए पूंजी की तानाशाही पर टिके जर्जर जनतंत्र को बचाने मात्र के लिए ही नहीं, बल्कि एक क्रांतिकारी सरकार और गणतंत्र के लिए आवाज बुलंद करे जो पूंजीपति वर्ग की तानाशाही की नींव पर नहीं मजदूर वर्ग के नेतृत्व में शोषित-वंचित एवं उत्पीड़ित जनता यानी जनसाधारण की तानाशाही पर खड़ी होगी। आज देश एक क्रांतिकारी सरकार की उम्मीद कर रहा है, न कि महज विपक्ष की सरकार की। एक धुंधली और अस्पष्ट ही सही, लेकिन चेतनशील जनता के समक्ष अब एकमात्र यही उम्मीद बची है।

क्रांतिकारी सरकार का मतलब एक ऐसी सरकार से है जो बड़ी एकाधिकारी पूंजी के चौतरफे कब्जे को खत्म करेगी और आखिरी सांस लेते जनतंत्र को फिर से न सिर्फ बहाल करेगी, बल्कि उसे बड़ी पूंजी की खुली व नंगी तानाशाही के जुए से मुक्त करेगी एवं बिना रुके आगे बढ़ते हुए एक झटके में समाज में चौतरफा फैलते पूंजीवादी लूट-खसोट से उत्पन्न सड़न व गंदगी को साफ करने का काम करेगी। इसलिए हम मजदूर वर्ग तथा आम जनता से यह अपील करते हैं कि भाजपा जैसी घोर जन-विरोधी व गणतंत्र-विरोधी शक्तियों को हराने के लिए, खासकर क्रांतिकारी विपक्ष के अभाव में, वे अगर विपक्षी पार्टियों या उसके गठबंधन को सरकार में लाते हैं, तो भी उनका कार्यभार खत्म होने के बजाय पहले से और ज्यादा बढ़ जाता है, क्योंकि तब बीच मे बिना आराम किये जनता को विपक्ष की नई सरकार की लूट व शोषण को बढ़ाने वाली जनविरोधी नीतियों, उसके भ्रष्टाचार व दमन और फासीवादियों से समझौता करने की उसकी प्रवृत्ति के खिलाफ, तथा साथ में अपने असली मुद्दों पर भी जनांदोलन तेज करना होगा। यही तरीका है जिससे जनता आगे और बड़े जनांदोलनों की लहर के बल पर आगे नए गणतंत्र और एक क्रांतिकारी सरकार का गठन कर सकेगी।

मजदूर-मेहनतकश साथियो! इतिहास गवाह है कि जब भी ऐसा मुश्किल कठिन समय आया है मजदूर वर्ग ने सामने आकर मानवजाति को महाविनाश के खतरे से बचाने का काम किया है। हिटलर के नाजीवाद और मुसोलिनी के फासीवाद को मजदूर वर्ग ने ही अन्य फासीवाद-विरोधी ताकतों व जनसमुदायों के साथ मिलकर हराया था। आज भी मजदूर वर्ग ही संघर्षशील किसानों, छात्र-नौजवानों, महिलाओं, अन्य उत्पीड़ित तबकों तथा प्रगतिशील जमातों के साथ मिलकर फासीवादियों के विनाशकारी हमले से समाज व मानवजाति की रक्षा कर सकता है। इसलिए आइए, क्रांतिकारी जन-संघर्षों की मिसाल कायम करें; फासीवाद के विरुद्ध वास्तविक लड़ाई में “विपक्ष की सरकार” के लिए जारी घमासान के बीच ‘मजदूर-मेहनकश वर्ग के नेतृत्व में जनता के शासन’ की नए सिरे से स्थापना के लिए आवाज बुलंद करें तथा क्रांतिकारी जन-संघर्ष तेज करें।

नोट : मजदूरों-किसानों पर आंसू गैस के गोले व छर्रे दागने वाली सरकार को परास्त करें

मोदी सरकार का विरोध करने वालों को हर तरह का सरकारी एवं गैर-सरकारी दमनचक्र झेलना पड़ता है। सबसे ताजा उदाहरण यह है कि देश के कोने-कोने से दिल्ली में अपनी मांगों के लिए गुहार लगाने जा रहे हजारों मजदूरों-किसानों को दमन और दुष्प्ररचार का निशाना बनाया जा रहा है। उनकी दो मुख्य मांगें हैं – फसलों की एमएसपी पर खरीद-गारंटी और देश के सभी मजदूरों व किसानों की कर्ज-माफी करो। पंजाब-हरियाणा के हजारों किसानों को पंजाब-हरियाणा के शंभु बोर्डर से लेकर दिल्ली के सिंघु बोर्डर तक के रास्ते में कंक्रीट की दिवारें खड़ी कर बीच रास्ते में ही रोक दिया गया है। कंटीले तार लगा दिये गये हैं और जगह-जगह गड्ढे खोद दिये गये हैं। हजारों की संख्या में पुलिस व अर्द्धसैनिक बलों को लगाया गया है। शंभु बोर्डर पर लगातार आंसू गैस के गोले, छर्रे और पेलेट्स दागे जा रहे हैं। अब तक सौ से ऊपर आंदोलनकारी घायल हो अस्पतालों में भर्ती किये जा चुके हैं। अन्य हजारों को हरियाणा सरकार द्वारा कैद में डाला हुआ है। दमन की खबर फैले नहीं इसके लिए सरकार ने इंटरनेट बंद कर दिया है। सरकार से वार्ता विफल होने के बाद मजदूर और किसान फिर से दिल्ली कूच की तैयारी कर रहे हैं। वहीं दूसरी ओर मोदी सरकार तथा हरियाणा की भाजपा सरकार किसानों के साथ किसी भी तरह के टकराव में जाने के मूड में दिखाई देती है। ये सब क्यां दिखाता है? यही कि कल को गांवों-देहातों की सरहदों से लेकर शहरी मजदूर बस्तियों और महल्लोंप को भी सील कर दिया जा सकता है ताकि विरोध की आवाज को उठने से पहले ही दबा दिया जाये। मोदी सरकार किसी भी कीमत पर विरोध करने के आम जनता के अधिकारों को कुचलना चाहती है और जनतांत्रिक वातावरण को पूरी तरह से खत्मम करने पर तुली है।

क्रांतिकारी अभिवादन के साथ,

पीआरसी, सीपीआई (एमएल)

पीआरसी, सीपीआई (एम-एल) की केंद्रीय कमेटी की ओर से कॉ. कन्हाई बरनवाल द्वारा 20.2.24 को जारी