नई दुनिया बनाने के लिए संघर्षरत जमात की तरफ से मोदी सरकार को किसानों पर युद्ध जैसा दमनचक्र चलाने के लिए धन्यवाद

March 1, 2024 0 By Yatharth

संपादकीय (जनवरी-फरवरी 2024)

पंजाब-हरियाणा सीमा पर स्थित शंभू और खनौरी बॉर्डरों पर अपनी मांगों के लिए डटे आंदोलनकारी महिला व पुरुष किसानों पर हो रहे जुल्मोसितम की दिल दहला देने और रोंगटे खड़ी कर देने वाली खबरें आ रही हैं। इंटरनेट सेवा बंद कर दी गई है। इसलिए खबरें काफी देर से आ रही हैं। मोदी सरकार के फरमान से किसान नेताओं व कार्यकर्ताओं के ट्विटर एकाउंट, बल्कि उन सबके ट्विटर एकाउंट जिनसे पंजाब-हरियाणा बॉर्डर पर किसानों के ऊपर हो रहे दमन के वीडियो, फोटो और खबरें पोस्ट किये जा रहे थे, बंद करवा दिये गये हैं।  इसका खुलासा स्वयं टि्वटर के मालिक एलन मस्क ने किया है। मजे की बात यह है कि उसने मोदी के इस कदम का विरोध भी किया है। कोशिश यह है कि दमन की खबरें देश और विदेश में नहीं फैले। यह दिखाता है कि सच में फासीवादी निकृष्ट और बर्बर ही नहीं अत्यंत डरपोक भी होते हैं!

फिर भी खबरें छन-छन कर आ रही हैं और मोदी सरकार द्वारा किसानों के ऊपर जिस तरह का दमनचक्र, जो वास्तव में एक युद्ध है, चलाया जा रहा है, उसका सच दुनिया तक पहुंच रहा है। लोग स्तब्ध हैं कि क्या एक जनतांत्रिक देश में ऐसा दमन संभव है? सवाल यह भी है कि जो दिख रहा है वह दमन मात्र है, या एकतरफा युद्ध है? यह देखकर हैरानी होती है कि पुलिस द्वारा खड़े किये गये बैरीकेड और किसानों के बीच कंटीले तारों से घिरा एक नो मैंस लैंड है जैसा कि दो देशों के बॉर्डर पर खींचा जाता है! पुलिस प्रशासन की तरफ से लगातार आंसू गैस के गोले व छर्रे दागे जा रहे हैं। पेलेट्स गन से किसानों के शरीर को सर से लेकर कमर तक छलनी किया जा रहा है। एक युवा किसान की मौत होने के साथ-साथ एक दर्जन युवा किसानों के खनौरी बॉर्डर से लापता होने की खबर भी है। खबर तो यह भी है कि कुछ बुजुर्ग किसानों को पुलिस तथा अर्धसैनिक बल के जवानों ने बैरीकेड को पार कर के पकड़ा और बोरियों में बंद कर ले गये और उसके हाथ-पैर तोड़ कर खेतों में फेंक दिये। बिना वर्दी के पुलिस और जवान भी देखे गये जो  फायरिंग करते हुए कैमरे में कैद हुए हैं। सैंकड़ों किसान घायल हैं जिन्हें अस्पतालों में भर्ती किया गया है। हालात ऐसे हो गये कि इस किसान आंदोलन के नेताओं ने आंदोलन को पहले दो दिनों के लिए और बाद में एक सप्ताह के लिए स्थगित कर दिया और पंजाब उच्च न्यायालय के न्यायाधीश की अध्यक्षता में युवा किसान की मौत की जांच करने तथा किसानों पर ढाये जा रहे दमन में हरियाणा पुलिस द्वारा चलाये जाने वाले हथियारों, आंसू गैस के गोलों, छर्रों तथा चलायी जा रही गोलियों की जांच की मांग की है। उनका कहना है कि वैसे गोले दागे जा रहे हैं जिसका उपयोग देश की पुलिस नहीं बल्कि देश की सीमा पर खड़ी हमारी सेना दूसरे देश की सेना से लड़ने के समय करती है।

हद तो यह है कि सरकार वार्ता कर रही है और इसी बीच लगातार गोले दागे जा रही है, जबकि किसान ने वार्ता के बीच आगे नहीं बढ़ने की घोषणा कर रखी है। इससे यह जाहिर हो जाता है कि सरकार की मंशा वार्ता कर मजदूर-किसानों की मांगों पर विचार करने की है या फिर किसी तरह से समय टालने और इसी बीच दमन के सहारे आंदोलन कर रहे किसानों को पीछे हटने के लिए मजबूर करने की।

ये सब क्या दिखाता है? यही कि मोदी सरकार किसी भी कीमत पर देश में जनता के न्यायपूर्ण हक-हकूक और अधिकार के लिए कोई बड़ा जनांदोलन करने की इजाजत, जो कि हमारा जनतांत्रिक अधिकार है, देने नहीं जा रही है। जनता अगर इसके लिए कोशिश करेगी, जैसा कि ये किसान कर रहे हैं, तो खून की नदी बहने की संभावना है। हालांकि अगर ऐसा होता है तो पहली बार नहीं होगा।

इस किसान आंदोलन के दौरान हम ये भी देख रहे हैं कि खासकर दिल्ली में किसान आंदोलन के समर्थन में प्रदर्शन करने ही नहीं, पत्रकार को बाइट लेने से भी रोका गया। इसलिए कोई आश्‍चर्य नहीं होगा अगर कल को आंदोलन करने की इजाजत पूरी तरह खत्‍म कर दी जाएगी। पूरी संभावना है कि इसकी बाजाप्ता घोषणा कर दी जाए। यह भी हो सकता है कि कल को गांवों की सरहदों से लेकर शहरी मजदूर बस्तियों और महल्लों को भी सील कर दिया जाएगा ताकि विरोध की आवाज को उठने के पहले ही, जहां का तहां ही, दबा दिया जाये। यह आने वाले समय की ओर इशारा ही है कि किसानों को रोकने के लिए हरियाणा से लेकर दिल्ली तक के तमाम रास्तों पर जगह-जगह पर सीमेंट-कंक्रीट से बने बोल्डरों और कंटीले तारों की एक नहीं अनेक मजबूत और अभेद्य दिवारें खड़ी कर दी गई हैं। दिल्ली के सारे बॉर्डरों को, जहां से किसान पिछली बार आगे दिल्ली आगे नहीं जा सके थे और इसलिए वहीं बैठ कर तेरह महीने तक धरना देने के लिए बाध्य हुए थे, को पूरी तरह से सील कर दिया गया है।

स्पष्ट है कि खुद सरकार ने आवागमण को बाधित कर रखा है, लेकिन वह इसका इलजाम आंदोलनकारी किसानों पर लगा रही है, ताकि आम जनमानस को मजदूरों व किसानों के खिलाफ खड़ा किया जा सके। दिल्ली में तो किसान आये भी नहीं हैं, लेकिन सिंघु बोर्डर को इतने बड़े पैमाने पर और इस तरह से (कई स्तरों पर) सील कर दिया गया है कि आवागमण लगभग रुक सा गया है। जैसे किसान नहीं किसी दुश्मन देश की सेना आ रही है। हम कल्पना कर सकते हैं कि ये सरकार तब क्या क्या करेगी जब पूरी अवाम और मेहनतकश जमात अपने हक मांगने और खुदमुख्‍तारी का अधिकार मांगेगी! इसके अलावे पूर्व की भांति इस बार भी किसानों को बदनाम करने के सभी तरीके आजमाये और अपनाये जा रहे हैं। यहां सवाल उठता है, आर्थिक रूप से बदहाली और तबाही झेल रहे मजदूर और किसान क्या जनतांत्रिक तरीके से आंदोलन भी नहीं कर सकते? क्या जानबूझ कर गूंगी-बहरी बनी केंद्र की सरकार और दरबार तक अपनी बात पहुंचाने के लिए वे दिल्ली नहीं आ सकते?

यह याद रहे कि विगत 22 जनवरी के दिन अयोध्या में राम मंदिर के उद्घाटन के समय मोदी ने कहा था कि ‘राम आ गये हैं’, ‘रामराज आ गया है’ और इसलिए ‘राम का विधान’ लागू होने का समय आ चुका है, तो क्‍या इसका यही अर्थ था? इस वक्‍तव्‍य के बाद देश की स्थिति यह है, तो क्या यह नहीं मान लिया जाना चाहिए कि आगे से मजदूरों-किसानों को दिल्‍ली में आंदेलन करने का अधिकार नहीं दिया जाएगा? क्या यह जनतंत्र के खात्‍मे का संकेत नहीं है?

दूसरे नजरिये से देखें, तो जो हो रहा है वह ठीक ही है। एक बार फिर से यही साबित हो रहा है कि फासीवाद और कुछ नहीं आम जनता और इसके अधिकारों पर बड़े पूंजीपतियों और उसकी सरकारों द्वारा थोपा गया युद्ध है। यह एक महान सबक है जो जनता अपने प्रत्यक्ष अनुभवों से सीख रही है। इतना तो कहा ही जा सकता है कि मोदी सरकार जनता पर युद्ध लादकर उसे एक ऐसी सजीव राजनीतिक शिक्षा दे रही है जो उसकी राजनीतिक परिपक्वता के लिए जरूरी होती है। ऐसी जीवंत शि‍क्षा आततायी सरकारें और व्यवस्थायें ही सबसे बेहतर तरीके और तेजी से दे सकती हैं। दूसरी तरफ, यह ऊंचे स्तर का जनांदोलन ही है जो इतने बड़े पैमाने पर जनता को सीधे व्यवहार में और सीधे तौर पर शोषकों व शासकों के असली चरित्र के बारे में शिक्षित व प्रशिक्षित कर सकता है। किसी और तरीके से आम जनता शायद ही इतनी तेजी से रामराज और धर्म का चोला ओढ़े फासीवादियों के वास्तविक चरित्र से अवगत हो पाती। इनका पूरा पर्दाफाश हो इसके लिए जरूरी है कि जनता इनके खिलाफ क्रमश: और भी बड़ी लड़ाइयों में उतरे। जहां तक दमन और शहादत की बात है तो यह संघर्षरत जनता और क्रांतिकारियों का गहना होता है। महत्‍वपूर्ण बात यह है कि दमन के बाद भी जनता का संघर्ष किसी न किसी रूप में चलता रहे, इसे सुनिश्चित करना चाहिए। इसलिए जनतंत्र और जनता के जनवादी अधिकारों के इस तरह से कुचले जाने से उत्पन्न तमाम आक्रोश और मानसिक पीड़ा के बावजूद हमें मोदी सरकार को इसके लिए धन्यवाद देना चाहिए। इतिहास अक्सर इससे भी अधिक रक्तरंजित रास्तों से गुजरते हुए और इससे भी ज्यादा भयानक मंजरों का गवाह बनते हुए जनता को और भी ऊंचे स्‍तर के संघर्षों के लिए प्रशिक्षित करता और आगे बढ़ता है। आज तक का इतिहास बताता है कि समय का चक्र और इतिहास का पहिया कभी रुकने वाला नहीं है। इसका सबसे बड़ा प्रमाण स्वयं पूंजीवाद है। पूंजीपति वर्ग ने न जाने कितने आंदोलन और संघर्ष किये हैं, तब जाकर उनका समय आया है। अब इनके जाने का वक्त आया है, तो अपने पूर्ववर्ती शोषक-शासक वर्गों की तरह ही पूंजीपति वर्ग भी क्रूरता का वही रक्तरंजित इतिहास दुहरा रहा है। हालांकि पूंजीपति वर्ग यह जानता है कि वे कुछ भी कर लें, उन्हें मानवजाति की अग्रगति के लिए हटना होगा। इतिहास की चालक शक्ति के रूप में ये अयोग्‍य हो चुके हैं। 

सरकार ही नहीं बड़े पूंजीपति वर्ग को भी तथा तमाम प्रतिक्रियावादी वर्गों को यह याद रखना चाहिए कि वे चाहे जितना दमन कर लें, उनकी हार होनी है। अपने ही शरीर के खून से लथपथ किसान देश व दुनिया की शोषित-पीड़ित एवं वंचित-उत्पीड़ित अवाम को एक ऐसे सबक से लैस कर रहे हैं जिसे वह दिल और दिमाग में संजो कर रखेगा और जल्द ही शोषकों व शासकों के छल और बल के खिलाफ लड़ने में उपयोग करेगा। हर दमनात्‍मक कदम से जनता डरती है, यह सच है, लेकिन वह सीखती भी है, इसे याद रखना चाहिए। 

साथियो! जारी किसान आंदोलन की चाहे हार होगी या जीत इससे परे एक सत्‍य यह है कि किसान आंदोलन का आखिरी अध्याय, जो हर मामले में क्रांतिकारी होगा, का लिखा जाना बाकी है। इसे लिखने का काम गरीब व मेहनतकश किसान पूरा करेंगे। लेकिन कब? इसका जवाब है, जब मजदूर वर्ग पूंजीपति वर्ग के मुकाबले समाज व शासन की बागडोर अपने हाथ में लेने की चुनौती पेश करने की स्थिति में होगा। तब सारे झाड़-झंखाड़ ही साफ नहीं होंगे, सारे शक भी दूर हो जाएंगे। यह समय कब आएगा, यह कहना तो मुश्किल है। लेकिन आएगा जरूर इस पर कतई संदेह नहीं है। तब तक बड़ी पूंजी की मार से तबाह और बर्बाद होते किसानों के आंदोलनों के ऐसे दर्जनों दौर आएंगे और जाएंगे। उससे किसान उत्‍तरोत्‍तर शिक्षित होंगे। शासक-शोषक वर्ग तथा इसकी सरकारों के चरित्र और उनकी साजिशों से परिचित होंगे। इस तरह से प्राप्‍त परिपक्‍वता के बल पर ही किसान जनता की मुक्ति की लड़ाई आगे बढ़ेगी। दूसरा कोई शॉर्टकट रास्‍ता नहीं है।