मजदूर दिवस पर!
May 4, 2024कंवल भारती
हम बदलेंगे, जग बदलेगा, बदलेगा जुग सारा है।
भागो नहीं दुनिया को बदलो, यही क्रान्ति का नारा है।।टेक।।
इन्सानों ने इन्सानों की बस्ती में आग लगाई है।
ऊँचनीच की नफ़रत में, अपनी जिंदगी गँवाई है।
कैसे प्यार बढ़े मन में, जब नफ़रत घनी जगाई है।
अपने ही हाथों हमने यह दुनिया नरक बनाई है।
समझें इसमें अच्छाई है, फिर क्यों ना दोष हमारा है।।1।।
भागो नहीं दुनिया को बदलो, यही क्रान्ति का नारा है।।टेक।।
ख़ून चूसने वालों को तुमने अब तक पहचाना ना।
वो लोग तुम्हारी जाति में हैं, तुमने उनको जाना ना।
वो लोग तुम्हारे धर्म गुरु हैं, हरगिज धोखा खाना ना।
वो लोग तुम्हारे नेता हैं, उनके झांसे में आना ना।
उनको अब आजमाना ना, वो दुश्मन बड़ा तुम्हारा है।।2।।
भागो नहीं दुनिया को बदलो, यही क्रान्ति का नारा है।।टेक।।
धर्म तुम्हारा दुश्मन है, तुमको लाचार बनावेगा।
तुम ग़रीब हो इसको वह तक़दीर का लेख बतावेगा।
क्रोध लोभ और इच्छाओं को काबू करना सिखलावेगा।
संतोष सबर करके जीने का वह उपदेश सुनावेगा।
नरक का डर दिखलावेगा, भगवान को अगर बिसारा है।।3।।
भागो नहीं दुनिया को बदलो, यही क्रान्ति का नारा है।।टेक।।
सेठों की बन्द तिज़ोरी में जो भरा हुआ सरमाया हैभई अपने खून पसीने से, तुमने ही उसे कमाया है।
वह बन्द पड़ा धन नहीं कभी भी काम तुम्हारे आया है।
उसको मन्दिर धर्मगुरु और नेताओं ने खाया है।
जिज्ञासु ने समझाया है, कँवल इनसे पाना छुटकारा है।।4।।
भागो नहीं दुनिया को बदलो, यही क्रान्ति का नारा है।।टेक।।
हम बदलेंगे , जग बदलेगा, बदलेगा जुग सारा है।
भागो नहीं दुनिया को बदलो, यही क्रान्ति का नारा है।।टेक।।