मजदूर वर्ग के क्रांतिकारी स्वरों एवं विचारों का मंच
जिस तरह से नागरिकों, जजों, मंत्रियों, सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री से जुड़े अधिकारियों, पत्रकारों, चुनाव आयुक्त और सुप्रीम कोर्ट के जजों के नाम पेगासस जासूसी के टारगेट सूची में उजागर हो रहे हैं उसे देखते हुए, इस मामले की जांच सरकार द्वारा करा ली जानी चाहिए। अब सुप्रीम कोर्ट इन याचिकाओं पर क्या निर्णय लेता है यह तो बाद में ही पता चलेगा, फिलहाल यह एक ज्वलंत बिंदु है और सरकार द्वारा इस मामले में की गयी कोई भी नजरअंदाजी घातक हो सकती है।
एकाधिकारी पूंजीवादी एसोसिएशन, कार्टेल, सिंडिकेट और ट्रस्ट पहले देश के पूरे बाज़ार को आपस में बाँट लेते हैं और अपने देश के कमोबेश पूरे बाज़ार पर अपना क़ब्ज़ा जमा लेते हैं। देशी और विदेशी बाज़ार एकीकृत हो जाता है। जैसे जैसे पूंजी का निर्यात बढ़ता जाता है और विदेशी तथा औपनिवेशिक संबंधों द्वारा प्रभाव क्षेत्र बढ़ता जाता है, विशालकाय एकाधिकारी एसोसिएशन का और विस्तार होता जाता है, परिस्थितियां ‘स्वाभाविक’ रूप से अंतर्राष्ट्रीय एसोसिएशन की ओर बढ़ती हैं और अंतर्राष्ट्रीय कार्टेल अस्तित्व में आते हैं।
यद्यपि यह सही है कि फासिस्ट सत्ता व राजनीति के विरुद्ध चुनावी-संसदीय संघर्ष के दायरे का पूरा और हरमुमकिन इस्तेमाल करना जरूरी है और भाजपा की चुनावी हार की संभावना को पूरी तरह से नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए, पर देश और खास तौर पर फासिस्ट राजनीति की सबसे बड़ी प्रयोगशाला बने उप्र में यह काम भी केवल बुर्जुआ संसदीय दलों की सामान्य चुनावी राजनीति तक सीमित रहने के आधार पर पूरा नहीं किया जा सकता।
सवाल छोटी पूंजियों को बचाने का नहीं है, क्योंकि इसे बचाया ही नहीं जा सकता है। मुख्य सवाल यह है कि आज जो स्थिति है और यह जिस ओर बढ़ रही है उसको देखते हुए मजदूर वर्ग की मुक्ति का रास्ता सिवाय इसके और कुछ नहीं हो सकता है कि सर्वहारा क्रांति के जरिये समाज के पुनर्गठन और समाजवाद की पूर्ण विजय के लक्ष्य को सामने रखते हुए आगे के रास्तों का अनुसरण किया जाए। किसानों को यह बात बतानी जरूरी है, उनके निर्धनतम हिस्से को इस रास्ते पर लाना जरूरी है और इसलिये किसान आंदोलन में इस दिशा से हस्तक्षेप अत्यावश्यक है। अन्य छोटी व मंझोली पूंजियों के साथ भी यही बात है कि उन्हें भी सर्वहारा वर्ग की अधीनता में आना होगा तभी उनके जीवन का सार बचेगा। जहां तक उनकी वर्तमान उत्पादन पद्धति का है, उसका सर्वहारा वर्ग का राज्य अंत कर देगा, क्योंकि उसके अंत में ही मानवजाति के सार को बचाने का मूलमंत्र छिपा है। पूंजीवादी उत्पादन संबंध के नाश में उन सबका बचाव है जिसमें बड़ी पूंजी की मार से तबाह होते सारे तबके व संस्तर शामिल हैं।